अभी तो बस शिवराज पर नाज़, माफ करो..

  
Last Updated:  July 14, 2023 " 08:43 pm"

🟢 चुनावी चटखारे 🟢

(कीर्ति राणा)केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का भोपाल आने का कार्यक्रम तय क्या हुआ, अटकलबाजी का बाजार गर्म हो गया था। जिस तरह केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल दिल्ली से ताबड़तोड़ भोपाल आए, पुरानी भाजपा के आशादीप बने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भोपाल आते ही सीधे राज्यपाल से मिलने चले गए तो शिवराज विरोधियों ने अटकलों वाले अनार और रस्सी बम सब तरफ बिछा दिए थे लेकिन ये सारी आतिशबाजी इतनी गीली रही कि धमाकों की जगह फुस्स… होकर रह गई।

सिंधिया समर्थक बार बार मोबाइल देखते रहे, यहां-वहां फोन लगा कर टोह लेते रहे कि यह सुन कर सुकून मिल जाए कि श्रीमंत शपथ लेने वाले हैं या कि डिप्टी सीएम बना रहे हैं, पर सारी आस तो निरास हो गई, श्रीमंत तो राज्यपाल को निमंत्रित करने गए थे कि राष्ट्रपति ग्वालियर आने वाली हैं तो आप भी आमंत्रित हैं। प्रह्लाद पटेल समर्थक तो एक पखवाड़े में दूसरी बार डिजिटल ठगी के शिकार हो गए।पहले चर्चा चली थी कि बस प्रदेश अध्यक्ष बनने वाले है, इस बार तो लड्डू इसलिए भी जोर से फूटने लगे थे कि शाह की यात्रा वाले दिन ही उन्हें भी तुरंत भोपाल आने के लिए कहा गया था, इस बार चोंट पर फिर चोंट हो गई। सभी को चुनावी तैयारी संबंधी बैठक में बुलाया गया था। 13 सदस्यों वाली बैठक में सभी को अमित शाह ने सख्ती से समझा दिया कि अब ऐसी कोई हरकत मत करना कि मप्र में पार्टी की तेरहवीं के हालात बने। कम से कम ऊपर से तो एक हो जाओ, कोई बदलाव नहीं है, अपने को बदल लो, ऊपरी तौर पर ही सही शिवराज ही सब कुछ रहेंगे। तेरह कठपुतलियों की डोर भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव के हाथों में रहेगी ही।

मप्र यात्रा पर आने वाले प्रधानमंत्री मोदी, नरोत्तम मिश्रा व गोपाल भार्गव से तो हंस कर मिलते हैं लेकिन सतत 18 साल से मप्र में भाजपा के एकमात्र मजबूत चेहरे के रूप में पहचान बन गए शिवराज सिंह से फुलाए मुंह और चढ़ी त्योरियों वाली मुख मुद्रा के बाद भी शिवराज सिंह का विकल्प नहीं तलाश पाने वाले मोशाजी भोपाल यात्रा से प्रदेश के बाकी तमाम क्षत्रपों और उनके कार्यकर्ताओं को भी यह संदेश देकर गए हैं कि चुनाव तो शिवराज सिंह के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा।

प्रदेश में पांच यात्राओं के लिए उन क्षेत्रों के नेताओं को दायित्व सौंप कर एक तरह से संदेश भी दे गए हैं कि पहले अपने-अपने क्षेत्रों की सभी सीटों पर प्रत्याशियों को जिताने की मेहनत कर के दिखाओ।परिणामों में सरकार बनने जैसी स्थिति हो जाएगी तब दिल्ली तय करेगी कौन होगा प्रदेश का अगला मुखिया।नई भाजपा, पुरानी भाजपा वाली खाई को पाटने के लिए यह जरूरी नहीं कि श्रीमंत पर भरोसा करें या उनकी इच्छा मुताबिक उनके साथ आए सभी विधायकों को फिर से टिकट दिए ही जाएं।

भाजपा विधायक संजय पाठक पर अचानक ‘बिजली’ गिर गई।

बहुतों को याद होगा वैभव सम्पन्न संजय पाठक के यहां धड़ाधड़ छापे पड़े थे।सरकार कोई एक्शन ले उससे पहले ही विधायक पाठक को भाजपा से प्रेम हो गया। छापों वाली कार्रवाई का रिजल्ट अब क्यों आएगा।जिस तरह पाठक ने भाजपा के खेमे में जाकर कांग्रेस जनों को चौंकाया था, उनके कट्टर समर्थक-विश्वस्त कटनी जिले के प्रभावी संदीप बिश्नोई ने पाठक से जो सीखा वह कर दिखाया है। बिश्नोई ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली है। कमलनाथ ने जब उनका स्वागत किया तो अपने साथ बिश्नोई ने कटनी जनपद के छह सदस्यों और अन्य कार्यकर्ताओं को कांग्रेस ज्वाइन करा के अपनी ताकत का प्रदर्शन यह कहते हुए कर डाला कि कांग्रेस में शामिल होने का पहले से कोई प्लान नहीं था, बिजली अचानक गिरती है। कुछ दिनों पहले ही कटनी से पूर्व विधायक ध्रुव प्रताप सिंह भी भाजपा को छोड़ कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।

फिर फड़क रहे हैं सरकार के कान।

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के बाद आशा कार्यकर्ताओं से भी अपनी जय जयकार सुनने के लिए सरकार के कान फड़क रहे हैं।इसी महीने प्रदेश की 75 हजार आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की महा पंचायत का इवेंट भोपाल में होने वाला है। अपनी भाषण शैली से शिवराज सिंह यह कह कर इनका दिल जीतने वाले हैं कि मैं इन लाड़ली बहनों के लिए अब तक कुछ नहीं कर पाया इससे मन विचलित था।सरकार इस प्रोत्साहन राशि को पांच करे या दस हजार यह तो गोपनीय फीडबेक मिलने के बाद रणनीतिकार ही तय करेंगे, सीएम को तो बस घोषणा करना है।अभी सरकार ने इनकी प्रोत्साहन राशि 1500 से बढ़ा कर 2 हजार तो की लेकिन लक्ष्य पूरा न होने पर इस राशि से कटौती भी कर ली जाती है।

सरकार को मुसीबत से बचा लिया झाबुआ कलेक्टर ने।

आदिवासी बहुल जिलों में पदस्थ अन्य कलेक्टरों को झाबुआ कलेक्टर तन्वी हुड्डा से सबक लेना चाहिए।उन्होंने जिस तत्परता से रंगीले एसडीएम सुनील झा पर एक्शन लिया उससे सरकार की भी फजीहत नहीं हो पाई। महिला अधिकारियों को भी सीखना चाहिए कि महिलाओं-बालिकाओं के साथ ज्यादती हो तो उन्हें तुरंत सजगता दिखाना चाहिए।बहुत संभव है कि तन्वी हुड्डा की जगह कोई पुरुष कलेक्टर होता तो इतनी ही तत्परता नजर आती?एसडीएम कोओबीसी होस्टल की व्यवस्था देखने के अधिकार हैं लेकिन पहुंच गए थे आदिवासी छात्रावास में। कलेक्टर की रिपोर्ट के बाद कमिश्नर डॉ. पवन शर्मा ने रंगीले एसडीएम को निलंबित कर बुरहानपुर अटैच कर दिया।उनकी जगह एएचएस विजयवर्गीय को एसडीएम पदस्थ किया है।
रंगीले एसडीएम की इंदौर में पदस्थ रहते भी ऐसी ही रंगीली हरकतें थी।एसएलआर और डिप्टी कलेक्टर रहते दो महिलाकर्मियों ने उनकी रंगीन मिजाजी,अश्लील हरकतों की शिकायत बड़े अधिकारियों से की थी।यदि तन्वी हुड्डा इंदौर पदस्थ रही होतीं तो शायद उसी वक्त सबक सिखा देतीं।डीएम की कुर्सी पर पुरुष पदस्थ होना भी सख्त एक्शन नहीं लेने का कारण रहा होगा।

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