इंदौर : महानगर में तब्दील होते इंदौर शहर में यूं तो कई बदलाव आए हैं। पर अपनी उत्सवी धार्मिक व सांस्कृतिक परंपरा का निर्वाह करने में ये शहर कभी पीछे नहीं रहा। सोमवार शाम से देर रात तक इसी सतरंगी परंपरा का नजारा शहर के मध्य क्षेत्र में दिखाई दिया। वहीं सद्भावना की बयार भी बहती दिखाई दी। पहले ग्यारस के मौके पर गाजे- बाजे के साथ आकर्षक डोल निकाले गए। बाद में मोहर्रम की 9 तारीख याने शहादत की रात को ताजिये निकाले गए।
शाम सात बजे से शुरू हुआ डोल निकलने का सिलसिला रात 11बजे तक चलता रहा। शहर के विभिन्न स्थानों से अलग- अलग समाजों के डोल राजवाड़ा से पीवाय रोड होते हुए हरसिद्धि मन्दिर पहुंचे और वहां से फिर अपने गंतव्य की ओर रवाना हुए। डोल के साथ अखाड़ों के कलाकार पुरानी शस्त्रकला का प्रदर्शन करते चल रहे थे।जगह- जगह बने स्वागत मंचों से अखाड़ों के उस्ताद व कलाकारों का स्वागत कर उनकी हौसला अफजाई की गई। कॄष्णलीलाओं पर केंद्रित नयनाभिराम झांकियां डोल ग्यारस पर सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र रहीं। जुलूस मार्ग पर उमड़े हजारों लोगों ने इन झांकियों की लुभवनी छटा को मोबाइल में कैद कर लिया।
डोल ग्यारस को जलवा पूजन एकादशी या कुआ पूजन के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है की बाल- गोपाल के जन्म के 11 वे दिन माता यशोदा ने जलवा पूजन किया था। उसी का निर्वाह करते हुए डोल ग्यारस मनाया जाता है।
डोल निकलने का सिलसिला थमा ही था कि राजवाड़ा और आसपास का इलाका या हुसैन के नारों से गूंज उठा। शहादत की रात इमामबाड़े पर फातिहा पढ़ने के बाद सरकारी ताजिये को नगर भ्रमण के लिए ले जाया गया। उसके पीछे शहर के अन्य ताजिये चल रहे थे। राजवाड़ा, खजूरी बाजार, नृसिंह बाजार, जवाहर मार्ग, यशवंत रोड होते हुए सरकारी ताजिया फिर से इमामबाड़ा पहुंचा।