उम्र के बंधन में न बांधे खुशियों को…

  
Last Updated:  October 19, 2021 " 03:12 pm"

(लघुकथा) गौरी बालकनी में बैठे-बैठे अपने अतीत की यादों में खोई हुई थी। कैसे बाल्यकाल से ही सबसे बड़ी होने का दायित्व निभाया। कभी छोटी बहन अस्वस्थ हुई। असमय पिता एक्सीडेंट का शिकार हुए, उसके बाद माँ की ज़िम्मेदारी और भाई की मानसिक स्थिति। इन सबके बीच गौरी केवल और केवल परिस्थितियों से जूझती रहीं। गौरी की बाल्यावस्था तो मात्र संघर्ष की अनवरत यात्रा थी। बाल्यकाल में तो उसे कभी सुख की परिभाषा समझ ही नहीं आई। कुछ समय पश्चात शुरुआत हुई किशोरावस्था की, गौरी को चन्द्रशेखर का साथ मिला। पर यह क्या, चन्द्रशेखर की नजर में तो गौरी की कोई कीमत ही नहीं थी। वह तो सिर्फ उसके लिए खाना बनाने वाली थी। ससुराल वालों की जिद के चलते लड़का होने की लालसा में उसने चार-चार पुत्रियों को जन्म दिया। प्रसव पीड़ा से लेकर बच्चियों के लालन-पालन में परिवार का न मानसिक और न शारीरिक सहयोग मिला। पर गौरी ने अपनी पुत्रियों की शिक्षा-दीक्षा में स्वस्तर पर भी भरसक प्रयत्न किए।
जीवन की इसी कड़ी में गौरी को बच्चियों की विवाह की चिंता सताने लगी। कभी-कभी दुर्भाग्य जीवन की कुंडली में ग्रहण बनकर बैठ जाता है। नीयत समय पर बड़ी बेटी का विवाह तय हुआ पर शायद गौरी के जीवन के दुख उसका पीछा छोडने को तैयार नहीं थे। ससुराल की पारिवारिक स्थितियों के चलते बेटी ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। जीवन में कष्टदायी क्षण गौरी के लिए संत्रास, घुटन और उत्कंठा का रूप ले चुके थे। अवसाद का शिकार तो वह पहले ही हो चुकी थी, पर अब इस अवसाद की तीव्रता दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी जिसके चलते उसे नींद के लिए दवाइयों पर निर्भर होना पड़ा। गौरी की बेटियाँ शिक्षा अर्जित करने में काफी अच्छी थी। शायद उन पर माँ सरस्वती की कृपा थी जिसके चलते बेटियों ने तन-मन-धन से गौरी को पूर्ण सहयोग प्रदान किया। यहीं सुकून गौरी के जीवन में था।

गौरी की बेटियाँ ही उसे मानसिक मनोबल देकर उसके जीवन में खुशी के मोती बिखेर रही थी। नियति ने एक और भी चमत्कार किया की गौरी की छोटी बेटी का विवाह जिससे हुआ वह दामाद के रूप में बेटे का करुणामय रूप था। कुछ समय पश्चात गौरी की बेटी ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। यह कन्या भी गौरी के लिए सुख की छवि का ही एक रूप थी। गौरी सोच रही थी की उम्र और सुख की तलाश में तो जिंदगी ही खत्म होने के कगार पर आ गई। गिनती के कुछ खुशी के पल नसीब हुए बाकी पूरी जिंदगी उम्र के पड़ाव को पार करती चली गई। पर उसे खुशियों की झलक हर उम्र के साथ नहीं मिली। यह लघु कथा हमें सिखाती है की उम्र के साथ सुख की तलाश में तो जिंदगी बीत जाती है पर हम सुख के क्षण खोजते ही रह जाते है। इसलिए इस धोखेबाज जीवन पर भरोसा न करें। समय के अनुरूप खुद के लिए भी जिए और खुशियों को महसूस करें। जीवन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है हमारा खुश रहना, जो सिर्फ हमारे हाथों में है, वरना वक्त तो नदी की तरह है जिसे बहते ही जाना है। इसलिए खुशियों को उम्र के बंधन में नहीं बांधे।

डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

Facebook Comments

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *