*गोविंद मालू*
इंदौर : खनिज निगम के पूर्व उपाध्यक्ष गोविंद मालू ने कहा कि अयोध्या में भूमि पूजन कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के शामिल होने पर ए. आई.एम.आई.एम. के सदर असदउद्दीन ओवैसी और ऐसे ही अन्य नेताओं के संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का हवाला देते हुए उनका जाना संवैधानिक शपथ का उल्लंघन बताया जाना ,अपने पूर्वजों का अपमान और घोर निंदनीय कृत्य है।जनता यह जानना चाहती है कि,
ये खुद कौन सा धर्मनिरपेक्ष संगठन चला रहे हैं, जो इन्हें धर्मनिरपेक्षता की पैरवी करने का हक़ है।
मालू ने कहा कि ओवैसी पाकिस्तान के लाहौर में हाल ही में गुरुद्वारे की ज़मीन पर मौलवी के कब्जा कर मस्जिद और दरगाह की जमीन बताने के, इस्लामाबाद में कृष्ण मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं करने देने की भी आलोचना करते, और मौलवी के सिखों को धमकी देने कि पाकिस्तान में सिर्फ मुस्लिम रह सकते है कि भी आलोचना करते तो उनकी धर्मनिरपेक्षता समझ मे आती।
मालू ने कहा कि संविधान में संस्कृति निरपेक्ष और सभ्यता निरपेक्ष देश नहीं कहा गया, लिहाजा भारत की संस्कृति और सभ्यता राम मय है, जो किसी एक धर्म,पंथ, मज़हब की बन्दिशों से ऊपर एक राष्ट्र का अस्तित्व है।ये भारत का मानबिंदु है, जन्म भूमि श्री राम की।
औवेसी इंडोनेशिया से भी राम के अस्तित्व को हटाने की अपील करें, फिर इंडोनेशिया के जवाब से उन्हें ज्ञान प्राप्त होगा कि राम क्या है?
ओवैसी पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय पर अपहरण, बलात्कार, धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ भारत के अल्पसंख्यक समुदाय को एकजुट कर पाकिस्तान के वज़ीरे आजम को ललकारते तो समझ में आता कि वे धर्मनिरपेक्षता के पैरवीकार हैं औऱ भारत में मुसलमानों को छोटे भाई का जो सम्मानजनक दर्जा मिला उसके वो शुक्रगुज़ार और कृतज्ञ हैं।
यह मुगलों का और उनकी गुलामी करने वालों और बाबर जैसे आतताइयों, आक्रमणकारियों का देश नहीं, इस देश का अस्तित्व ही राम से है, ये मुल्क राम का था, राम का है और राम का ही रहेगा।ओवैसी को ऐसी धर्मनिरपेक्षता पसन्द ना हो तो वे किसी इस्लामिक देश जो उन्हें पनाह दे, जा सकते हैं। काँग्रेस का ऐसे बयानों पर मौन… समर्थन उनकी राष्ट्रीय निष्ठा की कलई तो खोलता ही है, गाँधी के कथित अनुयायी होने को भी अनावृत करता है, गाँधी की समाधि से हे राम!की मार्मिक गुहार उनके पाखण्ड की असलियत को उज़ागर करने पर मुहर लगाता है।