इंदौर में स्थापित प्लांट में प्रतिदिन होगा 17 हजार 500 किलो बायो सीएनजी का उत्पादन

  
Last Updated:  February 18, 2022 " 05:20 pm"

इंदौर : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वेस्ट-टू-वेल्थ की अवधारणा को साकार करने तथा स्वच्छता के क्षेत्र में नवाचार के उद्देश्य से नगर निगम, इन्दौर द्वारा गीले कचरे के निपटान हेतु 550 मैट्रिक टन प्रतिदिन क्षमता का बायो सी.एन.जी प्लांट स्थापित किया गया है। यह एशिया महाद्वीप में जैविक अपशिष्ट से बायो सी.एन.जी का सबसे बडा तथा देश का पहला प्लांट हैं। शहर के देवगुराडिया ट्रेंचिंग ग्राउण्ड स्थित इस बायो सी.एन.जी. प्लांट का लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से करेंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुख्य आतिथ्य में 19 फरवरी 2022 को दोपहर एक बजे यह कार्यक्रम सम्पन्न होगा। लोकार्पण समारोह में राज्यपाल मनगुभाई पटेल और सीएम शिवराज सहित उनकी कैबिनेट के सदस्य, जनप्रतिनिधि और विशिष्टजन मौजूद रहेंगे।

नगर निगम प्रशासक एवं संभागायुक्त डॉ. पवन कुमार शर्मा ने बताया है कि बायो सी.एन.जी प्लांट पी.पी.पी. मॉडल पर आधारित है। इस प्लांट की स्थापना पर जहां एक ओर नगर निगम, इन्दौर को कोई वित्तीय भार वहन नहीं करना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर प्लांट को स्थापित करने वाली एजेंसी IEISL, नई दिल्ली द्वारा नगर निगम, इन्दौर को प्रतिवर्ष 2.50 करोड़ रुपए प्रीमियम के रूप में अदा किए जाएंगे। इस बायो सी.एन.जी. प्लांट में प्रतिदिन 550 एमटी गीले कचरे (घरेलू जैविक कचरे) को उपचारित किया जाएगा, जिससे 17,500 किलोग्राम बायो सी.एन.जी. गैस तथा 100 टन उच्च गुणवत्ता की आर्गेनिक कम्पोस्ट का उत्पादन होगा। यह प्लांट जीरो इनर्ट मॉडल पर आधारित है, जहां किसी प्रकार का अनुपचारित वेस्ट नहीं निकलेगा। प्लांट से उत्पन्न होने वाली 17 हजार 500 किलोग्राम बायो सी.एन.जी. में से 50 प्रतिशत गैस नगर निगम, इन्दौर को लोक परिवहन की संचालित बसों के उपयोग हेतु बाजार दर से 5 रुपये प्रति किलोग्राम से कम दर पर उपलब्ध होगी। शेष 50% गैस विभिन्न उद्योग एवं वाणिज्यिक उपभोक्ताओं को विक्रय की जा सकेगी।

परीक्षण के बाद किया गया था इंदौर का चयन।

कलेक्टर मनीष सिंह का कहना है कि इन्दौर नगर का वेस्ट सेग्रीगेशन, उत्तम क्वालिटी का होने से IEISL, नई दिल्ली द्वारा इस प्लांट को इन्दौर में स्थापित करने का निर्णय लिया गया। प्लांट स्थापना के निर्णय के पूर्व उक्त कंपनी द्वारा गीले कचरे के बीते एक वर्ष में 200 से अधिक नमूने लिए जाकर परीक्षण कराया गया। परीक्षण के परिणाम के आधार पर सामने आया कि गीले कचरे में मात्र 0.5 से 0.9 प्रतिशत ही रिजेक्ट उपलब्ध है, जो कि अन्य युरोपियन देशों की तुलना में भी उच्च गुणवत्ता का होना पाया गया।

550 टन गीले कचरे का होगा निपटान।

आयुक्त नगर निगम प्रतिभा पाल ने बताया है कि उक्त बायो सी.एन.जी. प्लांट की स्थापना से नगर निगम, इन्दौर को आय के साथ ही नगरीय परिवहन व्यवस्था सुदृढ करने में मदद मिलेगी। बायो सी.एन.जी. प्लांट से प्रतिदिन 550 टन गीले कचरे का निपटान हो सकेगा, साथ ही वायु गुणवत्ता सुधार की दिशा में यह मील का पत्थर साबित होगा। इसके अतिरिक्त नगर निगम, इन्दौर द्वारा उपरोक्त प्लांट के संचालन से कार्बन क्रेडिट अर्जित कर भी आठ करोड़ रुपये की राशि प्राप्त की जाएगी।

पूर्व प्रसंस्करण (प्री-ट्रीटमेंट)

स्त्रोत आधारित पृथक्कीकरण प्रक्रिया के बाद जैविक कचरे को बॉयो गैस बनाने के लिए इसका पूर्व प्रसंस्करण करना आवश्यक होता है। इसके लिए प्लांट में अत्याधुनिक उपकरण की आवश्यकता होती है। इंदौर शहर से संग्रहित किए गए जैविक कचरे में अजैविक पदार्थों की मात्रा बहुत कम होती हैं, फिर भी इस कचरे को प्रसंस्करण प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इसके लिए प्लांट के अंदर अत्याधुनिक एवं स्वचालित उपकरण को स्थापित किया गया है। जैविक कचरे को एक गहरे बंकर में प्राप्त किया जाता है। जहाँ से इसे ग्रेब क्रेन की मदद से प्रसंस्करण उपकरण तक पहुंचाया जाता है।
जैविक कचरे में से अजैविक एवं फायबरस पदार्थों को बड़े स्क्रीन द्वारा अलग किया जाता हैं। 120 एम.एम. से कम गीले कचरे को कन्वेयर बेल्ट द्वारा सेपरेशन हैमर मिल में भेजा जाता हैं। सेपरेशन हैमर मिल एक अत्याधुनिक स्वचालित मशीन हैं जो गीले कचरे को अच्छी गुणवत्ता के फीड में बदल देता हैं, जिसे स्लरी कहा जाता हैं। इस मशीन में ठोस एवं तरल पदार्थों की मात्रा का अनुपात स्वचालित माध्यम से नियंत्रित किया जाता हैं। इसके लिए जैविक ठोस कचरे में री-साइकिल वाटर को उचित अनुपात में मिलाया जाता है जिससे उचित गुणवत्ता की स्लरी तैयार होती हैं। सेपरेशन हैमर मिल में अजैविक पदार्थों को स्वचालित पद्धति द्वारा अलग किया जाता है, जिसका नियंत्रण कम्प्युटरकृत तरीके से किया जाता है।

पूर्व अपघटन प्रक्रिया (प्री-डायजेस्टर)

हैमर मिल द्वारा तैयार की गई सिलरी को पूर्व अपघटन टेंको में भेजा जाता है। जहाँ पर लगभग 2 दिनों तक इसका अपघटन होता है जिसके बाद इसका बायो मिथेनेशन एवं अपघटन सरल हो जाता है।

बॉयो मिथेनेशन प्रक्रिया।

जैविक कचरे को ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में लगभग 25 दिनों तक अपघटन प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इस प्रक्रिया को बॉयो मिथेनेशन प्रक्रिया कहां जाता है, जिसमें सुक्ष्म जीवों का बहुत बड़ा योगदान होता है। यह सूक्ष्म जीव एक नियंत्रित तापमान पर जैविक अपघटन की प्रक्रिया को पूर्ण करते हैं। इस प्रक्रिया में ऊर्जा के रूप में बायो गैस का उत्पादन होता है, जिसे डायजेस्टर टैंकों के उपरी हिस्सों में इकटठा किया जाता है, जहाँ से इसे गैस पाइप लाइन द्वारा बहुत बड़े स्टोरेज गुब्बारों में संग्रहित किया जाता है। इन गुब्बारों में एकत्रित किए गए बायो गैस में मीथेन गैस की मात्रा लगभग 55-60 प्रतिशत होती है।
गीले कचरे से बायो गैस बनाने के लिए मुख्य जरूरत, स्रोत पर ही इसका पृथक्करण हैं। इंदौर शहर में गीले कचरे का स्त्रोत पर ही पृथक्कीकरण शत प्रतिशत किया जाता है, जिससे बायो गैस का उत्पादन प्रति टन अधिक हो जाता है। इंदौर शहर में स्थापित किए गए इस प्लांट पर अत्याधुनिक सी.एस.टी.आर. मिजोफिलिक (CSTR Mesophilic) तकनीक पर आधारित डायजेस्टर टैंकों का निर्माण किया गया। इन टैंकों में तापमान नियंत्रण के लिए हीट एक्सचेंजर एवं स्लरी की एकरूपता को बनाए रखने के लिये सेन्ट्रर मिक्सर लगाए गए हैं, जिसे यूरोपीय देशों से आयात किया गया है।

गैस शुद्धिकरण एवं उन्नयन प्रक्रिया।

बायोगैस बलून में संग्रहित किए गए गैस को शुद्धिकरण एवं उन्नयन प्लांट में भेजा जाता है, जहाँ पर वी.पी.एस.ए (VPSA) तकनीक का प्रयोग कर इसका उन्नयन किया जाता हैं। गैस शुद्धिकरण प्रक्रिया के बाद इस गैस को बायो सी.एन.जी कहा जाता है। जिसमें मीथेन गैस का प्रतिशत 90 से 96 प्रतिशत हो जाता है। इस प्लांट से प्रतिदिन लगभग 17 हजार 500 किलोग्राम बायो सीएनजी का उत्पादन किया जाएगा, जिसका उपयोग सिटी बसों में ईंधन के रूप में किया जा सकेगा। इस प्लांट से लगभग 400 सिटी बसों एवं 1500 छोटो वाहनों में बायो ईधन की पूर्ति की जाएगी। इससे पर्यावरण मानकों का भी उन्नयन होगा।

पोस्ट ट्रीटमेंट।

बायो मेथेनेशन के बाद सलरी को सॉलिड लिक्विड मशीन में डाला जाता है जिसे डीकेनटर मशीन कहते हैं। यह एक अत्याधुनिक एवं स्वचालित मशीन है, जिससे जनित सॉलिड को कम्पोस्टिंग के लिए भेजा जाता है एवं जनित तरल जैविक को उर्वरक के रूप इस्तेमाल में लाया जाएगा। इस प्लांट से जनित लगभग 60 प्रतिशत तरल को रिसायकल किया जाएगा एवं 40 प्रतिशत तरल को ट्रीटमेंट के उपरांत उर्वरक के रूप उपयोग में लाया जाएगा।

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