नर्मदा साहित्य मंथन का औपचारिक समापन।
धार : विश्व संवाद केंद्र मालवा द्वारा आयोजित तीन दिवसीय नर्मदा साहित्य मंथन का समापन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ मनमोहन वैद्य के उद्बोधन से हुआ। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की कुलगुरु डॉ. रेणु जैन कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं। दिनेश गुप्ता अध्यक्ष विश्व संवाद केन्द्र मालवा, शंभु मनहर सह संयोजक नर्मदा साहित्य मंथन विशेष अतिथि के बतौर मौजूद रहे।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ मनमोहन वैद्य ने राष्ट्र चिंतन विषय पर अपने विचार रखे।उन्होंने कहा कि राष्ट्र के जीवन का आधार अध्यात्म हैं।राष्ट्रीय शब्द
का अर्थ राष्ट्र को समझना और यू राष्ट्र का चिंतन करना हैं।
भारत दुनिया में एकमात्र देश है जहां कोविड आपदा में सरकारी मशीनरी ने बहुत अच्छा काम किया। उससे भी अच्छी बात ये है कि लाखों लोग ये जानते हुए भी कि उनकी जान को ख़तरा हैं, लोगों की मदद करने सड़कों पर निकल पड़े।
डॉ. वैद्य ने कहा कि दुनिया ने हमें बताया कि भारत कृषि प्रधान देश है पर वास्तव में पुरातन समय में भारत उद्योग प्रदान देश था।
हमारा “ हम “ का दायरा इतना बड़ा है कि हम किसी को अन्य मानते ही नहीं हैं। सत्य एक है, इसको पाने के मार्ग अलग अलग हो सकते हैं।यह भारत का विचार है। यही भारत की विशेषता भी है।
धर्म को रिलीजन कहना सही नहीं।
उन्होंने कहा कि धर्म को अंग्रेज़ी में भी धर्म ही कहना चाहिए। धर्म को रिलीजन कहना उचित नहीं हैं। रिलीजन का अर्थ उपासना पद्धति होना चाहिए। धर्म को अंग्रेज़ी में भी धर्म ही कहना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर तत्व हैं ऐसा केवल भारत ही मानता हैं। यह भारत की विशेषता है।
समाज आधारित व्यवस्था ज्यादा प्रभावी।
सरकार सबकुछ करेगी हमारे यहाँ ऐसी मान्यता नहीं थी। सिर्फ न्याय, सुरक्षा,विदेश संबंध राज्य का विषय था जबकि शिक्षा , स्वास्थ्य, व्यापार समाज के विषय थे। जो व्यवस्था राज्य पर कम निर्भर होती है, वो ज़्यादा प्रभावी होती है। समाज को देना , परोपकार करना पुण्य कार्य हैं। जबकि समाज को अपना मानकर उसको लौटाना धर्म है।
साहित्य जीवन मूल्यों की स्थापना में अहम भूमिका निभाता है।
डॉ. रेणु जैन ने कहा कि साहित्य के ऐसे आयोजन से युवाओं की रचनात्मकता को एक बड़ा मंच मिलता हैं। साहित्य नैतिकता एवं जीवन मूल्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य में वो शक्ति होती हैं जो तलवार और परमाणु बम में भी नहीं होती। अब साहित्य के नये माध्यम आ गये हैं जो युवाओं को भटकाव की ओर ले जा सकते हैं। भटकाव से रोकने का काम इसी प्रकार के साहित्यिक आयोजन करेंगे।
उन्होंने जैन संत आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के महानिर्वाण पर कहा कि उनका लिखा हुआ साहित्य भारत को स्वाभिमान से परिचय करवाता है। उन्होंने आचार्य श्री को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की। समापन कार्यक्रम का संचालन डॉ. शालिनी रतोरिया ने किया।