इंदौर : धार रोड स्थित इंदौर नेत्र चिकित्सालय में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद हुए संक्रमण के चलते 11 मरीजों की आंखों से दिखाई देना बंद हो गया। राष्ट्रीय अंधत्व निवारण कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य विभाग ने धार में आंखों की जांच हेतु शिविर लगाया था। शिविर में 13 मरीजों का चयन मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए किया गया था। इन सभी मरीजों को इंदौर लाकर इंदौर नेत्र चिकित्सालय में उनके ऑपरेशन किये गए। दो दिन पहले पट्टी खुलने पर मरीजों ने आंखों में सूजन और दिखाई नहीं देने की शिकायत की। वरिष्ठ चिकित्सकों को बुलाकर मरीजों की आंखों की जांच करवाई गई तो पता चला कि संक्रमण होने से मरीजों को दिखाई नहीं दे रहा है।
कलेक्टर ने दिए जांच के आदेश।
इस गंभीर लापरवाही का खुलासा होते ही शासन- प्रशासन में हड़कम्प मच गया। तत्काल सभी प्रभावित मरीजों को चोइथराम अस्पताल में शिफ्ट किया गया। इंदौर नेत्र चिकित्सालय की ओटी को सील कर दिया गया है। कलेक्टर लोकेश जाटव ने समूचे मामले की जांच के आदेश दिए हैं। अपर कलेक्टर स्तर के अधिकारी को जांच सौंपी गई है। सभी मरीजों के इलाज का खर्च शासन वहन करेगा। इंदौर नेत्र चिकित्सालय प्रबंधन द्वारा बरती गई लापरवाही की भी जांच की जाएगी। अगर वह दोषी पाया जाता है तो अस्पताल का लाइसेंस निलंबित किया जाएगा।
7 सदस्यीय कमेटी करेगी जांच।
स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट ने मरीजों की आंखों के साथ खिलवाड़ को गंभीरता से लेते हुए कहा कि 7 सदस्यीय कमेटी समूचे मामले की जांच करेगी। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल रेडक्रॉस के माध्यम से 20 – 20 हजार रुपए की मदद पीड़ितों को दी जा रही है।
आस्पताल का लाइसेंस होगा निरस्त।
मंत्री जीतू पटवारी ने भी मामले की जांच कर दोषी डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही है। उन्होंने कहा कि सीएम कमलनाथ ने घटना को संज्ञान में लिया है। पीड़ितों के इलाज का पूरा खर्च सरकार उठाएगी। उन्हें 50 – 50 हजार रुपए की सहायता भी उपलब्ध कराई जा रही है। श्री पटवारी ने सम्बंधित अस्पताल का लाइसेंस निरस्त करने की भी बात कही।
पहले भी हो चुकी है ऐसी घटना।
इंदौर नेत्र चिकित्सालय में पहले भी इसतरह की घटना हो चुकी है। दिसंबर 2010 में भी यहां मोतियाबिंद के ऑपरेशन फेल होने से 18 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी। उससमय अस्पताल को शिविर लगाने और ऑपरेशन करने के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था। ऑपरेशन में प्रयुक्त उपकरण, दवाइयां आदि जांच हेतु भेजी गई थी पर बाद में कुछ नहीं हुआ। थोड़े ही समय बाद अस्पताल पर लगाए प्रतिबन्ध भी शिथिल कर दिए गए। नतीजा ये हुआ कि फिर इस अस्पताल की लापरवाही ने 11 मरीजों की जिंदगी में अंधेरा कर दिया।