छत्रपति शिवाजी महाराज के 345 वे राज्याभिषेक दिवस के उपलक्ष्य में शोभा कुटुम्बले स्मृति व्याख्यान का आयोजन जाल सभागृह में किया गया। व्याख्यान का विषय था ‘ मध्यकालीन भारत में छत्रपति शिवाजी का प्रभाव’ प्रोविडेंट फंड नई दिल्ली के रीजनल कमिश्नर अमित वशिष्ठ कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के बतौर मौजूद रहे। अध्यक्षता दैनिक स्वदेश के प्रबंध संचालक दिनेश गुप्ता ने की।
संदर्भित विषय पर बोलते हुए श्री वशिष्ठ ने 7 वी शताब्दी से लेकर छत्रपति शिवाजी के उदय होने तक हुए विदेशी आक्रमण और गुलामी में जी रहे देशवासियों के बदतर हालात पर प्रकाश डाला। उन्होंने तथ्यों के साथ अपनी बात रखते हुए कहा कि छत्रपति शिवाजी ने आक्रमणकारी दिल्ली सल्तनत के अत्याचार, अनाचार और अन्याय से पस्त लोगों में उम्मीद की नई किरण जगाई। तत्कालीन परिस्थितियों में एकजुट होकर राष्ट्र के पुनरोत्थान की भावना जगाने का काम उन्होंने किया। श्री वशिष्ठ ने छत्रपति शिवाजी के जीवन के कई अनछुए पहलुओं की तथ्यात्मक बानगी पेश करते हुए कहा कि वे पहले ऐसे महाराजा थे जिन्होंने हिन्दवी स्वराज्य का न केवल सपना देखा बल्कि उसे साकार कर दिखाया।
भारत की सभ्यता जीवित रहने का श्रेय शिवाजी को।
श्री अमित वशिष्ठ ने अरब और तुर्किस्तान से होनेवाले आक्रमणों का जिक्र करते हुए कहा कि इन आक्रमणों में दुनिया की कई सभ्यताएं नष्ट हो गई। ईरान, इराक में तत्कालीन सभ्यताओं को खत्म कर दिया गया। कई अन्य देश भी इसकी चपेट में आए। केवल दो देशों की सभ्यताएं पुनर्जीवित होकर उभरी। इनमें एक स्पेन और दूसरा भारत है। ये छत्रपति शिवाजी का ही प्रभाव था कि सैकड़ों सालों से अत्याचार सहते हुए पस्त हो चुके लोगों में राष्ट्रवाद का जज्बा जाग्रत हुआ और विदेशी सत्ता के खिलाफ वे उठ खड़े हुए।
मराठो से पार नहीं पा सका औरंगजेब।
मुगलिया सल्तनत मराठों को कभी हरा नहीं पाई। औरंगजेब खुद 5 लाख की सेना के साथ मराठों को कुचलने और उनके क्षेत्र पर कब्जा करने पहुंचा था। 28 साल तक मराठों के साथ उसकी जंग चलती रही पर वह उन्हें हरा नहीं पाया। दक्खन में ही 1707 में उसकी मौत हो गई। मराठों को गुलाम बनाकर रखने का सपना देखनेवाला औरंगजेब बाद में दिल्ली तक नहीं लौट पाया। औरंगजेब की मौत के महज 30 साल बाद मराठों ने मुगल सल्तनत को उखाड़ फेंकने के साथ देश के अधिकांश भू भाग और दिल्ली पर भगवा परचम लहरा दिया था। यही नहीं काबुल तक उन्होंने अपना प्रभुत्व कायम कर लिया था। इसके पीछे छत्रपति शिवाजी के राष्ट्रवाद की ही प्रेरणा थी।
शिवाजी के अभ्युदय के साथ बन्द हो गए जोहर।
विदेशी आक्रमणकारी सेनाएं कत्लेआम और लूटपाट मचाने के साथ लोगों को गुलाम बनाकर उनका धर्मांतरण कर देते थे। वहीं महिलाओं की अस्मत लूटकर उन्हें सरेआम नीलाम कर दिया जाता था। अपनी और रियासत की लाज बचाने के लिए रानियां और महिलाएं जिंदा आग में कूदकर जौहर कर लेती थी। ऐसे घटाटोप अंधेरे में छत्रपति शिवाजी का अभ्युदय हुआ। उन्होंने नाउम्मीद हो चुके लोगों में हिन्दवी स्वराज्य का जज्बा जगाया। यही कारण था कि अत्याचारी और अस्मत के लुटेरों को अपनी जान के लाले पड़ गए। इसका असर ये हुआ कि महिलाएं सुरक्षित महसूस करने लगी और जोहर होना बंद हो गए। शिवाजी कद में छोटे थे पर उनका चारित्रिक कद आसमान को छूता था। महिलाओं का वे बेहद सम्मान करते थे। उन्होंने कभी धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं किया। कभी किसी के धार्मिक स्थल में तोड़फोड़ नहीं की। कभी धर्मांतरण को बढ़ावा नहीं दिया। इसीलिए वे राष्ट्रनायक कहलाए।
अन्य देशों ने किया शिवाजी की युद्धनीति का अनुसरण।
श्री अमित वशिष्ठ ने अपने धाराप्रवाह उदबोधन में छत्रपति शिवाजी की युद्धनीति पर प्रकाश डालते हुए कहा आक्रमणकारियों की विशाल सेनाओं से टक्कर लेने के लिए शिवजी ने नई युद्धनीति अपनाई जिसे गुरिल्ला युद्ध के रूप में पहचान मिली। उससमय किले काबिज करने की लड़ाई बरसों चलती थी। इसका तोड़ निकालते हुए शिवाजी 20- 25 किमी के अंतराल में दो- दो किले बनवाए ताकि एक किले की शत्रुओं द्वारा घेराबन्दी किये जाने पर दूसरे किले से भी उनपर धावा बोला जा सके। शिवाजी की युद्धनीति का गहन अध्ययन करने के बाद वियतनाम, इजराइल और अन्य कई देशों ने उसका अनुसरण किया।
आधुनिक इतिहासकारों ने गलत ढंग से पेश किया इतिहास।
श्री वशिष्ठ ने ब्रिटिश, वामपंथी और कथित आधुनिक कहे जाने वाले इतिहासकारों पर इतिहास को गलत ढंग से पेश करने का आरोप लगाया। उनका कहना था कि छत्रपति शिवाजी जैसे राष्ट्रनायकों के योगदान को कमतर आंकने का काम इन इतिहासकारों ने किया है।
श्री वशिष्ठ के अद्भुत व्याख्यान को सुनने के लिए रिटायर्ड जस्टिस वीएस कोकजे सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे। व्याख्यान के बाद सवाल- जवाब का भी दौर चला।
आयोजक संस्था की ओर से इंजीनियर श्रीनिवास कुटुम्बले ने अतिथियों का स्वागत किया और आभार प्रदर्शित किया।