राजेंद्र नगर में चल रही मराठी भागवत कथा में बोले वेदमूर्ति धनंजय शास्त्री
इंदौर : जिस तरह शहद की मिठास, शकर की मिठास हमें दिखाई नहीं देती उसे केवल चख कर ही अनुभव किया जा सकता है, ठीक उसी तरह ईश्वर हर जगह मौजूद है। उसे सिर्फ अंतर्मन की भक्ति से ही देखा जा सकता है। ऐसा कोई पदार्थ नहीं है,जिसमें ईश्वर की मौजूदगी ना हो। चेतन और जड़ सभी प्रकार के पदार्थों में उसकी उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है। श्रीमद भागवत कथा में ईश्वर के सगुण और निर्गुण दोनों रूपों के दर्शन होते हैं । वेदव्यास रचित श्रीमद भागवत के पहले ही श्लोक के 100 से भी अधिक अर्थ निकलते हैं ।
ये विचार जगतगुरु शंकराचार्य के शिष्य,प्रकांड विद्वान, ओजस्वी वक्ता वेदमूर्ति धनंजय शास्त्री वैद्य ने राजेंद्र नगर स्थित जवाहर सभागृह में मराठी भागवत कथा में व्यक्त किए।
संध्याकाल लें हल्का आहार।
श्रीराम मंदिर राजेंद्र नगर के स्वर्ण जयंती उत्सव तथा अधिक मास निमित्त आयोजित भागवत कथा का यह दूसरा दिन था। सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए धनंजय शास्त्री वैद्य ने कहा कि शास्त्र कहते हैं सुबह के पहले प्रहर में जलपान अर्थात पानी ज्यादा खाद्य पदार्थ कम , दूसरे प्रहर में हमे सभी प्रकार का आहार लेना चाहिए। दोपहर बाद सूर्यास्त के पूर्व एक फल और संध्याकाल सिर्फ हल्का आहार लेना चाहिए जिससे पाचन क्रिया दुरस्त रहती है । रात का बचा हुआ भोजन सुबह ग्रहण नहीं करना चाहिए । प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनि समस्त नियमों का पालन करते थे इसीलिए उनका जीवन सैंकड़ों वर्षों में हुआ करता था।
वेदमूर्ति धनंजय शास्त्री ने कहा कहा कि पुराने जमाने में जाति व्यवस्था थी लेकिन जातिभेद कतई नहीं था। भारत में विदेशी आक्रमणकारियों ने अपने स्वार्थ के लिए जात- पात पर आधारित भेदभाव को बढ़ावा दिया। भागवत में छह महत्वपूर्ण प्रश्न शौनकजी ने सूतजी से पूछे हैं, इन छह प्रश्नों के उत्तर ही सम्पूर्ण भागवत और मनुष्य जीवन का सार है । भागवतजी में कहा गया है समस्त शास्त्रों का सार कृष्ण भक्ति और हरी भक्ति ही है । भगवान के असंख्य अवतार हुए हैं। जब भगवान का अवतार संपन्न होता है तब उसका सार भागवत में आ कर स्थिर हो जाता है। उन्होंने बताया कि धर्म का प्रयोजन मोक्ष है, धर्म का हेतु अर्थोपार्जन नहीं है।
मराठी में हो रही इस भागवत कथा को सुनने के लिए क्षेत्र की महिलाएं बड़ी तादाद में पहुंच रहीं हैं।