(कीर्ति राणा) उज्जैन दक्षिण से मोहन यादव चुनाव जीते तो कहा गया था कि वो जमीन से जुड़े नेता हैं इसलिए जीते हैं। मंत्री बनने के बाद से तो उनके ‘जमीन’से जुड़ने के दबी जुबान वाले किस्सों पर आरएसएस को भी आश्चर्य हो रहा था।डेढ़ साल पहले सांसद अनिल फिरोजिया ने बिना किसी व्यक्ति विशेष का नाम लिए मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में अनुरोध किया था कि जो कृषि भूमि आवासीय की जा रही है उसे यथावत कृषि भूमि ही रहने दिया जाए। संघ और सांसद के मन की बात मुख्यमंत्री से कहने का साहस उज्जैन दक्षिण से पार्टी के विधायक पारस जैन और पूर्व सांसद डॉ.चिंतामण मालवीय ने दिखा दिया।
धर्म की नाव से चुनाव वैतरणी पार करने में जुटी भाजपा के मुख्यमंत्री कैसे सहन करते कि 2028 के सिंहस्थ को लेकर उन की छवि एक सहयोगी मंत्री के जमीन प्रेम के कारण दागदार हो।उज्जैन के मास्टर प्लान में कृषि से आवासीय प्रस्तावित की जाने वाली भूमि की टीएनसीपी से तहकीकात करवाई।यह भूमि परिवार विशेष के विभिन्न सदस्यों के नाम होने की पुष्टि होने के बाद सरकार ने फटाफट भूमि का लैंड यूज कृषि ही रहने देने संबंधी सूचना भी जारी कर दी।
अब जो दबाव बन रहा है वह यह कि संघ-भाजपा की छवि पर बट्टा लगाने वाले मंत्री को क्यों कंटिन्यू किया जाए क्योंकि पेशाब कांड की तरह कांग्रेस को बैठे बिठाए एक और मुद्दा हाथ लग गया है।पार्टी के अंदर यह भी तलाश शुरु हो गई है कि उज्जैन दक्षिण से किसे प्रत्याशी बनाया जा सकता है। निगम में पार्षद कलावती यादव की बेहतर छवि के आधार पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में कुछ इस नाम को उचित भी मान रहे हैं पर खतरा यह भी भांप रहे हैं कि परिवारवाद जैसा मुद्दा तूल ना पकड़ ले।
मामी-मामाजी के बेटाजी।
भाजपा इस बार युवा चेहरों को अधिक मौका देगी इससे सर्वाधिक खुश पीतांबर सिंह हैं। राजमाता के भाई होने के कारण ग्वालियर ग्रामीण के रहवासी ध्यानेंद्रसिंह को मामाजी और माया सिंह को मामीजी पुकार कर सम्मान देते हैं। इन के बेटाजी हैं पीतांबर सिंह।अब जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा की आंख के तारे हो गए हैं, रिश्तेदार भी सितारों की तरह चमक उठे हैं।पीतांबर सिंह को भरोसा है कि ग्रामीण से उन्हें ही लड़ना है। रही मामीजी की बात तो वो भी वेटिंग इन गवर्नर वाली सूची में हैं।
तीन दावेदारों को पद का ताबीज दिया।
विधानसभा चुनाव लड़ने का ख्वाब देख रहे तीन दावेदारों को पद पर प्रतिष्ठित कर कमलनाथ ने एक तरह से इन्हें चुनाव लड़ने वालों की लिस्ट से बाहर कर दिया है। तब गोलू एक नंबर में, चड्ढा चार और बागड़ी तीन में दावेदारों की कतार में थे। चड्ढा पहले पार्षद तो रहे लेकिन चार नंबर में विधानसभा नहीं जीत पाए। एक नंबर में संजय शुक्ला की जीत में गोलू अग्निहोत्री सहयोगी बने, इस बार दावेदारी करते लेकिन प्रदेश महासचिव बना दिया। बागड़ी पहले भी तीन नंबर से दावेदारी कर चुके हैं।चार नंबर से जैन समाज और सिंधी समाज के दो लोग आत्म मुग्ध होकर घूम रहे हैं कि टिकट मिल ही जाएगा। हकीकत यह है कि दोनों का नाम भी मतदाताओं को ठीक से पता नहीं है।
वैसे नहीं तो ऐसे नाराजी दूर हो जाएगी ।
लाड़ली बहनों को हर माह मिल रही किश्त से सरकारी विभागों में कार्यरत महिलाओं की कसक को भी दूर कर दिया है मुख्यमंत्री ने।उन्हें चिंता थी कि ऐसा कैसे जुगाड़ हो कि लाड़ली बहना वाला लाभ उन्हें भी अघोषित तरीके से मिल जाए। शासकीय सेवारत महिलाओं को अब साल में सात दिन के ऐच्छिक अवकाश की सुविधा देने की सरकार ने घोषणा कर दी है। सीएल का यह आदेश 59 साल बाद बदला है। पुरुष कर्मचारियों को तो 13 दिन ही आकस्मिक अवकाश मिलेंगे।
बेदाग करने वाली वाशिंग मशीन…!
घड़ी चाहे बाबा आदम के जमाने की हो या एनसीपी की, चौबीस घंटे में एक बार तो वही समय दोहराती है लेकिन राजनीति का जो चक्र चलता है उसमें समय बदलता रहता है। एक पखवाडे़ पहले भोपाल में जब प्रधानमंत्री ने एक के बाद एक विपक्षी दलों के घोटाले गिनाए थे तब बूथ मजबूत करने वाले कार्यकर्ताओं के साथ ही भाषण सुनने वाले लोगों को भी भ्रष्ट नेताओं के चेहरे याद आ गए थे।इस अवधि में समय का पहिया ऐसा घूमा की महाराष्ट्र में 70 हजार करोड़ के सिंचाई घोटाले में जिन अजित पवार का नाम रहा है उनके सारे दाग साफ हो गए, वो अब ‘महायुति’ स्नान में पवित्र हो गए हैं। मध्य प्रदेश में अब कांग्रेस के लिए अजित पवार का मुद्दा भी हाथ लग गया है किंतु उसके लिए भी परेशानी यह है कि प्रधानमंत्री ने अन्य दलों के जो भ्रष्टाचार गिनाए हैं उनसे कांग्रेस भी अछूती नहीं है।भाजपा कमलनाथ को भी ‘84 के सिख विरोधी दंगों में घेरने की रणनीति बना चुकी है।
किसानों को साधते कमलनाथ।
बारिश-बाढ़ से प्रभावित प्रदेश के किसानों की फसल क्षति का आकलन करने के लिए कमलनाथ ने सभी जिला अध्यक्षों को सर्वे करने, गांव गांव जाने के काम पर लगा दिया है।पिछले चुनाव में कांग्रेस पर किसानों ने खूब भरोसा किया था।प्रदेश की 230 में से 170 सीटें किसान मतदाता बहुल हैं इस लिहाज से एमपीपीसी चीफ की यह पहल दूर की कौड़ी इसलिए भी है कि फसल बीमा राशि को लेकर किसानों का सरकार के खिलाफ असंतोष प्रदर्शन और ज्ञापन के रूप में आगर मालवा में तो सार्वजनिक हो चुका है।