इंदौर : मप्र की व्यावसायिक होने के साथ सांस्कृतिक नगरी भी है इंदौर। यहां न तो कलाकारों की कमीं है और न ही सुनकारों की। यही कारण है कि आए दिन शहर में गीत- संगीत की महफिलें जमती रहती हैं। संगीतकार खय्याम की याद में ऐसी ही महफ़िल रविवार शाम जाल सभागार में सजाई गई। संस्था स्वरदा के बैनर तले आयोजित इस महफ़िल को नाम दिया गया था ‘ एक शाम…बस खय्याम’
बड़ी संख्या में श्रोताओं की उपस्थिति के बीच सपना केकरे ने महफ़िल की शुरुआत ‘दिल चीज क्या है, आप मेरी जान लीजिए’ से की। मूल रूप से आशा भोसले के गाए इस गीत से ही महफ़िल का रंग चढ़ने लगा। बरसों से इन्दौरी सुनकारों के कानों में मिठास घोल रही सपना ने इसके बाद ‘माना तेरी नजर में’ गीत गाकर महफ़िल को आगे बढाया। सपना की आवाज में एक अलग ही कशिश और सुरीलापन है जो श्रोताओं के दिल को छूता है। सपना का साथ निभाने के लिए बाद में राजेंद्र गलगले ने मंच पर एंट्री ली। महाराष्ट्र के निवासी राजेन्द्र को इंदौर कुछ ऐसा भाया की वे यहीं के होकर रह गए। वे गाते भी बेहद सुरीला हैं। उन्होंने ‘दर्द सीनें में छुपा लेते हैं’ गीत गुनगुनाया।
इसके बाद मंच संभालने की बारी थी नीता दास की, उन्होंने ‘न गम पे इख़्तियार है’ गाकर महफ़िल को परवान चढाया। अभिषेक वेद ने ‘ऐसी हसीन चांदनी पहले कभी न थी’ गीत के जरिये अपनी आमद दर्ज कराई।
चार गायक- गायिकाओं के अपने- अपने अंदाज में मंच पर आमद देने के बाद खय्याम के संगीतबद्ध यादगार एकल व युगल गीतों का प्रवाह सा चल पड़ा। सूत्रधार ऋषिकेश शर्मा खय्याम के जीवन से जुड़े खास प्रसंगों का रोचक वर्णन करते हुए अगले गीत की जमीन तैयार कर देते और सपना सहित चारों कलाकार खूबसूरत शब्दों में रचे गीतों को उतनी ही शिद्धत से श्रोताओं के कानों से होकर दिल में उतार देते। सुनते- सुनाते खय्याम की यादों को जीने का ये सुरीला सफर लगभग 30 गीतों की पेशकश के साथ खत्म हुआ। इस दौरान ऐ दिले नादान, कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, शाम ए गम की कसम, कभी- कभी मेरे दिल में खयाल आता है जैसे गीतों को श्रोताओं ने खूब सराहा।
की बोर्ड पर रवि सालके व अभिजीत गौड़, तबले पर अंश गजभिये,ढोलक पर सन्दीप चौधरी, ऑक्टोपेड़ पर अनूप कुलपारे और साइड रिदम पर मयंक श्रीवास ने गायक कलाकारों का साथ, पूरे तालमेल के साथ निभाया।
बस एक शाम..रही खय्याम के नाम..
Last Updated: February 17, 2020 " 11:53 am"
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