हमें अपने सपनों का भारत बनाने के लिए शिक्षा पर बजट का 10% खर्च करना होगा – वरुण गांधी
इंदौर : सांसद एवं विचारक वरुण गांधी का कहना है कि भारत के बेहतर भविष्य के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी है।यदि हम अपने सपनों का भारत बनाना चाहते हैं तो हमें अपने कुल बजट का 10% शिक्षा पर खर्च करना होगा।
वरुण गांधी रविवार को अभ्यास मंडल की ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला में ‘भारत के लिए भविष्य की राह : अवसर व चुनौतियां’ विषय पर संबोधित कर रहे थे । उन्होंने अपनी बात को कई उदाहरणों, किस्सों और घटनाक्रमों से जोड़कर अपनी बात रखी।
उन्होंने कहा कि आज हर व्यक्ति यह मानता है कि जीवन ने उसके साथ न्याय नहीं किया है । तो ऐसे लोगों को आंध्र प्रदेश के गरीब परिवार के नेत्रहीन श्रीकांत की कहानी को ध्यान में रखना चाहिए जिसने तमाम अवरोधों को पार करते हुए अथक संघर्ष और परिश्रम से अमेरिका की एमआईटी में स्कॉलरशिप प्राप्त की और डिग्री प्राप्त करने के बाद भारत लौटकर अपनी कंपनी खड़ी की।
बेहतर भविष्य के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी।
वरुण ने कहा कि देश के बेहतर भविष्य के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही बेहद जरूरी है।
उन्होंने इटली का उदाहरण देते हुए कहा कि कभी वह यूरोप का भ्रष्ट देश हुआ करता था लेकिन वहां पर एक सिस्टम ऐसा बना जिससे यूरोप को इटली के विकास के लिए पैसा देने से इनकार करने का फैसला बदलना पड़ा।वरुण गांधी ने कहा कि जर्मनी में सांसद और विधायक के लिए यह कानून बना हुआ है कि देश का कोई भी नागरिक उनसे वेबसाइट के माध्यम से सीधे सवाल पूछ सकता है और 3 दिन में उन्हें जवाब देना होता है । हमारे देश में तो यह स्थिति है कि आम नागरिक सांसद, विधायक तक पहुंच ही नहीं पाता।जरूरत इस बात की है कि हम पद को सम्मान से नहीं बल्कि कर्तव्य से जोड़ें।
लीडर बनने के लिए बहुत तपस्या करनी पड़ती है।
वरुण गांधी ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ हुई अपनी मुलाकात का जिक्र करते हुए कहा कि इस मुलाकात में सुपर पावर देश के राष्ट्रपति में मुझे कहीं कोई अहंकार नजर नहीं आया। जब मुलाकात पूरी हो गई और मैं जा रहा था तो क्लिंटन ने मुझे यह सीख दी कि यह हमेशा याद रखना कि आप पब्लिक सर्वेंट हो । इसके बाद क्लिंटन ने दूसरी सीख दी कि अपने आप को कभी लीडर मत कहना क्योंकि लीडर बनने के लिए बहुत तप करना पड़ता है।
केंद्र व राज्य सरकारों में एक करोड़ पद रिक्त हैं।
उन्होंने कहा कि इस समय हमारे देश में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों में कुल 1 करोड़ पद रिक्त हैं । पिछले 20 वर्षों में जो सरकारी नौकरियां निकली है उनमें से 80% नौकरी संविदा नियुक्ति के आधार पर भरी गई है।निश्चित तौर पर सार्वजनिक सेवाओं का निजी करण आर्थिक संरचना का हिस्सा होता है लेकिन हमें यह सोचना होगा कि यदि हम हर चीज का निजीकरण कर देंगे तो फिर क्या छोटे शहरों व ग्रामीण इलाकों के युवा नौकरी पा सकेंगे..?
उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्ष में 42 करोड़ लोगों ने पब्लिक सेक्टर में नौकरी पाने के लिए परीक्षा दी है । इनमें से नौकरी मात्र आठ लाख लोगों को ही मिल सकी है । ऐसे में यह बड़ा प्रश्न है कि देश का युवा कहां जाएगा ? सरकार का युवा पर फोकस क्यों नहीं है ?
बैंकों के लोन डुबोने वाले बड़े उद्योगपति हैं।
लोन प्रणाली की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पब्लिक सेक्टर के बैंक 71% लोन हजार करोड़ से ज्यादा लेनदेन वाले उद्योगपतियों को देते हैं, जबकि 20% लोन 100 करोड़ से हजार करोड़ तक के लेनदेन वाले व्यक्ति को दिए जाते हैं। ऐसे में छोटे उद्योगों और आम आदमी को केवल 9% लोन मिल पाता है । इसके पीछे बैंक का कहना होता है कि गरीब व्यक्ति लोन नहीं चुकाते इसलिए उन्हें ज्यादा लोन नहीं दिया जा सकता पर इस मामले में चौंकाने वाली हकीकत यह भी है कि पिछले 10 साल में आम नागरिकों को दिए गए लोन में मात्र 80,000 करोड रुपए के बेड लोन थे जबकि देश के बड़े उद्योगपतियों को दिए गए लोन में 5.60 लाख करोड़ रुपए के बेड लोन थे । ऐसे में हमें यह समझ लेना चाहिए कि देश को गरीब नहीं खा रहा है।
विदेशी आर्थिक ढांचे को न अपनाएं।
उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान का आर्थिक ढांचा हिंदुस्तानी ही होना चाहिए । हम विदेश के आर्थिक ढांचे को अपने देश में खड़ा नहीं कर सकते हैं।
शिक्षा के साथ स्किल डेवलपमेंट भी जरूरी।
शिक्षा के क्षेत्र की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी तेजी से आगे बढ़ना चाहती है लेकिन उसमें हमें शिक्षा के साथ रोजगार प्राप्त करने की काबिलियत को भी विकसित करना होगा । इस समय स्थिति यह है कि शिक्षा के लिए सरकार के बजट में जितना प्रावधान किया जाता है उसमें से 80% राशि भवन निर्माण पर खर्च करने के लिए होती है। जबकि शिक्षकों की ट्रेनिंग के लिए मात्र 6% राशि का प्रावधान किया जाता है।
बजट का 10 फीसदी शिक्षा पर खर्च होना चाहिए।
वरुण गांधी ने कहा कि हमारे देश में मध्य प्रदेश सहित सात राज्यों में 42 लाख शिक्षकों की कमी है । देश में यदि बेहतर स्थिति बनाना है तो हमें अपने कुल बजट की 10% राशि को शिक्षा के लिए रखना होगा ।
प्रारंभ में अतिथि का स्वागत नेताजी मोहिते, मुरली खंडेलवाल, वैशाली खरे, द्वारका मालवीय, स्वप्निल व्यास और सुनील डावर ने किया । कार्यक्रम का संचालन माला सिंह ठाकुर ने किया। अतिथि को स्मृति चिन्ह मेडिकैप्स विश्वविद्यालय के कुलपति रमेश मित्तल ने भेंट किए।अंत में आभार प्रदर्शन इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने किया।