हांगकांग है भारत को लेकर चीन के आक्रामक होने की वजह..?

  
Last Updated:  June 11, 2020 " 06:50 am"

# कीर्ति कापसे #

हाल ही में चीन ने हांगकांग की फ़्रीडम ख़त्म करने के लिए अपनी संसद में एक विधेयक पारित किया है। उसके इस कदम ने अनेक देशों को चकित कर दिया है। इसी के साथ अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प भी खुल कर ट्रेड वार में सामने आ गए।

तो समझते है की हाँगकाँग के साथ ये जो विवाद चल रहा है वो किस तरह का है ..!

हांगकांग बहुत ही विकसित देश है । किसी भी देश के विकास के लिए उसे लम्बी प्रक्रिया से गुजरना होता है । चीन इस पर अधिकार जताता है।हांगकांग के दो सौ वर्ष पुराने इतिहास में झांककर देखें तो भारत भी उस समय ग़ुलाम था और देश में ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन था। उनका पूरा फ़ोकस भारत को निर्दयता से लूटने का था ।भारत के साथ साथ अंग्रेजो का ध्यान चीन पर भी गया कि हम क्यो न चीन को भी क़ब्ज़े में ले ले ? इस सोच के साथ ईस्ट इंडिया कम्पनी ने चीन से भी व्यापार शुरू किया। इनका मुख्य व्यापार रेशम और चाय का था ।चीन में उस वक़्त रेशम और चाय का उत्पादन अधिक था। चीन व्यापार के ऐवज में चाँदी चाहता था लेकिन अंग्रेज बिना कुछ दिए ही व्यापार करना चाहते थे।वो चाहते थे ब्रिटेन में निर्मित समान चीन में बेचना और इसके एवंज़ में चाय और रेशम चीन से लेना।लेकिन चीनी ब्रिटेन निर्मित समान में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते थे। ब्रिटेन से कुछ भी नहीं लेते थे।ब्रिटेन ने एक चाल के तहत चीन में अफ़ीम बेचनी शुरू कर दी जिसकी लत धीरे धीरे चींनियो को लग गई।कालांतर में चीनी अफ़ीम के इतने आदि हो गए कि वे अंग्रेजो से चाय और रेशम के ऐवज में अफ़ीम ख़रीदने लगे ।यहाँ अंग्रेजो को दोगुना फ़ायदा था …वह भारत में भारतीय किसानों से ज़बरदस्ती अफ़ीम का उत्पादन करवाता।और ओने पौने दाम पर ख़रीद कर उसे चीन को बेच देता और ऐवज में उससे चाय और रेशम ले लेता ।इससे चीन को घाटा होने लगा क्यो की चाय और रेशम तो अफ़ीम के बदले जा रहा था।चीन ने ब्रिटेन के इस कदम को रोकने के लिए अफ़ीम का अपने देश में व्यापार अवैध घोषित कर दिया। इससे ब्रिटेन को व्यापारिक घाटा होने लगा तो ब्रिटेन ने चीन के विरुध यूद्ध घोषित कर दिया। जिसे ब्रिटेन चीन अफ़ीम यूद्ध कहते है ।यह यूद्ध 1839- 1840 में हुआ।इस यूद्ध में चीन हार गया ।और चीन के बंदरगाह हांगकांग पर ब्रिटेन ने क़ब्ज़ा कर लिया। इसी रास्ते से वह चीन में अफ़ीम बेचने लगा।चीन ने फिर इसका विरोध किया तो इन दोनो में दोबारा अफ़ीम यूद्ध हुआ ।जो कि 1856 से 1860 के बीच हुआ।जिसमें ब्रिटेन ने हांगकांग के बाहरी और बड़े हिस्से पर क़ब्ज़ा कर लिया।जब चीन और ब्रिटेन में हांगकांग को लेकर तनाव बढ़ने लगा तो ब्रिटेन ने चीन से हांगकांग को लीज़ पर ले लिया।क्यो की सन 1800 में जितना किराया लगता उससे कई गुना अधिक फ़ायदा उसे अफ़ीम बेचने से था । तो ब्रिटेन न ेहाँगकाँग को 99 साल के लिए सन 1898 में लीज पर ले लिया।अब ये 99 साल की लीज खतम हुई सन 1999 में ..
इस अवधि में हांगकांग इतना विकसित हो गया की विश्व की हर बड़ी कम्पनी का मुख्यालय यहां है।यह मुख्य समुद्री मार्ग पर भी पड़ता है । यदि ब्रिटेन यहाँ से चला गया तो इस पर चीन का क़ब्ज़ा हो जाता।हाँगकाँग की प्रमुख कम्पनियों ने ब्रिटेन को ही रास्ता सुझाने को कहा..
ब्रिटेन ने चीन से समझौता किया वन नेशन टू लॉ ..यानी एक देश दो क़ानून का। ब्रिटेन ने कहा ये क़ानून आप 50 साल तक रखिए ।इसके बाद आपका जो मन करे हांगकांग के साथ करिए। कम्पनियों से इन 50 वर्ष में अपना रास्ता निकालने की बात कही ।कम्पनियों को लगा की जैसे ही 1997 में ब्रिटेन वापस जाएगा, चीन हांगकांग पर क़ब्ज़ा कर लेगा … क्यो की चीन का वादा भी चीन के सामान जितना ही चलता है । बहुत सी कंपनिज तो 1997 में ही हांगकांग छोड़ कर चली गई।और उन्होंने अपना काम काज UAE में शुरू कर दिया।वो UAE क्यो गई क्यों कि UAE ने कहा कि हम भी मुख्य समुद्री मार्ग के किनारे बसे है और हर वो सुख सुविधा आप लोगों को देंगे जो हांगकांग आपको देता था । तो सारी कम्पनियाँ UAE आ गई … इससे uAE का कितना फ़ायदा हुआ आप देख ही रहे है ।1990 से अब के दुबई की आप तुलना कर सकते है।
लेकिन जो कंपनिज हांगकांग में ही रुक गई चीन ने शुरूवात में उन्हें कोई दिक़्क़त नहीं दी ।
यहां ये ध्यान देने की बात है कि चीन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है । चीन में आप प्रदर्शन नहीं कर सकते। सरकार के ख़िलाफ़ नहीं जा सकते। जबकि हांगकांग में लोकतंत्र था, जहाँ इन सब बातो की स्वतंत्रता थी। फ़्रीडम आँफ स्पीच था । धीरे धीर चीन ने विचार किया कि हांगकांग के फ़्रीडम को कैसे ख़त्म किया जाए।तो पश्चिमी देश हांगकांग को बचाने के लिए कुछ छूट देने लगे।यानी हांगकांग को टेक्स में छूट मिलने लगी, जिससे उसकी आयडेंटिटी बरकरार रहे। ओलम्पिक में भी हांगकांग अपनी टीम लेकर जाता है ।चीन इस क़ानून का अब दुरुपयोग करने लगा। वो अपना उत्पादित माल हांगकांग भेज देता और वहाँ से कम टेक्स में विदेशों को ।हालाँकि अमेरिका चीन की इस चालाकी को समझ चुका था । लेकिन वो ये नहीं चाहता था कि चीन हांगकांग पर नियंत्रण करे ।पर हांगकांग को तो चीन का अंग बनना ही था,क्यो कि 99 वर्ष की लीज़ तो 1997 में ख़त्म हो चुकी थी। शर्त के मुताबिक़ चीन अगले पचास वर्ष तक हांगकांग के नियमों में परिवर्तन नहीं कर सकता। यह शर्त 2047 में ख़त्म होगी लेकिन चीन हांगकांग को अपने रंग में ढालने की कोशिश में लगा है जैसा कि चीन के अन्य प्रांत है ।हांगकांग उतना ही स्वतंत्र है जैसे कि भारत के लोग। भारत का एक आम नागरिक भी सरकार की नीतियो पर उँगली उठा सकता है। चीन ने 2014 से ही हांगकांग को दबाना शुरू कर दिया।चीन की ग़लत नीतियों के कारण हांगकांग में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। चीन भी यहाँ अधिक सख़्ती नहीं दिखा सकता था । हांगकांग में विदेशी मीडिया भी है। 2047 तक तो उसे रुकना ही होगा ।तब हांगकांग में जो लोग प्रदर्शन कर रहे थे वे छाते का प्रयोग करने लगे जिसे अम्ब्रेला मूवमेंट कहते है ।अब इस मूवमेंट की ज़रूरत क्यो पड़ी द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रदर्शनकारियों पर केमिकल स्प्रे का छिड़काव किया जाता था।जिससे प्रदर्शनकारियों की आँखों और शरीर पर जलन होने और साँस लेने में तकलीफ़ होने लगती।इससे बचाव के लिए प्रदर्शनकारियों ने छाते का सहारा लिया। जब जब चीन को मौक़ा मिला, उसने हांगकांग को दबाना शुरू किया।ये सोचकर कि 2047 आते आते हम यहाँ के लोगों को पूरी तरह से मुट्ठी में कर लेंगे।

2017 से शुरू हुआ बवाल..

हांगकांग में नया बवाल शुरू हुआ 2017 में, जिसने चीन ने कहा की हांगकांग में चुनाव तो होता रहेगा लेकिन चुनाव में कौन कौन खड़ा होगा इसका निर्णय बीजिंग में बैठी कम्युनिस्ट सरकार करेगी ।यानी चुनना आपको है लेकिन चुनना उन्हीं को है जिन्हें चीन भेज रहा है ।इसी से नया विवाद खड़ा हो गया।चीन ने भेजा चेरीलोंग को जो कि कम्युनिस्ट सरकार की करीबी थी और हांगकांग की चीफ़ एग्जीक्यूटिव है। हांगकांग के सभी महत्वपूर्ण निर्णय वही लेती है ।

चीन में सोशल मीडिया उनका ख़ुद का है। वहाँ WhatsApp ,titter,Facebook आदि नहीं चलता । लेकिन हाँगकाँग में चलता है । हांगकांग के लोग इसी के माध्यम से आंदोलन की रूप रेखा तैयार किए हुए थे।चीन ने एंट्री की हांगकांग में और हांगकांग में फ़ेक I’d बनाकर लोगों को भड़काना शुरू किया, जिसका वहाँ के लोगों ने विरोध कर के फ़ेसबूक, ट्विटर को शिकायत की तो वो फ़ेक id बंद हो गई।इस लिए ये विद्रोह नहीं दबा पाया। चीन ये लगातार कोशिश करता रहा की जब जब मौका मिले इन्हें दबाते रहो । और ये मौक़ा उसे 2018 में मिल भी गया । हांगकांग का एक चांगटोंगकाई नामक लड़का अपनी गर्लफ़्रेंड को घुमाने ताइवान ले गया । जहाँ उसने अपनी गर्लफ़्रेंड की हत्या कर दी । हत्या ताइवान में हुई थी और गर्ल्फ़्रेंड की लाश अब भी ताइवान में थी ।इस लिए ताइवान ने हांगकांग से लड़के के प्रत्यर्पण की मांग की।क्यो की हत्या ताइवान में हुई थी और वही उसे दंडित भी करते ।हांगकांग का ताइवान के साथ तब तक कोई प्रत्यर्पण का क़ानून नहीं था। तो 2019 में एक क़ानून पारित हुआ।इस क़ानून को पारित करवाया चार्लीलॉग ने ।उन्होंने इस क़ानून में दो बातें जोड़ दी ।
– जो हांगकांग के अपराधी है उन्हें ताइवान भेज दिया जाएगा सजा सुनाने के लिए।
– यहाँ के अपराधी को चीन भी भेज दिया जाएगा सजा सुनाने के लिए।

इसका नतीजा ये हुआ की चीन ने हांगकाँग के लोगों को चिन्हित किया जो चीनी सरकार के विरुद्ध गतिविधियों में लिप्त थे।उनका प्रत्यर्पण करवा लिया । और मौत के घाट उतार दिया।
हांगकाँग के कुछ पुस्तक विक्रेताओं को सिर्फ़ इस लिए मरवा डाला क्योंकि कुछ किताबो में चीन के विरुद्ध बातें लिखी थी।
चीन ने चेरीलोंग की मदद से हांगकांग में नया नेशनल सिक्योरिटी लॉ पारित करवा दिया।
– 1.अगर आप प्रोटेस्ट करते है दो देश विरोधी है ।
– 2. अगर आप सरकार के विरुद्ध बोलते है तो भी आप देश विरोधी है।

अब बात करते हैं वर्तमान परिदृश्य की, चीन चाहता है की हांगकांग को दबा लिया जाय क्यो कि कोरोना वायरस फैला है और सोशल डिसटेसिंग के नाम पर कोई भी आंदोलन करने नहीं उतरेगा। किसी ने हिमाकत की भी तो उसे कुचल दो।

इसलिए सीमा पर आक्रामक है चीन।

अब भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ा..जो मैटर हमारा जम्मू कश्मीर के साथ है वैसा ही मुद्दा चीन का हांगकांग के साथ है ।
भारत ने जब 370धारा हटाई तब चीन को उसकी पूरी जानकारी दी थी की मुद्दा क्या है और आप हस्तक्षेप मत कीजिए।
भारत का इसमें एक और फ़ायदा है जितना चीन हांगकांग पर कठोर होगा वहाँ की कम्पनियाँ बाहर भागेंगी और भारत उन्हें अपने यहां आमंत्रित कर सारी सुविधाएँ दे देगा।
तो चीन हांगकांग से भाग रही कम्पनियों से भी ख़फ़ा है और इसी लिए भारत के बॉर्डर पर ज़्यादा एग्रेसिव है ।
चीन के सामने विकट समस्या है। यदि वह कठोर नहीं होता है तो हांगकांग के लोग प्रदर्शन करते हैं। यदि वो कठोर होता है तो कम्पनियाँ भाग जाती हैं। कुल मिलाकर हांगकांग को लेकर चीन दुविधापूर्ण स्थिति में है। 2047 अभी दूर है। हो सकता है चीन हांगकांग पर पहले ही पूर्ण कब्जा जमा ले। जिसतरह के कदम वो उठा रहा है, उसको देखते हुए इस आशंका को बल जरूर मिलता है पर अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते उसके लिए ऐसा करना आसान भी नहीं होगा।

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