इंदौर : बच्चों में प्रतिभा की कमीं नहीं होती, जरूरत उनकी प्रतिभा को पहचानकर सही दिशा देने की होती है। जो परिजन ऐसा कर पाते हैं, उनके बच्चे वो काम कर गुजरते हैं, जो एक मिसाल बन जाती है। ऐसे ही एक नन्हें प्रतिभावान बालक हैं यथार्थ जैन। जिस उम्र में बच्चे कार्टून देखने में समय बिताते हैं, यथार्थ के दिमाग में नए- नए आइडियाज आते हैं और उन्हें वो यथार्थ में बदलने में जुट जाते हैं। उनकी इस प्रतिभा को मां डॉ. चारुल जैन ने पहचाना और उसे प्रोत्साहित करना शुरू किया। रिटायर्ड डीएसपी ट्रैफिक डीके जैन दंपत्ति यथार्थ के नाना- नानी हैं। उन्होंने भी यथार्थ की प्रतिभा को निखारने में पूरा सपोर्ट किया। नतीजा ये हुआ कि नन्हा यथार्थ एक अविष्कारक याने बाल वैज्ञानिक बन गया और नए- नए प्रयोग करने लगा। उसके इसी प्रयोगधर्मी दिमाग ने उसे महज साढ़े पांच साल की उम्र में उस मुकाम पर पहुंचा दिया, जिसके लिए बड़े- बड़े शोधार्थी भी तरसते हैं। यथार्थ ने एक ऐसा अविष्कार किया है, जिसने इंदौर को भी गौरवान्वित किया है।
यथार्थ के आविष्कार को मिला पेटेंट।
यथार्थ की माताजी डॉ. चारुल जैन सिम्बायोसिस यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ इंटर डिसिप्लिनरी साइंसेज की एचओडी हैं। उन्होंने बताया कि यथार्थ ने खासतौर पर खिलाड़ियों और यात्रियों के लिए विशेष बोतल का अविष्कार किया है। ये बोतल भौतिकी के नियंत्रित दबाव की अवधारणा का इस्तेमाल करके बनाई गई है। ये नरम प्लास्टिक की बोतल है। इसके ऊपर एक नल है। जब कोई बोतल में भरा पेय (पानी या सॉफ्ट ड्रिंक) नल मुंह में रखकर पीना चाहे तब भी पेय पदार्थ नहीं निकलेगा। नल से पेय पदार्थ बाहर आने के लिए उपयोगकर्ता को बोतल निचोड़ने के लिए नियंत्रित दबाव डालना होगा। जब तक बोतल पर प्रेयर नहीं बनाया जाएगा, बोतल से पेय पदार्थ नहीं निकलेगा। प्रेशर बंद होते ही पेय पदार्थ की सप्लाई भी बंद हो जाएगी। यथार्थ के इसी बोतल डिजाइन अविष्कार को भारत सरकार ने ‘पेटेंट’ के बतौर पंजीकृत किया है। डॉ. चारुल के मुताबिक महज साढ़े पांच साल की उम्र में किसी बच्चे के अविष्कार को पेटेंट मिलने का भारत में यह पहला मामला है। यथार्थ इंदौर के मिनी हाइट्स स्कूल में अपर केजी के छात्र हैं। उनके इस अविष्कार ने स्कूल ही नहीं पूरे इंदौर का नाम रोशन किया है।
मां और नाना- नानी को दर्द से दिलाते हैं राहत।
डॉ. चारुल के मुताबिक यथार्थ अपनी नियंत्रित दबाव की अवधारणा का इस्तेमाल उन्हें और नाना डीके जैन को दर्द से राहत दिलाने के लिए फिजियोथेरेपी के रूप में भी करता है। इसके अलावा उसे बागवानी का भी शौक है। उसने घर के बगीचे में मिर्ची की अलग-अलग किस्में उगाई हैं। पक्षियों के प्रति उसे विशेष स्नेह है। उनके लिए वह दाना- पानी का इंतजाम करने के साथ आशियाना बनाने में भी सामग्री जुटाता है। माँ चारुल जैन को उम्मीद है कि उनका बेटा यथार्थ बड़ा होकर बहुत बड़ा वैज्ञानिक बनेगा और देश, प्रदेश व शहर का नाम और ऊंचा करेगा।