इंदौर : संझा लोकस्वामी में हनी ट्रैप से जुड़े खुलासे होने से सकते में आई कमलनाथ सरकार मीडिया की आवाज को दबाने- कुचलने में लगी है। आपातकाल से भी बदतर हालात इन दिनों प्रदेश में बन गए हैं। ‘न रहेगा बांस, न बजेगी बासुंरी’ पर अमल करते हुए प्रदेश सरकार ने संझा लोकस्वामी के प्रेस कॉम्प्लेक्स स्थित दफ्तर को भी बुधवार सुबह पोकलेन और जेसीबी की मदद से ध्वस्त कर दिया। भारी पुलिस बल की मौजूदगी में एक- डेढ़ घंटे में ही दफ्तर की पूरी इमारत को मलबे के ढेर में तब्दील कर दिया गया। हैरत की बात ये है कि दफ्तर का सामान भी निकालने की जरूरत नहीं समझी गई। सारा सामान मलबे के ढेर में दफन कर दिया गया। अब न प्रेस होगा न कोई खबर छपेगी। कलम की ताकत से भयाक्रांत सरकार किस हद तक क्रूर, बर्बर और तानाशाह हो सकती है इसका ये उदाहरण है।
कई पत्रकार- गैर पत्रकार हो गए बेरोजगार।
संझा लोकस्वामी में कार्यरत पत्रकारों और गैर पत्रकारों को तालाबंदी के बाद भी उम्मीद थी कि अखबार निकट भविष्य में फिर शुरू होगा और उनकी आजीविका चलती रहेगी लेकिन शासन- प्रशासन ने प्रेस पर ही बुलडोजर चलवाकर उनकी रही- सही उम्मीद भी खत्म कर दी। इस अखबार में काम करनेवाले पत्रकार और कर्मचारियों का घर- परिवार इसी नौकरी से चलता था। एक झटके में सड़क पर आ गए इन पत्रकार और कर्मचारियों को समझ में नहीं आ रहा है कि वे आखिर कहां जाए। परिवार के लिए रोजी- रोटी का जुगाड़ वे कैसे करेंगे। पहले ही मीडिया इंडस्ट्री की हालत अच्छी नहीं है। रोजगार के अवसर घटते जा रहे हैं। ऐसे में सरकार की ये कार्रवाई लोकतंत्र के चौथे स्तंभ में कील ठोकने के समान है। सरकार को इस बात का जवाब देना होगा कि जिन लोगों का उसने रोजगार छीना है क्या उन्हें वह वैकल्पिक रोजगार दिलाएगी। छीना उसने है तो रोजगार देने की जिम्मेदारी भी उसकी है।