घर की चिट्ठी के साथ आती है डाकिए की याद।
सोशल मीडिया की दुनिया में घर की चिट्ठी का अलग महत्व है।
परिवार और नई पीढ़ी को अतीत से जोड़ने का काम करेगी डॉ. सोनाली नरगुंदे की पुस्तक ‘घर की चिट्ठी’
पुस्तक के विमोचन समारोह में अतिथियों ने व्यक्त किए ये उद्गार।
शिक्षक दिवस के मौके पर देवी अहिल्या विवि पत्रकारिता विभाग की विभाग अध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे की काव्यकृति ‘घर की चिट्ठी’ का विमोचन।
इंदौर : आज के दौर में जब व्हाट्सएप, ईमेल और सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म के माध्यम से संदेश का आदान-प्रदान हो जाता है, पुराने दौर से लेकर अब तक के सफर को रेखांकित करती काव्यकृति ‘घर की चिट्ठी’ का विमोचन मंगलवार शाम इंदौर प्रेस क्लब में आयोजित एक गरिमामय समारोह में किया गया। शिक्षक दिवस के अवसर पर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला की विभाग अध्यक्ष डॉ.सोनाली नरगुंदे द्वारा लिखित कविताओं की इस पुस्तक के विमोचन समारोह में पद्मश्री जनक पलटा, उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत व कला अकादमी के निदेशक जयंत भिसे, इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी और वरिष्ठ पत्रकार और साहियकार मुकेश तिवारी अतिथि के बतौर मौजूद रहे।
कार्यक्रम के प्रारंभ में इस पुस्तक की रूपरेखा बताते हुए डॉ. सोनाली नरगुंदे ने बचपन से लेकर अब तक के जीवन के सफर और उस सफर में चिट्ठी के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की विस्तार से चर्चा की । उन्होंने उसे समय को भी याद दिलाया जब घर पर कोई एक चिट्ठी आती थी तो पूरा घर उत्सुक होता था यह जानने के लिए कि वह चिट्ठी किसकी आई है, क्यों आई है और उसमें क्या लिखा है..?
‘घर की चिट्ठी’ के साथ आती है डाकिए की याद।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए साहित्यकार मुकेश तिवारी ने कहा कि कविताओं की किताब ‘घर की चिट्ठी’ के साथ डाकिए की याद आती है । उन्होंने पुराना दौर याद किया और कहा कि चिट्ठी आज भी उत्सुकता पैदा करती है। ऐसी ही उत्सुकता इस किताब को लेकर भी है। किताब की लेखिका डॉक्टर सोनाली नरगुंदे प्रयोगधर्मी हैं। उनमें सीखने की ललक है । इस किताब को पढ़ने पर पाठक को भी यह प्रयोगधर्मिता नजर आती है । इस किताब में गांव की मिट्टी की सौंधी महक है। किताब में दीवार से लेकर टेंपो तक का सफर शामिल है। इसमें कोरोना का डरावना दौर भी समाहित है।
ऑनलाइन की दुनिया में घर की चिट्ठी का अलग महत्व।
पर्यावरणविद पद्मश्री जनक पलटा ने कहा कि घर की चिट्ठी से समाज को जिंदा कर दिया गया है। जब सारी दुनिया मोबाइल और ऑनलाइन पर है, तब घर की चिट्ठी का अपना एक अलग महत्व है। आज के दौर में कोई नहीं जानता कि घर क्या होता है ? अब घर निवेश के लिए होता है।यह स्थिति शहर से लेकर गांव तक पहुंच गई है। इस किताब में घर के वातावरण की बात की गई है। यह सीधे दिल में उतरने वाली किताब है। उन्होंने अपने बचपन में माता और पिता को लिखे जाने वाले पत्रों को याद किया है। अब तो नए मीडिया में सांकेतिक भाषा का चलन हो गया है। शब्दों की भाषा में संवेदना होती है।
‘घर की चिट्ठी’ परिवार को जोड़ने का काम करेगी।
उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत व कला अकादमी के निदेशक जयंत भिसे ने कहा कि आजकल संवेदनाएं खत्म हो रही है । अब संवेदना प्रकट करने के लिए शब्द नहीं मिलते हैं।आंखो में संवेदना के भाव नहीं आते हैं। घर परिवार की बात करें तो हमारे पास क्या है, उसकी कीमत नही है । जो नही है उसके पीछे भागते हैं। इस दौर में ‘ घर की चिट्ठी’ किताब सभी को अपने घर परिवार और पूर्वजों के साथ जोड़ने का काम करेगी।
नई पीढ़ी को अतीत से जोड़ने वाली किताब है।
इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार अरविंद तिवारी ने इस किताब को आज की आवश्यकता बताया । उन्होंने कहा कि इस तरह की किताबों के माध्यम से ही हम नई पीढ़ी को अतीत से जोड़ने का कार्य कर सकते हैं । डॉक्टर सोनाली निरगुंदे एक अच्छी पत्रकार रही और अब एक अच्छी पत्रकारिता की प्राध्यापक हैं । उनके पत्रकारिता शिक्षा में जाने के कारण इंदौर की पत्रकारिता मैं नए और अच्छे प्रतिभाशाली पत्रकार आ रहे हैं।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत विश्वजीत सिंह, केशव शर्मा, गीतांजलि गोगटे, अभिजीत गोगटे, वैशाली सिंह ने किया । कार्यक्रम का संचालन और आभार प्रदर्शन अनुभूति निगम ने किया।