इंदौर : कोरोना के कहर और मुसीबत का सबब बनीं बारिश के बीच गणपति बप्पा शनिवार को घर- घर विराजे। कोरोना संक्रमण के चलते जिला प्रशासन ने इस बार सार्वजनिक पांडालों में बप्पा को विराजित करने की अनुमति नहीं दी थी, इसके चलते घरों, दफ्तरों और निजी संस्थानों में ही बेहद सादगी के साथ मंगलमूर्ति की स्थापना की गई।
बाजारों में नहीं दिखी रौनक।
कोरोना संक्रमण और तूफानी बरसात ने शहर को जलमग्न कर दिया था। ऐसे में लोग अपने आशियाने को बाढ़ के पानी से बचाने की मशक्कत में लगे रहे। रास्तों पर भी पानी भरा होने से आवागमन में भी लोगों को भारी परेशानी उठाना पड़ी। इसके चलते बाजारों में गणेश चतुर्थी की वो रौनक नजर नहीं आई, जो प्रतिवर्ष दिखाई देती थी। न ढोल ताशों का शोर था और न ही गणपति बप्पा मोरया की गूंज। बरसते पानी में लोग बाजारों में गए और सादगी के साथ मंगलमूर्ति को लाकर घर, दफ्तर व दुकानों में विराजित किया।हालांकि तमाम बाधाओं के बावजूद लोगों की आस्था और भक्ति में कोई कमीं नहीं थी। उन्होंने बप्पा की स्थापना पूरे विधि विधान से की और उम्मीद जताई कि बप्पा कोरोना सहित हर विघ्न को घर- परिवार और शहर से दूर करेंगे।
ईको फ्रेंडली गणपति बिठाने पर रहा जोर।
सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव नहीं मनाए जाने से बप्पा की बड़ी मूर्तियों का निर्माण केवल बुकिंग के आधार पर किया गया। बाजार में छोटी और मध्यम साइज की मूर्तियों का ही क्रय- विक्रय हुआ। इसमें भी भक्तों का रुझान बप्पा की इको फ्रेंडली मूर्तियों को लेकर ज्यादा रहा। अधिकांश लोगों ने मिट्टी की मूर्तियों को ही प्राथमिकता दी।