गणेशोत्सव में इस बार न इंदौर के राजा हैं और न हीं अयोध्या के..!

  
Last Updated:  September 5, 2019 " 02:31 pm"

इंदौर (कीर्ति राणा) : कपड़ा मिलों की जब तक सांसे चलीं तब तक इंदौर का दस दिवसीय गणेशोत्सव कव्वाली, आर्केस्ट्रा आदि के कारण दूर दूर तक फेमस था। बाद में सांस्कृतिक कार्यक्रम, व्याख्यान आदि होने लगे और पिछले पांच साल में गणेश प्रतिमा स्थापना के विशाल-आकर्षक पांडाल दर्शनीय होने से भारी भीड़ का केंद्र बनने लगे थे।इस साल सोमवार को घरों से लेकर चौराहों, संस्थानों में मंगल मूर्ति की स्थापना उत्साह से हुई है लेकिन बीते वर्षों से जो मोहल्ले-कॉलोनियों के राजा के रूप में स्थापना की प्रेरणा जिन इंदौर के राजा और बाद में अयोध्या के राजा से बाकी मंडलों को मिली, वे दोनों राजा इस साल ओझल हैं।’इंदौर के राजा’ का भव्य और सम्मोहक पांडाल सैकड़ों लोगों को रोजगार का सहारा तो रहता ही था, अन्य शहरों में भी इन पांडालों के कारण इंदौर चर्चा में रहने लगा था, इस साल ये पांडाल नहीं सज रहे हैं।
जिस तरह पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के पांडाल चर्चा का कारण रहते हैं कुछ वैसी ही प्रसिद्धि ‘इंदौर के राजा’ पांडाल की भी हो गई थी।तीन साल दशहरा मैदान, एक साल गांधी हॉल और बीते साल 54 नंबर स्कीम मैदान (एनआर के बिजनेस पार्क के सामने) यह पांडाल सजा था।इस बार ‘इंदौर के राजा’ गायब रहने का कारण बताते हुए आयोजक आलोक दुबे कहते हैं अचछा तो मुझे भी नहीं लग रहा है। हर रोज सैकड़ों फोन आ रहे हैं। दरअसल बारिश के कारण विचार त्यागना पड़ा है। पूर्वानुमान है कि 9 सितंबर के बीच कई बार झड़ी लगने के आसार हैं, इस वजह से विचार त्यागना पड़ा वरना तो हम डेढ़ महीने पहले से पांडाल निर्माण का काम शुरु करते रहे हैं।
विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 4 को भाजपा में अयोध्या के नाम से भी पुकारा जाता है।दशहरा मैदान में 2013 में जब भव्य पांडाल निर्माण की शुरुआत हुई तो यहां स्थापित गणेश प्रतिमा को भी ‘अयोध्या के राजा’ नाम दिया गया। आलोक दुबे और बबलू शर्मा दोनों ने तीन साल तक इसी नाम से भव्य पांडाल यहां लगाया लेकिन जब इस आयोजन में राजनीति हावी होने लगी तो आलोक दुबे अलग हो गए। चौथे साल गांधी हॉल परिसर में ‘इंदौर के राजा’ आकर्षण का केंद्र बन गए। दशहरा मैदान में ‘अयोध्या के राजा’ की सारी व्यवस्था बबलू शर्मा की टीम देखने लगी।पांचवे साल (2018 में) इंदौर के राजा गांधीहॉल परिसर से 54 नंबर स्कीम मैदान पर आ गए। और इस साल दशहरा मैदान पर न अयोध्या के राजा हैं और न ही यहां इंदौर के राजा।

सीड बॉल की शुरुआत, जीरो वेस्ट का पांडाल।

आलोक दुबे फाउंडेशन को बड़े पैमाने पर सीड बॉल की शुरुआत का भी श्रेय जाता है जब तीन साल पहले दशहरा मैदान पांडाल में ही मिट्टी की प्रतिमा का विसर्जन कर उस मिट्टी से एलजी एकेडमी के बच्चों ने 10 हजार सीड बॉल तैयार की थी।खंडवा रोड की जो घाटिया अब हरी भरी नजर आती है वो इन्हीं सीड बॉल की वजह से है।इसी तरह जीरो वेस्ट पांडाल से बांस और कपड़े की कतरन को पुन: उपयोग में तो ले ही लेते थे। बचे हुए साबुत कपड़े से सौ से अधिक गरीब बच्चों को कपड़े तैयार कर के देते थे।

‘इंदौर के राजा’ देते थे रोजगार भी।

शहर की प्रतिष्ठा बन चुके ‘इंदौर के राजा’ में दस दिनों तक करीब 200कलाकार कार्यक्रम पेश करते थे। इसके साथ ही टेंट, साउंड, बंगाल से पांडाल बनाने के लिए आने वाले 90 कलाकारों के साथ ही पांडाल के बाहर सड़क पर गुब्बारे, खिलौने, चाट-चाय-नमकीन की दुकानें लगाने वालों को भी रोजगार मिलता था।इसी तरह दशहरा मैदान पर ‘अयोध्या के राजा’ भी कई परिवारों की रोजी रोटी का सहारा बन गए थे।

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