कठिन डगर पर सधे हुए कदमों की लंबी यात्रा का पूर्णविराम..
*जयदीप कर्णिक* इंदौर : बात सन 1998 के अक्टूबर की है। मालवा की खुशनुमा सर्दी की बस शुरुआत ही थी। सुबह ठीक 6.30 बजे इंदौर के साकेत चौराहे पर स्टील ट्यूब्स ऑफ इंडिया की बस आती-जाती थी। हर रोज़ की तरह उस दिन भी मैं बस में चढ़ गया। पिछले लगभग तीन साल से मैं यही तो कर रहा था। क्या मैं ज़िंदगी भर यही करते रहना चाहूँगा? रात भर ज़ेहन को मथते रहे इस सवाल ने मेरा पीछा नहीं और पढ़े