ताई को टिकट मिलता तो बुरीतरह हारती बीजेपी- सत्तन

  
Last Updated:  April 16, 2019 " 02:57 pm"

# कीर्ति राणा #

इंदौर : राष्ट्र कवि और भाजपा के वरिष्ठ नेता सत्यनारायण सत्तन ने सुमित्रा महाजन का विरोध करने के कारणों का रहस्योद्घाटन करते हुए कहा है कि यदि उन्हें टिकट मिल जाता तो वो बुरी तरह हार जातीं और पार्टी में बिखराव की स्थिति बन जाती।मेरे लिए ताई और कैलाश से पहले पार्टी है ।मैंने तो कई बार कैलाश की भी आलोचना की है। अब ताई को भी समझ आ रहा होगा कि कल तक जो लोग उनकी परिक्रमा करते थे, अब वे सब भी टिकट के दावेदार हो गए हैं।
इंदौर रायटर्स क्लब (इराक) में कवि सत्तन ने अपने दिल की बात तो की ही कुछ ऐसी कविताएं भी सुनाई जो चाहकर भी वे मंच पर सुना नहीं पाते।खुद उन्होंने भी स्वीकारा कि कवि सम्मेलनों की मंचीय गरिमा अब पहले जैसी नहीं रही। लोग आज अच्छा सुनना कहां पसंद करते हैं।बात जब भाजपा, ताई, टिकट को लेकर चली तो सत्तन गुरु बोले 2009 के चुनाव के वक्त एक महीने की तारीखें बुक थी अमेरिका जाना था। शिवराज ने बना दिया ताई का चुनाव संचालक। ताई ने मेरे से कहा मेरा यह आखरी चुनाव है। दो नंबर में कैसे गड्ढे खोदे थे, बड़ी मुश्किल से 11 हजार से जीतीं। इस बार फिर लड़ने के लिए अड़ गई।30साल में एक महिला लीडर तैयार नहीं की।मुझे पता था फिर से उन्हें टिकट दिया तो स्थिति भयानह हो जाएगी, पार्टी का मुंह काला होगा।वो चुनाव जिताने के बाद 10 से तो मैं पार्टी कार्यालय की सीढ़ियां नहीं चढ़ा, अब पार्टी कहती है आप की जरूरत है।तब ताई भी कहती थीं मैं सत्तनजी को राज्यसभा भेजना चाहती हूं।ताई का तो पार्टी में मतभेद पैदा करने में बड़ा योगदान रहा है, दूसरी किसी महिलानैत्री को खड़ा नहीं होने दिया।अब मराठी भाषी की बात की जा रही है तो क्या इंदौर में अन्य समाजों के मतदाता नहीं रहते।मेरा विरोध सुमित्रा जी को टिकट देने को लेकर था, यदि उन्हें मिलता तो मैं अटलजी का चित्र लेकर निर्दलीय लड़ता। ऑफर तो कांग्रेस से लेकर अन्य कई पार्टियों के भी मिले थे।जब उन्हें टिकट नहीं मिल रहा तो मैं क्यों लडूं, देखते हैं पार्टी किसे टिकट देती है। कैलाश विजयवर्गीय के बयान को लेकर कहना था अहीर की बहू को घर से निकाल दिया। शाम हुई तो पाड़े की पूंछ पकड़ ली और घर की तरफ जाते हुए कहती जा रही थी पाड़ा जेठजी मैं तो घर नहीं जाउंगी।
सच बोलने पर झाड़ू से धकेल कर कोने में कर दिया
सत्तन बोले मेरा स्वार्थ नहीं इसलिए साफ बोलता हूं, राजनीति सच्चाई नहीं सुनती।इसलिए झाड़ू से धकेल कर कोने में कर दिया मुझे भी।राजनीति ने छल भी किया और मुझे डुबो भी दिया।ये वर्षों से संकलित लावा ही है जो अब प्रस्फुटित हुआ है।जब ताई को ही टिकट नहीं तो मुझे क्यों देंगे, मैं तो 80 का हूं।मैं तब विधायक था, जगतनारायण जोशी के घर बैठे थे, रामायण मंडल वाले (स्व)रघुवीर सिंह चौहान की सिफारिश पर कैलाश को पार्षद का टिकट दिया था।लेकिन समय आने पर मैं तो कैलाश की भी आलोचना करता हूं।लगता है टिकट उसे ही मिलेगा।मैं तो नाहर शाह वली के उर्स वाले मुशायरे में भी निशुल्क पढ़ने जाता हूं। कांग्रेस वाले निजामुद्दीन के आयोजन में पढ़ने गया तो संघ से नोटिस मिल गया लेकिन परवाह नहीं की। हर साल 25 जनवरी को जो अश्विन मुशायरा करता है उसका स्थायी स्वागताध्यक्ष हूं।कविता दल या राजनीति में नहीं बांधी जा सकती।
मुखर राजनीतिज्ञ, कवि और कथाकार भी
सत्तन जी की राजनेता, कवि के साथ कथाकार के रूप में भी पहचान है। विद्याधाम वाले ब्रह्मलीन भगवन गिरिजानंद जी के आदेश पर हनुमत चरित्त की पहली कथा मंदिर में ही शुरु की। पांच दिन की इस कथा को उन्हीं के आदेश पर सात दिन सुनाया, उसके बाद कई शहरों में कथा कह चुके हैं। रामायण की पात्र मंथरा पर महाकाव्य लिखने के संबंध में उनका कहना था यदि मंथरा न होती तो राम के इस मर्यादा पुरुषोत्तम रूप को भी विश्व नहीं जान पाता।कविता को करुणा का अवतार मानने वाले सत्तन जी ने 1956-57 में हिमाविक्र 1में पहली कविता सुनाई थी, पांच रु पारिश्रमिक भी मिलाथा। उनके पिता भी जनकवि रहे।इंदौर मेंजब रामदंगल हुआ करते थे तब छुट्टन उस्ताद छोटेलाल शर्मा पार्टी के नाम से मशहूर थे, प्यारेलाल वर्मा ( कवि माणिक वर्मा के पिता) पार्टी से राम दंगल में मुकाबला होता रहता था।

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