इंदौर: परंपराएं हमारे समाज का सैकड़ों सालों से हिस्सा रही हैं। हर समाज और घर- परिवार से जुड़ी परंपराएं अलग- अलग होती हैं। समय, काल और परिस्थितियों के साथ बदलते परिवेश में परंपराओं पर भी सवाल उठना लाजमी है। उनका जतन किया जाना चाहिए या नहीं और किया जाना चाहिए तो क्यों..? ऐसे कई सवालों को उठाने के साथ उनके समाधान तलाशने का प्रयास मराठी नाटक ‘सोयरे सकळ’ में किया गया है। 80 वर्ष पुराने कालखंड में स्थापित परंपराओं पर केंद्रित इस नाटक का मंचन सानंद न्यास के मंच पर खंडवा रोड स्थित यूसीसी सभागार में किया गया। भद्रकाली प्रोडूक्शन्स मुम्बई द्वारा निर्मित इस नाटक के लेखक समीर कुलकर्णी और निर्देशक आदित्य इंगले हैं। नाटक के कथानक का केंद्रबिंदु ब्राह्मण क्षीरसागर परिवार है। परिवार के मुखिया दादासाहेब क्षीरसागर वकील होने के साथ परंपराओं को मानने वाले हैं। उनका पुश्तैनी बाड़ा है जिसमें कुलदेवी रेणुका देवी का पुरातन मंदिर भी है। दादासाहब की मन्दिर के प्रति अगाध श्रद्धा है। महात्मा गांधी की हत्या के बाद हिंसक भीड़ उनके बाड़े को जला देती है। भीड़ के इस कृत्य में बाड़ा तो जल जाता है पर रेणुका देवी का मंदिर बच जाता है। हालांकि रेणुका देवी की पूजा- अर्चना और आराधना की बरसों पुरानी उनके परिवार की परंपरा टूट जाती है। दादासाहब और उनकी पत्नी इससे बेहद व्यथित हो जाते हैं। हालात और परिस्थितियां इतने प्रतिकूल हो जाते हैं कि उनका अपना बेटा धार्मिक परंपरा और कर्मकांड के विरोध में खड़ा हो जाता है। क्षीरसागर दंपत्ति के गुजर जाने पर बेटा तो अमेरिका चला जाता है लेकिन बेटी माता- पिता की परंपरा को जतन कर आगे बढ़ाती है।
निर्देशक आदित्य इंगले ने परंपराओं पर सवाल उठाने के साथ उनके उत्तर तलाशने का प्रयास भी इस नाटक में किया है।
ऐश्वर्या नारकर और अविनाश नारकर जो रियल लाइफ में भी पति- पत्नी हैं, ने नाटक में दोहरी भूमिकाएं निभाई हैं। इसके अलावा अश्विनी कसार, आशुतोष गोखले, सुनील ताँबट और अनुया बैचे ने अलग- अलग किरदार निभाए। संगीत अजित परब का था। नैपथ्य और प्रकाश संयोजन प्रदीप मुलये, वेशभूषा गीता गोडबोले और रँगभूषा सचिन वारीक की थी। सानंद के पांच नाट्य समूहों के लिए इस नाटक के 5 शो मंचित किये गए।
परंपराओं पर सवाल खड़े करता नाटक सोयरे सकळ का प्रभावी मंचन
Last Updated: July 15, 2019 " 07:37 am"
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