अधिकारियों की नासमझी से परवान नहीं चढ़ पाया लता अलंकरण

  
Last Updated:  February 8, 2020 " 05:58 am"

इंदौर : गुरुवार शाम शहर के बास्केटबॉल काम्प्लेक्स में लता मंगेशकर अलंकरण समारोह आयोजित किया गया। असल में संस्कृति विभाग की बेरुखी के चलते यह प्रतिष्ठित समारोह अपनी चमक खो चुका था। अधिकारी इस समारोह के नाम पर केवल रस्म अदायगी करने लगे थे। यही कारण रहा कि कभी नेहरू स्टेडियम में हजारों रसिक स्रोताओं की मौजूदगी में होनेवाला यह भव्य समारोह छोटे से सभागृहों में महज औपचारिकता बनकर रह गया था। प्रदेश के उभरते गायकों के लिए लता अलंकरण समारोह के मंच पर प्रस्तुति देना गौरव की बात होती थी पर सरकारी ढर्रे ने उसपर भी पानी फेर दिया था। भला हो वर्तमान संस्कृति मंत्री विजयालक्ष्मी साधौ का, उनकी व्यक्तिगत रुचि के चलते लता अलंकरण के तहत प्रदेश स्तर पर उभरते गायक कलाकारों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का मौका मिला। कार्यक्रम के संचालनकर्ता संजय पटेल ने बिलकुल सही फ़रमाया की टीवी के रियलिटी शोज तो बाद में शुरू हुए पर लता अलंकरण के जरिये नव प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने का सिलसिला तो बहुत पहले शुरू हो गया था। बीच में यह परम्परा थम सी गई थी पर इस बार फिर इसे नवजीवन मिल गया। इसके लिए संस्कृति मंत्री साधुवाद की पात्र है।
खैर, बात अलंकरण समारोह की करें तो बास्केट बॉल स्टेडियम में दर्शक- श्रोताओं की मौजूदगी सम्मानजनक थी। समय पर आकर अपनी जगह सम्भाल चुके श्रोताओं का इंतजार लम्बा होता गया और करीब एक घंटे के विलम्ब से कार्यक्रम का आगाज हुआ। पता नहीं संस्कृति विभाग की क्या मजबूरी थी कि वो एक ही दिन( चंद घंटों) में ही सारे घर के बदल डालने पर आमादा था। भारतीय व्यंजनों के साथ जैसे चाइनीज का भी तड़का लगा दिया जाए कुछ वैसा ही हाल कार्यक्रम का था।
स्वागत की रस्म अदायगी, राज्यस्तरीय सुगम संगीत स्पर्धा के विजेताओं को पुरस्कृत करने और उनकी प्रस्तुति के बाद बारी आई लता अलंकरण से मेहमानों को नवाजे जाने की, वरिष्ठ गायिका सुमन कल्याणपुर को वर्ष 2017 और संगीतकार कुलदीप सिंह को 2018 के लता अलंकरण से नवाजा गया। संस्कृति मंत्री विजयालक्ष्मी साधौ ने सम्मान स्वरूप उन्हें प्रशस्ति पत्र, शाल- श्रीफल और दो लाख रुपए की धनराशि का चेक भेंट किया। इस सारी कवायद में घड़ी का कांटा नौ के आंकड़े को छूने के करीब पहुंच गया था।
जैसे- तैसे सुमन कल्याणपुर के साथ संवाद का सिलसिला मंगला खाडिलकर ने शुरू किया। उन्होंने भरसक प्रयास किया कि सुमन ताई अपने जमाने के और खुद के गाए गीत गुनगुनाए। श्रोता भी इतनी देर से इसी बात का इंतजार कर रहे थे लेकिन उनको निराशा हाथ लगी। सुमन ताई की तबियत नासाज होने से वे गा नहीं पा रही थी। आखिर वे मंच छोड़ गई। उसके बाद सुमन ताई के गाए गीत मुम्बई, पुणे से बुलाए गए कलाकारों ने पेश किए पर यहां समय का पेंच फंस गया। संस्कृति विभाग के अधिकारियों ने लाखों रुपए देकर मोनाली ठाकुर को भी प्रस्तुति देने बुला लिया था। उन्हें समय देने के चलते सुमन ताई के गीतों की प्रस्तुति दे रहे गायक कलाकारों को राजधानी एक्सप्रेस की गति से गीतों की बानगी देने पर मजबूर होना पड़ा। दो- चार गीतों के मुखड़े गाकर उन्होंने रुखसत ले ली। संगीतकार कुलदीप सिंह और उनके सुपुत्र जसविंदर को तो महज एक ग़ज़ल और गीत गाकर ही सन्तोष करना पड़ा। जसविंदर बहुत अच्छे गजल गायक है। उन्हें समय मिलता तो वे समां बांध सकते थे पर अधिकारी तो मोनाली को मंच सौंपने के लिए उतावले हो रहे थे।
करीब सवा दस बजे तड़किले- भड़कीले अंदाज, चकाचौंध भरी रोशनी और कानफोड़ू म्यूजिक के बीच मोनाली का मंच पर अवतरण हुआ। दो गानों के बाद ही वे दमादम मस्त कलन्दर पर उतर आई। लोग भी समझ गए थे कि गानों के नाम पर सिर्फ लटके- झटके ही झेलना है, सो उन्होंने घर की राह पकड़ने में ही भलाई समझी।
उन्हें क्यों बुलाया गया, समझ से परे था। कार्यक्रम को सुमन ताई के गीतों और जसविंदर के गजल गायन में बांट दिया जाता तो न केवल उसकी गरिमा बढ़ती बल्कि श्रोताओं की कुछ अच्छा सुनने की हसरत भी पूरी हो जाती पर अधिकारियों की नासमझी ने सब गड़बड़ कर दिया।

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