इंदौर : जनजाति सुरक्षा मंच ने धर्मांतरित लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करने की मांग की है। इस मांग को लेकर रविवार 8 मई को लालबाग पैलेस में परिसर में महारैली का आयोजन किया जा रहा है। इसमें जनजातियों के 20 हजार से अधिक लोग शिरकत करेंगे।
धर्मांतरित लोग ले रहें दोहरा लाभ।
जनजाति सुरक्षा मंच मप्र के प्रदेश संयोजक कैलाश निनामा और जिला संयोजक मनीष ठाकुर ने पत्रकार वार्ता में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जनजाति समुदाय के जिन लोगों ने अपना मूल धर्म और संस्कृति का त्याग कर विदेशी धर्म और संस्कृति को अपना लिया है, वे जनजाति को संविधान प्रदत्त लाभ तो उठा ही रहे हैं, स्वयं को अल्पसंख्यक बताकर उससे जुड़ी सुविधाओं का भी लाभ उठा रहे हैं। इससे मूल जनजातीय समुदाय के लोगों के साथ अन्याय हो रहा है। उनका हक मारा जा रहा है।
कानून की विसंगति दूर करें सरकार।
श्री निनामा ने कहा 1950 में तत्कालीन राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से संविधान के अनुच्छेद 341 व 342 के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की सूची जारी की थी। इन सूचियों के आधार पर ही इन वर्गों के लिए सरकारों ने हितकारी प्रावधान लागू किए हैं। इसमें विसंगति यह है कि अनुच्छेद 341 में अनुसूचित जाति की सूची में धर्मांतरित लोगों को शामिल नहीं किया गया पर अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजातियों की सूची से धर्मांतरितों को बाहर नहीं रखा गया। इसके चलते धर्मांतरित लोग बरसों से दोहरी सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं।
1970 में पेश हुआ था निजी बिल।
कैलाश निनामा ने बताया कि 1970 में तत्कालीन सांसद डॉ कार्तिक बाबू उराव ने इस संवैधानिक विसंगति को दूर करने के लिए निजी विधेयक संसद में पेश किया था पर लोकसभा भंग होने से वह बिल खटाई में पड़ गया। उसके बाद से ही था मामला लंबित है। निनामा ने कहा कि जनजाति सुरक्षा मंच ने 20 लाख हस्ताक्षरित ज्ञापन 2009 में तत्कालीन राष्ट्रपति को सौंपकर उनसे आग्रह किया था की वे अनुसूचित जनजातियों की सूची में निहित विसंगति को दूर कर धर्मांतरित लोगों को उससे बाहर करें। इसके अलावा 400 से अधिक सांसदों से भी इस बारे में संपर्क किया गया था।
श्री निनामा के मुताबिक जनजाति सुरक्षा मंच, धर्मांतरित लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करने की अपनी मांग को लेकर सड़क से संसद तक अपनी लड़ाई जारी रखेगा।