इंदौर:{के.राजेन्द्र} ये कैसी अराजकता है… ये कैसा जंगलराज है..अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना गुनाह हो गया है। रसूखदारों के वाहन मौत बनकर सड़कों पर दौड़ रहे हैं। सड़कें केवल इन्हीं के लिए बनाई गई हैं। इनकी गाड़ियां सड़कों पर निकले तो अन्य लोगों को अपने वाहन साइड में खड़े कर देना चाहिए नहीं तो इनके बेलगाम वाहन चालक उन्हें टक्कर मार देंगे, कुचल देंगे यहां तक कि जान भी ले लेंगे। और हां.. इस गलतफहमी में मत रहिये की कानून की रक्षा का दम भरने वाली पुलिस आपकी फरियाद सुनेगी..। वह तो हफ्ता लेकर इन रसूखदारों के दरबार में हाजिरी बजाती है। अगर रसूखदार सत्ता से जुड़ें हों तो फिर कहना ही क्या…। आम आदमी की क्या बिसात जो इनके खिलाफ शिकायत भी कर सके। निजी कंपनी में काम करनेवाले बंसल दंपत्ति से यही गलती हो गई कि उन्होंने रसूखदारों के वाहन से टक्कर मारे जाने की शिकायत करने का दुस्साहस किया। वह भी उन हैवानों से जो वर्दी पहनकर कानून की रखवाली का दावा करते हैं। वर्दी तो बस नाम भर की है। रसूखदारों और उनके गुंडों को संरक्षण देना ही तो इनकी फितरत है। असल में ये कानून के रक्षक नहीं भक्षक बन गए हैं। बंसल दंपत्ति का कसूर यही था कि उन्होंने जिम्मेदार नागरिक होने के नाते उन्हें टक्कर मारकर भाग रहे वाहन चालक के खिलाफ कार्रवाई की मांग मौके पर मौजूद पुलिसवालों से कर दी। अब वाहन सत्ता से जुड़े विधायक के भाई की कंपनी का था जिनसे उनके हित सधते हैं तो पुलिस वाले भला उनके खिलाफ कार्रवाई की बात सुन भी कैसे सकते हैं। बंसल दंपत्ति पुलिसवालों के पास गए तो थे न्याय की गुहार लेकर लेकिन बदले में उन्हें मिली बदतमीजी, गंदी गालियां, अपशब्दों की बौछार और लात- घूसों से बेरहमी के साथ कि गई निर्मम पिटाई। हैवान पुलिसवाले ये भी भूल गए कि वो एक महिला पर भी हाथ उठा रहे हैं जिसकी इजाजत न समाज देता है और न ही कानून। इस घटना को सैकड़ों लोगों ने देखा। उन्होंने ही बीचबचाव भी किया पर हैरत की बात ये है कि वरिष्ठ अधिकारियों को इसमें पुलिसकर्मियों की हैवानियत नजर नहीं आई। खुद एक महिला होने के बावजूद इंदौर पुलिस की मुखिया को पीड़ित दंपत्ति का दर्द, उनके साथ की गई बर्बरता दिखाई नहीं दी। दोषी पुलिसवालों और वाहन चालक पर कार्रवाई करने की बजाय उन्होंने पीड़ित बंसल दंपत्ति पर ही शासकीय कार्य में बाधा डालने का प्रकरण दर्ज करवा दिया। टक्कर मारनेवाले वाहन चालक की शिकायत करना क्या शासकीय कार्य में बाधा डालना है..। दंपत्ति के साथ जानवरों जैसा सलूक तो पुलिसकर्मियों ने किया। उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई..।
देखा जाए तो जिसतरह दहेज कानून का दुरुपयोग हो रहा है वैसा ही शासकीय कार्य में बाधा डालने के कानून का भी हो रहा है। जो भी पुलिस और प्रशासन के खिलाफ मुंह खोलेगा उसका हश्र बंसल दंपत्ति की ही तरह होगा..। यही मैसेज देने की कोशिश हो रही है।
हैरत की बात तो ये है कि कमलनाथ सरकार को तबादला उद्योग चलाने के अलावा कोई काम ही नहीं बचा हैं। उसके पास श्वानों तक के तबादले करने का समय है लेकिन आम आदमी की पीड़ा पर ध्यान देने की फुरसत नहीं है। आम आदमी अन्याय का शिकार होता रहे, रक्षक ही भक्षक बनकर सरेआम उसे प्रताड़ित करते रहें इससे उसे कोई लेना- देना नहीं है। और हा वो गैंग भी चुप्पी साधे बैठी है जो आए दिन असहिष्णुता का राग अलापती रहती है। उसे भीे बंसल दंपत्ति के साथ हुई नाइंसाफी दिखाई नहीं दी। इंदौर जैसे जागरूक शहर में पुलिस इसतरह क्रूरता बरत सकती है तो गांव- देहात में क्या हालात होते होंगे इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
आपकी पुलिस हैवान बन गई है कमलनाथजी..!
Last Updated: July 18, 2019 " 05:32 pm"
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