अपने गांव जाकर जैविक खेती करने लग गए थे, अब पत्रकारिता की पौध तैयार करेंगे।
🔺कीर्ति राणा। 🔺 एमसीयू के अगले कुलगुरु के लिए जो चार नाम चल रहे थे उनमें से एक विजय मनोहर तिवारी थे जो मध्य प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त पद का कार्यकाल पूरा होने के बाद बंगला खाली कर, साजो सामान के साथ अपने गांव लौट गए थे और जैविक खेती करने लगे थे। वक्त तो चाहता था खेत में फसल के लिये मेहनत करने की अपेक्षा वो पत्रकारिता की नई पौध तैयार करें और एमसीयू (माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि)के कुलगुरु के लिये उनका चयन हो गया। विजय मनोहर तिवारी के साथ एक सुखद संयोग यह भी जुड़ा है कि जिस विश्व विद्यालय से वो टॉपर रहे, उसी विवि में आज वो कुलगुरु हैं। यह सपना पूरा होना वैसा ही है कि कोई पत्रकार जिस शहर में रिपोर्टिंग करे एक दिन वह उसी शहर में अखबार का संपादक हो जाए । एमसीयू के कुलगुरु का दायित्व संभालने वाले विजय मनोहर तिवारी एमसीयू की 1992-93 बैच के टॉपर रहे हैं।
संबोधन ओशो के पत्र की पंक्तियों से।
नईदुनिया इंदौर में पत्रकारिता करते हुए उषानगर स्थित ओशो ध्यान केंद्र से जुड़े रहे तिवारी ने द्रोणाचार्य सभाकक्ष में विभाग प्रमुखों की पहली मीटिंग में अपने संबोधन की शुरुआत भी ओशो को याद करते हुए की। ओशो के एक पत्र की पंक्ति दोहराते हुए उन्होंने कहा कि मेरी दृष्टि में प्रयास ही प्राप्ति है और अडिग चरण ही मंजिल है।1951 में सागर से 20 साल के रजनीश ने यह पत्र अपने एक सहपाठी को लिखा था।उन्होंने कहा कि नई ऊंचाइयों की बात करने से ज्यादा जरूरी है कि हमारी ज़मीन ठोस हो, नींव मजबूत हो, आधार मजबूत होगा तो इमारत ऊँची ही नहीं टिकाऊ भी बनेगी।नई ऊँचाइयाँ किसी ने नहीं देखी होतीं।
12 पुस्तकें लिखी हैं।
नवनियुक्त कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी विश्वविद्यालय के ही बैचलर ऑफ जर्नलिज्म (बीजे) में दूसरी बैच 1992_93 के टॉपर विद्यार्थी रहे हैं। उन्होंने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों में ही लगभग ढाई दशक से ज्यादा तक रिपोर्टिंग से लेकर विभिन्न पदों पर कार्य किया। उन्होंने 12 पुस्तकों का भी लेखन किया है। उनकी चर्चित पुस्तकों में हरसूद 30 जून, प्रिय पाकिस्तान, एक साध्वी की सत्ता कथा, भारत की खोज में मेरे पांच साल, आधी रात का सच, उफ़ ये मौलाना, जागता हुआ कारवा, हिन्दुओं का हश्र, स्याह रातों के चमकीले ख्वाब एवं राहुल बारपुते हैं।
एकाधिक पुरस्कार-सम्मान भी मिले ।
तिवारी को उनकी लेखनी के लिए कई पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं। यात्रा वृत्तांत, रिपोर्ताज और डायरी लेखन के लिए उन्हें भारतेंदु हरीशचंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान, माधवराव सप्रे पुरस्कार, मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी पुरुस्कार, मध्यप्रदेश गौरव सम्मान मिल चुके हैं। वे भोपाल के बहुकला केंद्र भारत भवन के न्यासी सचिव भी रहे हैं।