इंदौर : अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया और आर्मेनिया से लेकर कोलंबिया तक हर देश की संस्कृति कुछ पलों के लिए इंदौर में उतर आई। मौका था एमरल्ड हाइट्स इंटरनेशल स्कूल में चल रही 51वीं राउंड स्क्वेयर इंटरनेशल कांफ्रेंस के दौरान आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम का। इसमें शनिवार शाम कोई सितारा हस्ती नहीं बल्कि दुनियाभर के बच्चों ने अपने- अपने देश की संस्कृति की झलक प्रस्तुत की।
स्कूल के निदेशक मुक्तेश सिंह और प्राचार्य सिद्धार्थ सिंह ने बताया कि कार्यक्रम की शुरुआत ब्रिटेन के ऐतिहासिक लेटमायर अपर स्कूल की प्रस्तुति से हुई। स्टूडेंट ने एक रैप की प्रस्तुति दी, जो ऊर्जा से भरपूर थी। इस दौरान औडिटोरियम में मौजूद हर स्टूडेंट थिरकने को मजबूर हो उठा। इसके बाद बारी आई कोलंबिया के स्कूल कोलेजिओ लॉस नोगल्स की, जिन्होंने अपने देश की संस्कृति के अनुसार लोकनृत्य की प्रस्तुति दी। शुरुआती दो प्रस्तुतियां इतनी जोरदार थी मानो कोई पेशेवर समूह हो। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी स्थित एमएलसी स्कूल की टीम ने नृत्य की प्रस्तुति दी। नजारा ऐसा था मानो टीवी चैनल पर आने वाला डांस का रियलिटी शो चल रहा हो। अब बारी थी पेरू की। यहां के सान सिल्वेस्टर स्कूल ने सबसे अलग हटकर गीत सुनाए और जिस पर युवा इनकी ताल से ताल मिलाने लगे। यहां भाषा का बंधन मानो सुरों ने खत्म कर दिया था। आर्मेनिया की टीम ने डांस के जरिए अपनी काबिलियत साबित की, जिसमें लय के साथ गजब का तालमेल दिखा। अमेरिका के द अथेनिअन स्कूल के स्टूडेंट ने खूबसूरत गीत प्रस्तुत किया।
केन्या के ‘वाका- वाका’ ने जमाया रंग।
माहौल में असली ऊर्जा तब नजर आई जब केन्या के स्टारेहे बॉयस सेंटर एंड स्कूल की टीम ने वाका वाका की प्रस्तुति दी। इसपर मानो सभी के पैरों में ऊर्जा दौड़ गई। हर कोई थिरकता नजर आया। इस दौरान भारतीय स्कूलों के स्टूडेंट्स ने भी दर्शनीय प्रस्तुतियां दीं।
‘आई एम एन अफ्रीकन” कविता ने दिल जीता :
कार्यक्रम के दौरान ऐसे लम्हे भी आए जब जोश से भरे युवा और बड़े भावुक हो गए। दक्षिण अफ्रीका के स्कूल सेंट सायप्रियंस ने अपनी प्रस्तुति में ‘आय एम एन अफ्रीकन” कविता सुनाई। दरअसल दक्षिण अफ्रीका के नए संविधान को अपनाते वक्त 8 मई 1996 को अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से वक्तव्य देते हुए थाबो मबेकी ने कहा था, ‘आई एम एन अफ्रीकन”। इसके बाद से यह वाक्य अफ्रीकी देशों में लोकप्रिय हुआ। राउंड स्क्वेयर कांफ्रेंस महात्मा गांधी के जन्म के 150वें वर्ष में आयोजित हो रही है और बापू का भी दक्षिण अफ्रीका से खास नाता रहा था। ऐसे में अफ्रीकी स्कूल की इस कविता की प्रस्तुति ने सभी को प्रभावित किया।
देर शाम तक एमरल्ड हाइट्स का मंच एक चौथाई दुनिया के गीत- संगीत और नृत्य की सतरंगी छटा से जगमगाता रहा।