इंदौर : छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी का इंदौर के साथ खास रिश्ता रहा है। उनकी धर्मपत्नी डॉ. रेणु जोगी और पुत्र अमित जोगी इन दिनों इंदौर प्रवास पर आए हैं। शनिवार को वे इंदौर प्रेस क्लब पधारें और स्व. अजीत जोगी की इंदौर से जुड़ी यादों को ताजा किया। इस दौरान अमित जोगी भावुक हो गए। उन्होंने पत्रकार साथियों से कहा कि जोगी परिवार का इंदौर से दल का नहीं दिल का रिश्ता है।
इंदौर छूटने का स्व. जोगी को हमेशा दुःख रहा।
अमित जोगी ने अपने पिता स्व.अजीत जोगी के इंदौर से लगाव का जिक्र करते हुए कहा कि इंदौर उनका सबसे प्रिय शहर था। जब छत्तीसगढ़ बना और वे उसके पहले मुख्यमंत्री बनें तो उन्हें इस बात का दुःख हमेशा रहा कि इंदौर छूट गया। ये शहर छत्तीसगढ़ का हिस्सा नहीं बन सका। एक हादसे में व्हीलचेयर पर आने के बावजूद जब भी मौका मिलता वे इंदौर आने से नहीं चूकते थे।
लॉकडाउन के दौरान 40 दिन में लिख दी आत्मकथा।
अमित जोगी ने स्व. अजीत जोगी द्वारा लिखी गई आत्मकथा के बारे में बताते हुए कहा कि कोरोना काल में जब लॉकडाउन लगा तो समय का सदुपयोग करते हुए श्री जोगी ने केवल 40 दिनों में अपनी आत्मकथा लिख दी। उंसका शीर्षक वे नहीं दे पाए।
सपनों का सौदागर दिया गया शीर्षक।
अमित जोगी के मुताबिक उनके पिता अजीत जोगी चाहते थे कि हम उनकी आत्मकथा के लिए अच्छा सा शीर्षक सुझाएँ। मुख्यमंत्री रहते उन्हें विपक्षी नेता सपनों का सौदागर कहते थे। श्री जोगी भी जवाब में कहते थे कि हां वे सपनों के सौदागर हैं। वे छत्तीसगढ़ को विकसित और समृद्ध प्रदेश बनाना चाहते हैं। उनके जाने के बाद श्रद्धांजलि सभा में उनके सपनों के सौदागर होने का जिक्र आया तो मेरी मां रेणु जोगी ने तय किया की स्व. अजीत जोगी की आत्मकथा को सपनों का सौदागर नाम दिया जाए। इसी शीर्षक के साथ उनकी आत्मकथा प्रकाशित की गई।
इंदौर में बिताए समय का किताब में है मार्मिक उल्लेख।
अमित जोगी ने बताया कि सपनों का सौदागर में उनके पिता ने इंदौर में बिताए समय और यादगार लम्हों का कई पृष्ठों में मार्मिक ढंग से उल्लेख किया है। इंदौर उनके दिल में बसता था।
अमित जोगी ने स्व. जोगी की लिखी किताब प्रेस क्लब के साथ उपस्थित पत्रकारों को भी भेंट की।
रेणु जोगी ने भी सुनाएं संस्मरण।
स्व. अजीत जोगी की धर्मपत्नी डॉ. रेणु जोगी ने भी पत्रकारों को स्व जोगी के इंदौर से जुड़े संस्मरण सुनाएं। उन्होंने कहा कि श्री जोगी ने इंदौर में कलेक्टर के बतौर लंबा समय बिताया। इस शहर से उनका गहरा जुड़ाव रहा। इंदिराजी की हत्या के बाद जब देश के साथ इंदौर में भी दंगे भड़क गए थे, उससमय वे तीन दिनों तक घर नहीं आए। लगातार मैदान में डटे रहकर दंगों पर काबू पाने का प्रयास करते रहे।
जान जोखिम में डालने से कभी नहीं डरे।
डॉ. रेणु जोगी ने बताया कि स्व. जोगी अपनी जान की परवाह किये बिना जिम्मेदारी का वहन किया करते थे। 1984 के दंगों के दौरान ऐतिहासिक राजवाड़ा जल उठा था, उसे बचाने के उन्होंने हरसंभव प्रयास किए। उस दौरान एक जलती लकड़ी उनपर गिरने ही वाली थी कि उनके सहयोगी ने पकड़कर उन्हें पीछे खींच लिया। इसीतरह पार्क रोड स्थित आयल के टैंक में लगी आग बुझाने वाले फायर फाइटर्स की अगुवाई भी वे खुद करते रहे जबकि आयल टैंक में ब्लास्ट का खतरा बना हुआ था।
राजनीति में जाने का फैसला एकाएक लिया।
रेणु जोगी ने बताया कि अजीत जोगी कलेक्टर थे और मैं डॉ. के रूप में सरकारी सेवा में थी। जिंदगी की गाड़ी आराम से चल रही थी, इस बीच दिल्ली से उन्हें बुलावा आया। वहां से लौटकर आने के बाद उन्होंने बताया कि उन्हें राजनीति में सक्रिय होने और राज्यसभा का सांसद बनने का न्योता मिला है। आपसी चर्चा के बाद मैंने उनके फैसले पर सहमति जताई। घर चलाने का जिम्मा मैने संभाला और वे नौकरी छोड़कर राजनीति में चले गए। उससमय राज्यसभा सांसद का भत्ता काफी कम होता था,अतः कुछ साल तो मितव्ययिता के साथ छोटे से घर में भी गुजारे।
मुख्यमंत्री बनाने में सोनिया गांधी व अन्य नेताओं का रहा योगदान।
डॉ. रेणु जोगी ने कहा कि छत्तीसगढ़ के गठन के बाद अजीत जोगी को राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनाने में सोनिया गांधी, माधवराव सिंधिया और दिग्विजय सिंह का अहम योगदान रहा। डॉ. रेणु जोगी ने अजीत जोगी से जुड़े और भी कई संस्मरण सुनाएं।
इंदौर प्रेस क्लब की ओर से अध्यक्ष अरविंद तिवारी, उपाध्यक्ष प्रदीप जोशी और कोषाध्यक्ष संजय त्रिपाठी ने डॉ. रेणु जोगी और अमित जोगी का पुष्पगुच्छ, दुपट्टा और श्रीमद भगवत गीता भेंटकर स्वागत किया। आभार प्रदीप जोशी ने माना।