कीर्ति राणा
कभी बिहार में लालू यादव ने लालकृष्ण आडवानी का रथ रोका था।कुछ ऐसा ही महाराष्ट्र में हुआ है। यहां तीन दलों की संयुक्त ताकत भाजपा के राज्यारोहण को रोकने में कामयाब हो सकी है तो इसमें सर्वोच्च न्यायालय का फैसला भी सहयोगी साबित हुआ है।भाजपा ने सपने में नहीं सोचा होगा कि इस बार वह अस्तबल पर डकैती डालने में कामयाब नहीं हो पाएगी, न ही महाराष्ट्र के मतदाताओ ने सोचा होगा कि एक दूसरे के खिलाफ तलवार भांजने वाले ये तीनों दल कुर्सी की खातिर मिले सुर मेरा तुम्हारा गाने लगेंगे।
बीजेपी के रणनीतिकारों पर भारी पड़े शरद पंवार।
क्या संयोग है कि भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की तरह महाराष्ट्र को कर्नाटक की छाया से बचाने वाले शरद पंवार के बाल भी राजनीतिक थपेड़े सहते हुए ही उड़े हैं। क्षेत्रीय स्तर पर तो शरद पंवार राजनीति के चाणक्य साबित हुए हैं भाजपा के रणनीतिकारों पर।प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह राज्यसभा में एनसीपी की तारीफ कर पंवार पर मोहपाश फेंका था वह भी बाकी दो दलों में फूट डालने में बेअसर साबित हुआ।
संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट ने बढाई न्याय की गरिमा।
महाराष्ट्र से अलसुबह राष्ट्रपति शासन हटा कर भाजपा ने एक तरह से इंदिरा गांधी द्वारा आधी रात में लगाए आपात्तकाल की ही याद दिलाई थी। उस दिन संविधान तार तार हुआ या नहीं लेकिन सोमवार को संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट ने न्याय की गरिमा बढ़ा दी। जिस तरह जाते जाते रंजन गोगोई ने अयोध्या विवाद का ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। सीजेआई बोबड़े के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का सीधा प्रसारण जैसा निर्णय सुनाकर आमजन की भावना का सम्मान किया है।
सोनिया, पंवार के हाथों में होगा रिमोट..!
मोटाभाई इस पूरे ड्रामे में चुप रहे हैं, अब उनकी चुप्पी ही तय करेगी कि यह तिपहिया सरकार कितने दिन दौड़ेगी।शिवसेना के उद्धव सीएम जरूर बनेंगे लेकिन उनकी गति नियंत्रित करने वाली चाबी शरद पंवार और सोनिया गांधी के हाथों में रहेगी।हिंदू हित की बात करने वाले शिव सैनिकों की ऊंची आवाज में जय महाराष्ट्र से आकाश भले ही गूंजने लगे लेकिन महाराष्ट्र में अब उन्हें अनुशासित रहने के लिए मातोश्री सोनिया गांधी के इशारों पर चलना होगा। शिवसेना से हाथ मिलाकर यदि एनसीपी और कांग्रेस ने अपनी विचारधारा छोड़ने का साहस दिखाया है तो उद्धव ठाकरे ने भी भगवा रंग की अपेक्षा इन दिनों आंखों को सुकून देने वाले रंग की शर्ट पहन कर संकेत दे दिया है कि वे सबके साथ चलने-राजनीति की त्रिवेणी में स्नान का मन बना चुके हैं।अब अजित पंवार के लिए पंवार खेमा यदि नरमी दिखाता है तो अगले कुछ दिनों में समझ आ जाएगा कि प्लान के तहत ही भाजपा से हाथ मिलाने की आतुरता दिखाई थी।महाराष्ट्र में शिवसेना का सीएम बनने से स्व बाल ठाकरे की आत्मा को शांति तो मिलेगी लेकिन उन्होंने कांग्रेस और पंवार को लेकर जो तंज कसे थे कम से कम उद्धव को तो इस सौदेबाजी में याद नहीं रहे होंगे।
महाराष्ट्र को महीने भर से चले नाटक से फिलहाल तो राहत मिल गई है। देश की आर्थिक राजधानी हाथ से फिसलने के सदमे से उबरने के लिए भाजपा चुप बैठ जाए ऐसा लगता नहीं लेकिन महाराष्ट्र में जो हुआ उस पर बिहार और झारखंड की भी नजर है इसलिए भाजपा फिलहाल मोदी की तरह फड़नवीस को बधाई देने जैसी जल्दबाजी नहीं दिखाएगी।वह नहीं चाहेगी कि ये दोनों राज्य भी उसकी गफलत के चलते हाथ से फिसल जाएं।
चूंकि राजनीति में सब संभव है इसलिए राज ठाकरे वापस बिछड़े भाई की तरह उद्बव से गले मिल सकते हैं।एनसीपी का कांग्रेस में विलय और शरद पंवार कांग्रेस के अध्यक्ष भी हो सकते हैं।ऐसा कुछ नहीं भी हुआ तो महाराष्ट्र के इस विस्मयकारी गठबंधन ने देश में भाजपा विरोधी दलों के लिए मतभेद भुलाकर साथ आने की जमीन तो तैयार कर ही दी है।