“हर घर तिरंगा”
संकल्पों से दृढ़ होकर,
छीनी हमने आज़ादी थी।
जिसे पाने के लिए उमड़ी,
भारत की पूरी आबादी थी।
गली-गली नुक्कड़-नुक्कड़,
जब लगे हिंद के नारे थे।
जान गवा दी लालो ने,
जो अपनी माँ के प्यारे थे।
हुई प्रतिज्ञा आज़ादी की,
हर क़ीमत जिस पर हारी थी।
तरसे थे जो सदियों तक,
वो आज़ादी सबको प्यारी थी।
घुट घुट कर जो अपमान सहा,
बदला उसका भी लेना था।
दिया ग़ुलामी ने जो दंश,
उसे सूद समित अब देना था।
जब आज़ादी आई तब,
घर-घर तिरंगा लहराया था।
नन्हे-नन्हे हाथों ने भी,
शान से तिरंगा फहराया था।
लो आज़ादी की वर्षगाँठ पर,
फिर घर-घर तिरंगा लहराया है।
हर्ष मनाओ सब मिलकर,
आज़ादी का महोत्सव आया है।
कीर्ति सिंह गौड़
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