हमेशा से स्वतंत्र राष्ट्र रहा तिब्बत, चीन ने किया बलात कब्जा

  
Last Updated:  January 30, 2024 " 12:45 am"

दोस्ती के नाम पर दिया धोखा, लाखों तिब्बतियों को उतारा मौत के घाट।

अभ्यास मंडल के संवाद कार्यक्रम में बोले निर्वासित तिब्बत सरकार के सांसद सुश्री तेनजिन और न्यापा गांगरी।

इंदौर : तिब्बत कभी भी चीन का हिस्सा नहीं रहा। हजारों सालों से भारत और चीन के बीच स्वतंत्र राष्ट्र के बतौर उसका अस्तित्व था। चीन ने दोस्ती के नाम पर धोखा दिया और 10 मार्च 1959 को तिब्बत पर आक्रमण कर कब्जा कर लिया। इस दौरान करीब 12 लाख तिब्बतियों को मौत के घाट उतार दिया। इसी तरह का विश्वासघात चीन ने पंचशील के नाम पर भारत के साथ भी किया और 1962 में हमला कर हजारों वर्ग किमी भारत भूमि पर कब्जा कर लिया। हम भारत के शुक्रगुजार हैं कि उसने हमारे धर्मगुरु दलाई लामा और हम तिब्बतियों को अपने यहां शरण दी। भारत हमारा गुरु है। हम तिब्बत को पुनः आजाद होते देखना चाहते हैं। नई पीढ़ी को हम बताना चाहते हैं कि तिब्बत अलग राष्ट्र है, वह चीन का हिस्सा नहीं है, जैसा कि वह दावा करता है।

ये कहना है तिब्बत की निर्वासित सरकार के सांसद सुश्री तेनजिन चोएजिन और न्यापा गांगरी का। वे अभ्यास मंडल द्वारा भारत – तिब्बत सहयोग मंच के साथ इंदौर प्रेस क्लब में आयोजित संवाद कार्यक्रम में बोल रहे थे।कार्यक्रम में अभ्यास मंडल के पदाधिकारी, सदस्य और शहर के प्रबुद्धजन बड़ी संख्या में मौजूद रहे।

तिब्बतियों की पहचान मिटा रहा चीन।

सुश्री तेनजिन ने बताया कि तिब्बत पर बलात कब्जा करने के बाद चीन उसकी सभ्यता और संस्कृति पर हमला कर उसकी पहचान मिटाने पर तुला है। तिब्बती बच्चों को उनके माता – पिता से अलग कर उन्हें चीनी तौर तरीके सीखा रहा है ताकि उन्हें तिब्बत के बारे कुछ भी याद न रहे। अपने नागरिकों को तिब्बत में बसाने के साथ चीन उनकी शादियां तिब्बती महिलाओं के साथ करवा रहा है ताकि आनेवाली नस्लें वर्ण संकर पैदा हो और वे खुद को चीनी ही समझे। उन्होंने कहा कि तिब्बत में अब केवल 60 लाख तिब्बती ही बचे हैं, जिन्हें हरसमय डर के साए में जीना पड़ता है।

तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों का कर रहा दोहन।इंदौर : तिब्बत कभी भी चीन का हिस्सा नहीं रहा। हजारों सालों से भारत और चीन के बीच स्वतंत्र राष्ट्र के बतौर उसका अस्तित्व था। चीन ने दोस्ती के नाम पर धोखा दिया और 10 मार्च 1959 को तिब्बत पर आक्रमण कर कब्जा कर लिया। इस दौरान करीब 12 लाख तिब्बतियों को मौत के घाट उतार दिया। इसी तरह का विश्वासघात चीन ने पंचशील के नाम पर भारत के साथ भी किया और 1962 में हमला कर हजारों वर्ग किमी भारत भूमि पर कब्जा कर लिया। हम भारत के शुक्रगुजार हैं कि उसने हमारे धर्मगुरु दलाई लामा और हम तिब्बतियों को अपने यहां शरण दी। भारत हमारा गुरु है। हम तिब्बत को पुनः आजाद होते देखना चाहते हैं। नई पीढ़ी को हम बताना चाहते हैं कि तिब्बत अलग राष्ट्र है, वह चीन का हिस्सा नहीं है, जैसा कि वह दावा करता है।

ये कहना है तिब्बत की निर्वासित सरकार के सांसद सुश्री तेनजिन चोएजिन और न्यापा गांगरी का। वे अभ्यास मंडल द्वारा भारत – तिब्बत सहयोग मंच के साथ इंदौर प्रेस क्लब में आयोजित संवाद कार्यक्रम में बोल रहे थे।कार्यक्रम में अभ्यास मंडल के पदाधिकारी, सदस्य और शहर के प्रबुद्धजन बड़ी संख्या में मौजूद रहे।

तिब्बतियों की पहचान मिटा रहा चीन।

सुश्री तेनजिन ने बताया कि तिब्बत पर बलात कब्जा करने के बाद चीन उसकी सभ्यता और संस्कृति पर हमला कर उसकी पहचान मिटाने पर तुला है। तिब्बती बच्चों को उनके माता – पिता से अलग कर उन्हें चीनी तौर तरीके सीखा रहा है ताकि उन्हें तिब्बत के बारे कुछ भी याद न रहे। अपने नागरिकों को तिब्बत में बसाने के साथ चीन उनकी शादियां तिब्बती महिलाओं के साथ करवा रहा है ताकि आनेवाली नस्लें वर्ण संकर पैदा हो और वे खुद को चीनी ही समझे। उन्होंने कहा कि तिब्बत में अब केवल 60 लाख तिब्बती ही बचे हैं, जिन्हें हरसमय डर के साए में जीना पड़ता है।

तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों का कर रहा दोहन।

सुश्री तेनजिन ने कहा कि तिब्बत में प्राकृतिक खनिज संसाधनों का भंडार है। चीन उनका अंधाधुंध दोहन करके अरबों डॉलर कमा रहा है और उनका उपयोग अपनी सैन्य क्षमता के विस्तार में कर रहा है। उसने तिब्बत में आधारभूत संरचना का विकास अपने फायदे के लिए किया है, ताकि सेना का मूवमेंट तेजी से हो सके।

बांध बनकर नदियों का रुख मोड़ने से दुनिया की आधी आबादी खतरे में।

तिब्बती सांसद तेनजिन के अनुसार तिब्बत से ब्रह्मपुत्र सहित दस बड़ी नदियां निकलती हैं, जो भारत सहित कई देशों से होकर बहती हैं। चीन इन नदियों पर बड़े बांध बनाने के साथ इनका रुख भी मोड़ने में लगा है। इससे इन नदियों के किनारे बसे देशों में बाढ़ का गंभीर खतरा पैदा हो गया है। चीन कभी भी इन देशों में तबाही मचा सकता है। दुनिया की आधी आबादी याने 04 अरब से अधिक लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं।

न्यापा गांगरी ने सुनाई दी गई यातनाओं की दास्तां।

तिब्बती सांसद न्यापा गांगरी ने चीन द्वारा उनपर किए गए जुल्म की दास्तां सुनाई। उन्होंने कहा कि उन्हें दो बार जेल में बंद कर भयावह यातनाएं दी गई। आखिर 18 वर्ष की उम्र में ही वे भागकर तिब्बत से भारत आ गए। उन्होंने भारत में मिले प्यार और सहयोग के लिए शुक्रिया अदा किया।

भारत के लिए गंभीर खतरा है चीन।

तिब्बती सांसदों ने कहा कि उनके देश की तरह भारत के साथ भी दगा करते हुए चीन ने हमला किया और हजारों वर्ग किमी जमीन हथिया ली। तिब्बत को उसने सैन्य अड्डा बना लिया है।भारत के लिए वह गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।

तिब्बतियों की आवाज को दुनिया तक पहुंचाना चाहते हैं।

तिब्बती सांसदों तेनजिन और न्यापा गांगरी ने कहा कि वे और निर्वासित तिब्बती सरकार के अन्य सांसद भारत के प्रमुख शहरों में जाकर अपनी बात रखते हुए तिब्बत की वास्तविकता और हालात के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहते हैं। इसीलिए भारत – तिब्बत सहयोग मंच के माध्यम से इस तरह के संवाद कार्यक्रम कर रहे हैं। हम तिब्बतियों की आवाज दुनिया के हर कोने में पहुंचाने के साथ ये बताना चाहते हैं कि तिब्बत स्वतंत्र राष्ट्र है, जिस पर चीन ने बलात कब्जा किया हुआ है। उन्होंने आग्रह किया कि तिब्बत और तिब्बतियों के समर्थन में सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों पर अपनी आवाज बुलंद करें।

अभ्यास मंडल के इस संवाद कार्यक्रम में प्रमुख रूप से शिवाजी मोहिते, शफी शेख, स्वप्निल व्यास, अरविंद पोरवाल, श्याम पांडे, एनके उपाध्याय, किशन सोमानी, दीप्ति गौर, पराग जटाले, यशवर्धन सिंह, सौरभ सिंह, विशाल गुप्ता और एमके सागर सहित अन्य प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।

अतिथि तिब्बती सांसदों तेनजिन और न्यापा गांगरी का स्वागत रामेश्वर गुप्ता, सुनील माकोडे, मनीषा गौर, अभिनव धनोत्कर, डॉ. अर्पण जैन और राजेंद्र कोपरगांवकर ने किया। स्मृति चिन्ह फादर लाकरा और प्रो. योगिता मेनन ने भेंट किए। संचालन माला सिंह ठाकुर ने किया। आभार वैशाली खरे ने माना।

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