पिक्चर अब बाकी नहीं है दोस्त..!
इंदौर : (प्रदीप जोशी) रीगल सिनेमा जिसका नाता इंदौर शहर से करीब अस्सी साल पुराना है, उसमें सोमवार अचानक आग लग गई। आग क्यों और कैसे लगी यह जांच का विषय है पर एक बात साफ है कि पहले इस पुरातन सिनेमाघर पर नजर लगी और उसके बाद आग लग गई। मेट्रो स्टेशन के नाम पर पहले इस सिनेमाघर की लीज समाप्त कर नगर निगम ने इसे अपने कब्जे में ले लिया और अब बंद सिनेमाघर आग की चपेट में आ गया। शहर के सबसे पुराने सिनेमाघर से लोगों का गहरा जुड़ाव होने के कारण ही इसकी चर्चा ज्यादा है।
अस्सी से पहले की पैदाइश वाले बाशिंदों के दिलो-दिमाग में उस दौर की यादें चिर स्थायी हैं। यह वो दौर था जब सिनेमा जाना किसी उत्सव से कम नहीं हुआ करता था। सस्ते टिकट और सिनेमाघर के कैंटीन का सस्ता खाना लोगों के जेहन में आज भी ताजा है।
युवाओं और परिवारों का खास मुकाम।
रीगल सिर्फ सिनेमाघर नहीं था, बल्कि आम नागरिकों खासकर युवाओं और परिवारों का खास मुकाम भी था। कभी यहां परिसर में मौजूद स्टेशनरी की दुकान पर कोर्स की किताबों की लिए भी कॉलेज स्टूडेंट्स की भीड़ लगा करती थी। वोल्गा होटल के खाने के स्वाद को लोग भूले नहीं हैं। परिवार के साथ लोग सिर्फ खाने के लिए भी उस दौर में उमड़ते थे।
महाराजा से लेकर आम आदमी का जुड़ा है नाता।
रीगल सिनेमा की लीज समाप्ति की खबर के बाद शहर के पुराने दौर की सुनहरी यादें लोगों की स्मृति में उभरने लगी थी। शहर के दो दर्जन से ज्यादा सिनेमाघरों में जिस तरह का उत्सवी रंग छाया रहता था, वह मल्टीप्लेक्स के दौर में नजर नहीं आता। आज की युवा पीढ़ी को भी मस्ती के उन नजारों का न तो अंदाजा है और न ही अहसास। इन सिनेमाघरों में रीगल की अपनी शान थी, क्योंकि खुद महाराजा यशवंतराव होलकर की फिल्मों में गहरी रुचि थी। महाराजा की पसंद पर सन 1917 में इंदौर के नंदलालपुरा क्षेत्र में ओपन एयर टॉकिज खुल गया था। 1930 में ठाकुरिया परिवार को जमीन लीज पर प्रदान की गई थी। 1934 में रीगल टॉकिज की विधिवत शुरूआत हुई। महाराजा खुद अपने परिवार के साथ रीगल टॉकिज पर फिल्में देखने आते थे। नितांत पारिवारिक वातावरण वाले इस सिनेमाघर से सिर्फ राज परिवार ही नहीं, बल्कि शहर के सामान्य परिवारों का भी नाता जुड़ा हुआ था।
एक सिनेमा घर जिसके पीछे पूरी फिल्म कॉलोनी बस गई।
रीगल सिनेमा की समृद्धि का आकलन इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसके पीछे पूरी फिल्म कॉलोनी ही विकसित हो गई। उस दौर के सभी बड़े फिल्म वितरकों के दफ्तर मीरा पथ और फिल्म कॉलोनी में हुआ करते थे। आज बदले हुए हालात में चुनिंदा दफ्तर ही बचे हैं। महाराजा के फिल्मों के प्रति प्रेम के चलते रीगल सिनेमा बनाने वाले ठाकुरिया परिवार ने एलोरा टॉकिज का निर्माण किया। इसके बाद होलकर महाराजा ने अपने मित्र बड़ोदा महाराज को रेलवे स्टेशन के सामने जमीन प्रदान की, जिस पर यशवंत और बेम्बिनो सिनमाघर का निर्माण हुआ। बाद में एलोरा टॉकिज के पास अजंता टॉकिज भी बनाया गया था। अब ये सारे टॉकीज भी बंद होकर वहां व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स खड़े हो गए हैं।
(लेखक प्रदीप जोशी, इंदौर प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष हैं।)