प. बंगाल में शाह के शेर साबित हुए विजयवर्गीय

  
Last Updated:  May 25, 2019 " 10:43 am"

इंदौर कीर्ति राणा ।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय बंगाल में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के शेर साबित हुए हैं।इसके साथ जंवाई राजा की हैसियत से भी ससुराल में विजयवर्गीय का मान सम्मान बढ़ गया है।पत्नी आशा का मायका कोलकाता में ही है। पश्चिम बंगाल में भाजपा की पहले दो सीटें थीं जो बढ़कर अब 18 सीटें हो गई हैं। 42 सीटों में से टीएमसी को 22, भाजपा को 18 और अन्य को दो सीटें मिली हैं।
पहले हरियाणा में भाजपा की सरकार गठन के शिल्पकार और अब पं बंगाल में दीदी के किले में सेंध लगाने और भाजपा की जड़ें मजबूत करने में विजयवर्गीय को सफलता मिली है।राजनीति और प्रेम में साम-दाम-दंड-भेद सारी युक्तियां आजमाई जाती हैं। संभवत: इन्हीं सारे कारणों से बहुत पहले से अमित शाह ने विजयवर्गीय को बंगाल फतह के अभियान पर लगा दिया था।हिंसात्मक चुनाव वाले बंगाल में डेढ़ दर्जन सीटों पर सफलता ने राष्ट्रीय स्तर पर भी विजयवर्गीय का कद बढ़ाया है।बंगाल के परिणाम के बाद से ही उनके स्थानीय समर्थकों में यह इंतजार भी शुरु हो गया है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष किस तरह सम्मान बढ़ाएंगे, क्योंकि इस उपलब्धि से उनके कपड़ों पर उड़े वह छींटे भी धूमिल पड़ गए हैं कि अपने पुत्र आकाश को टिकट दिलाने-जिताने की मशक्कत में वे मालवा-निमाड़ की सीटों पर अधिक वक्त नहीं दे पाए थे।
शिवराज सिंह को अपनी मर्जी मुताबिक काम करने देने के लिए जब कैलाश विजयवर्गीय को हरियाणा के बाद पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी सौंप कर एक तरह से मप्र के मोह से मुक्त कर दिया गया था तब शिवराज खेमे ने भी आनंदोत्सव मनाया था।अब जबकि सर्वत्र भगवा है तो बंगाल की 18 सीटों के साथ विजयवर्गीय का नाम भी चमक रहा है।
ऐसा दूसरी बार हुआ है इससे पहले 2014 में उन्हें हरियाणा में पार्टी का चुनाव प्रभारी बनाया था तब हरियाणा में भाजपा की पूर्ण बहुमत के साथ सरकार पहली बार बनी थी। 4सीटों वाली भाजपा को तब 90 में से 47 सीटों पर सफलता मिली थी।हरियाणा में पार्टी की सरकार का तोहफा देने के बदले में अमित शाह ने जून 2015 में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त करने के बाद पश्चिम बंगाल में पार्टी प्रभारी बनाया था। उनके विश्वास पर तो विजयवर्गीय खरा सिक्का साबित हो गए हैं। इन 18 सीटों के बलबूते यहां होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए सफलता की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर लगातार दो बार अमित शाह अध्यक्ष रह लिए हैं।बहुत संभव है कि अमित शाह अब सरकार में गृह मंत्री का दायित्व संभाल लें।रिक्त होने वाले अध्यक्ष पद के लिए भी ऐसा ही सामर्थ्यवान चेहरा तलाशा जा रहा है।प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह सांसद बन गए हैं, मंत्री बनने की संभावना अधिक इसलिए है कि उन्होंने परदेश कांग्रेस का दिमाग माने जाने वाले विवेक तनखा की बत्ती गुल की है।प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी जबलपुर को केंद्रीय मंत्रिमंडल में राकेश सिंह के बहाने प्रतिनिधित्व भी मिलेगा।सिंह के बेहतर विकल्प के रूप में विजयवर्गीय इसलिए अधिक उपयुक्त हैं कि उनकी पहचान मैदानी नेता के रूप में अधिक है।अब प्रदेश में स्थानीय निकायों के चुनाव का सिलसिला शुरु होना है इस लिहाज से भी विजयवर्गीय प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर फिट बैठते हैं।
पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होना है । राज्य में कैलाश का करिश्मा कायम रहे इसलिए यह भी संभव है कि उन्हें इसी राज्य से राज्यसभा में भेज दिया जाए। तीसरी जो संभावना नजर आ रही है और जो विजयवर्गीय की दिली ख्वाहिश भी है वह मप्र में कमलनाथ सरकार का अस्थिर होने की स्थिति में सीएम की कुर्सी संभालना।अभी 19 मई को लोकसभा चुनाव को लेकर कमलनाथ के 20-22 सीट आने के दावे पर विजयवर्गीय के इस संकेत के बाद से ही मप्र में सियासी हलचल थमी नहीं है कि कमलनाथ 20-22 दिन मुख्यमंत्री भी रहेंगे या नहीं ।मप्र में भाजपा की सरकार वाली संभावना बनने पर यह जरूरी नहीं कि पंद्रह साल सीएम रहे शिवराज सिंह की हसरत फिर पूरी हो, सीएम की कुर्सी पर शिव के पर्याय नाम का राजतिलक की संभावना जरूर बन सकती है। मप्र में यदि आंध्र प्रदेश या कर्नाटक जैसे हालात बनते हैं या कांग्रेस विधायकों के मन में ही बिकाऊ घोड़े वाला भाव पैदा हो जाए तो नरोत्तम मिश्रा उनकी बराबरी में खड़े होने का साहस दिखा सकते हैं, तब होगा वही जो शाह चाहेंगे।
खुद अमित शाह बोले थे सीआरपीएफ ने बचाया
चुनाव में हिंसा तो होती ही है लेकिन इस चुनाव में बंगाल में हिंसा की सर्वाधिक घटनाएं होने का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि ‘दीदी में हिम्मत हो तो मुझे गिरफ्तार कर के दिखाएं’ जैसी दंभोक्ति वाले अमित शाह को भी जान बचाने के लाले पड़ गए थे। उनका यह बयान भी चर्चित रहा था कि यदि सीआरपीएफ मदद नहीं करती तो वे बच नहीं पाते।
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?भोजन-भंडारे-कथा के जादूगर मेंदोला
अब बने सफलतम चुनाव संचालक भी
सांसद बने शंकर लालवानी जब निरंतर मिल रही बढ़त के घोड़े पर सवार हो पंकज को पीछे छोड़ते जा रहे थे, तब खुद उन्हें भी समझ नहीं आ रहा था कि ताई को मिले मतों से वे आगे कैसे निकल रहे हैं।मप्र में सर्वाधिक मतों से होशंगाबाद सीट से राव उदयप्रताप जीते हैं। उन्होंने 5 लाख 53हजार 682मतों से कांग्रेस प्रत्याशी शैलेंद्र दीवान को हराया है।दूसरे नंबर पर सर्वाधिक 5लाख 47 हजार 754 मतों से लालवानी ने संघवी को हराया है।ताई को फिर से टिकट मिलने की संभावना के चलते संगठन ने रमेश मेंदोला को लोकसभा चुनाव संयोजक बनाया था। उनके काम में किसी तरह की ‘अदृश्य उलझनों’ की समीक्षा करने के लिए संघ से जुड़े अरविंद कवठेकर को लोकसभा क्षेत्र प्रभारी के रूप में पदस्थ किया था।सैद्धांतिक मसलों-पार्टी गाईड लाइन जैसे मामलों में यदि कवठेकर का कथन पत्थर की लकीर रहता था तो चुनाव संचालन से जुड़े व्यावहारिक पक्ष में मेंदोला की बात को महत्व मिलता था-फिर चाहे वोट बैंक में सेध लगाना हो, अर्थ तंत्र संबंधी दिक्कतें हों या अन्य मैदानी मसले।तीन ग्रामीण विधानसभा क्षेत्रों में तालमेल का जिम्मा उप संयोजक गोपाल सिंह चौधरी के जिम्मे था। जब लालवानी का नाम फायनल हुआ तो मेंदोला के चुनाव संयोजक रहने पर पार्टी के ही एक खेमे को यह आशंका होने लगी थी कि संघवी परिवार से कैलाश-मेंदोला-केके गोयल-गोपी आदि की घनिष्ठता का असर लालवानी के लिए समस्या न बढ़ा दे। विजयवर्गीय के बंगाल में व्यस्त रहने के दौरान मेंदोला और पार्षद चंदू शिंदे, राजेंद्र राठौड़ के बंगाल जाने को ऐसे ही कारणों से संगठन मंत्री रामलाल के सामने मुद्दा बनाया गया था।इस सबके बाद भी लालवानी को रेकार्ड मतों से जीत दिलाकर मेंदोला ने सबके मुंह बंद कर दिए हैं।उनके विधानसभा से लालवानी को 1लाख 3 हजार की लीड मिली है जबकि विधानसभा चुनाव में मेंदोला 71 हजार मतों से जीते थे, लालवानी को 32हजार मत अधिक मिले हैं। जबकि एक चुनाव में इसी क्षेत्र से ताई को मात्र 11 हजार की ही लीड मिली थी।
क्षेत्र क्रमांक दो को भाजपा का मजबूत गढ़ बनाने का श्रेय विजयवर्गीय-मेंदोला की जोड़ी को जाता है लेकिन इस खेमे से जुड़े निष्ठावान कार्यकर्ता यह कहने से नहीं हिचकते कि उन्हें दादा दयालु यूं ही नहीं कहा जाता।मंच से दूर रहना और पर्दे के पीछे रहते हुए हर मुश्किल को आसान करना जैसी खासियत की वजह से कई बार वे कैलाशजी के संकटमोचक भी साबित होते रहे हैं।महेश्वर में राजकुमार मेव का चुनाव हो या महू में खुद विजयवर्गीय के चुनाव का मामला हो, शिवराज सिंह चौहान के फेंके हर जाल को सफलता की सीढ़ी बनाने के हुनर के कारण ही प्रदेश की राजनीति के हाल के पंद्रह वर्षों में चौहान खेमा इस जोड़ी से डरा सहमा अधिक रहा है।2008 में पूर्प्रव मंत्री सुरेश सेठ को 35396 मतों से हराने, 2013 में छोटू शुक्ला को 91 हजार मतों से हराने, 2018 में मोहन सेंगर को 71011 मतों से हराने और वाले सर्वाधिक मतों से जीतने वाले मेंदोला की पार्टी के दिग्गज नेताओं ने तो सराहना की लेकिन मंत्रिमंडल के गठन में हर बार नाम चलने के बाद भी ‘ताई-भाई’ की चादर में खुर्राटे भरते सीएम ने मेंदोला के नाम की आहट तक नहीं सुनी तो विजयवर्गीय की भी यह मजबूत पकड़ रही कि मेंदोला नहीं तो इंदौर से किसी अन्य विधायक का नाम भी उन्होंने मंत्रिमंडल वाली सूची में नहीं जुड़ने दिया।लालवानी की रिकार्ड मतों से जीत ने मेंदोला की उपलब्धियों में सफलतम चुनाव संचालक का तमगा भी जड़ दिया है, संगठन भविष्य में भी उनकी इस काबिलियत का उपयोग करती रह सकती है।दादा दयालु के समर्थकों को जरुर यह बात खटकती रह सकती है कि जो लालवानी कभी उनसे मार्गदर्शन लिया करते थे अब सांसद के रूप में निर्देश देंगे।

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