जैन समाज के वैवाहिक विवादों के मामले हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही होंगे निराकृत।
जैन कांफ्रेंस युवा शाखा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष टीनू जैन ने उच्च न्यायालय के निर्णय का किया स्वागत।
इंदौर : मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की डबल बेंच ने कुटुंब न्यायालय द्वारा दिए गए उस विवादित आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि जैन समाज पर हिंदू विवाह अधिनियम लागू नहीं होता। उच्च न्यायालय ने इस आदेश को असंवैधानिक करार देते हुए स्पष्ट किया कि संविधान निर्माताओं ने हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदायों को हिंदू विवाह अधिनियम में सम्मिलित किया था।
जैन कॉन्फ्रेंस युवा शाखा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष दीपक जैन “टीनू” ने उच्च न्यायालय के इस निर्णय का स्वागत करते हुए इसे “न्याय की विजय” बताया। उन्होंने कहा, “हम भले ही जैन हैं, लेकिन दशकों से हमारे समाज के वैवाहिक मामलों में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही निर्णय होते आ रहे हैं। विवाह विच्छेद से संबंधित मामलों में जैन दंपतियों पर हिंदू विवाह अधिनियम लागू न होने का कुटुंब न्यायालय का फैसला न केवल समाज को असमंजस में डालने वाला था, बल्कि यह एक स्थापित विधिक प्रक्रिया के विपरीत भी था।”
दीपक जैन “टीनू” ने कहा कि वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने जैन समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा प्रदान किया था, लेकिन इसके बावजूद विवाह संबंधी हजारों मामले हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत ही निराकृत किए गए हैं। इस निर्णय के बाद जैन समाज के लोग असमंजस में थे कि उनके विवाह संबंधी विवाद किस कानून के तहत सुलझाए जाएंगे। उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद अब यह संशय पूरी तरह समाप्त हो गया है।
दीपक जैन “टीनू” ने आगे कहा, “उच्च न्यायालय का यह फैसला न केवल संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करता है, बल्कि जैन समाज के हितों की भी रक्षा करता है। हम इस निर्णय का स्वागत करते हैं और इसे न्याय की जीत मानते हैं।” उन्होंने कहा कि “जैन समाज के सभी सदस्यों, अधिवक्ताओं और समुदाय के हित में कार्य करने वाले सभी संगठनों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि “हमारी एकजुटता और सत्य के प्रति आस्था ने हमें यह महत्वपूर्ण न्याय दिलाया है। यह निर्णय समाज के हितों की रक्षा में मील का पत्थर साबित होगा।”