बीस करोड़ की लागत से तीन राज्यो के कलाकार कर रहे अन्नपूर्णा मंदिर का नव श्रृंगार
इंदौर, प्रदीप जोशी। माता अन्नपूर्णा का मूल स्थान वैसे तो काशी में है, जहां वे विश्वभुजा गौरी अथवा आदि अन्नपूर्णा के रूप में शक्तिपीठ के रूप में विराजमान है। उसी माता अन्नपूर्णा की असीम कृपा मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर पर भी है। छह दशक पूर्व यानी 1959 में ब्रह्मलीन स्वामी प्रभानंद गिरि जी महाराज ने इंदौर शहर से बाहर माता अन्नपूर्णा के मंदिर की स्थापना की थी। बताया जाता है कि तब यह सघन वन और कृषि क्षेत्र था। संतों ने एक आस्था का केंद्र बना दिया और वह केंद्र इंदौर के गौरव के रूप में प्रतिष्ठित हो गया। मां की भी असीम कृपा इंदौर और इंदौरवासियों पर बनी हुई है। अन्नपूर्णा का नगर इसीलिए तो अपनी खानपान की रिवायत के लिए पहचाना जाता है। यह वो शहर है जहां व्यक्ति भूखा तो उठता है मगर भूखा सोता नहीं है। कोरोना महामारी के दौर में पूरे देश ने इंदौरियों के जज्बे को देखा भी है। जब लोग अपनी जान की चिंता छोड़ जरूरतमंदों की रोटी का इंतजाम कर रहे थे। बहरहाल, इंदौर पर सर्वाधिक कृपा बरसाने वाली माता का आंगन एक नए अंदाज में श्रृंगारित हो रहा है। मां के आंगन को तीन राज्यों के कलाकार सजा रहे हैं। इस काम में दो साल लगेंगे। नव श्रृंगार और विस्तार में 20 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च आएगा।
प्रदेश का प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल –
बीते साठ सालों में अन्नपूर्णा मंदिर प्रदेश के प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थलों में शुमार हो चुका है। मंदिर के प्रवेश पर विशाल हाथी द्वार इसकी खास पहचान है। गुंबदों पर की गई नक्काशी और धार्मिक पौराणिक कथाओं को दर्शाती मुर्तियां मंदिर को एक अलग पहचान दिलाती है। अन्नपूर्णा का स्थान है, लिहाजा काशी के नरेश बाबा विश्वनाथ भी यहां विराजे हैं। अन्नपूर्णा आश्रम के महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि जी और उनके परम शिष्य स्वामी जयेन्द्रानंद गिरि जी के मार्गदर्शन में आश्रम ट्रस्ट के माध्यम से शैक्षणिक और परामार्थिक कार्य बरसों से जारी है। कभी अन्नपूर्णा मंदिर के बाहर विशाल मेला लगा करता था। मां के विराजने के बाद यह वन क्षेत्र कब सघन रिहायशी इलाके में तब्दील हो गया, पता ही नहीं चला। एक दर्जन से ज्यादा बड़ी कॉलोनियों के अलावा व्यापार का भी बड़ा केंद्र यह इलाका बन चुका है।
नए और विशाल आंगन में विराजेगी मां –
इन दिनों अन्नपूर्णा आश्रम के नवनिर्माण का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। तीन राज्यों के कुशल शिल्पकार और वास्तुविद माता अन्नपूर्णा के नए परिसर को आकार देने में जुटे हैं। 6 हजार 6 सौ वर्गफुट का मंदिर नागर शैली में बन रहा है, जिसमें ओडिसा की वास्तुकला की झलक मिलेगी साथ ही पिलर्स और स्ट्रक्चर राजस्थान शेली के होंगे। मार्बल के 50 स्तंभों पर पूरा स्ट्रक्चर खड़ा हो रहा है इसकी उंचाई जमीन से 81 फीट रहेगी। राजस्थान के कलाकारों ने मार्बल पिलर्स वहीं तैयार किए हैं, जिन्हें लाकर सिर्फ फिट किया जा रहा है। ओडिसा के 32 कलाकार यहां दीवारों पर चारों ओर विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों को अपने हाथों से उकेर रहे हैं। खास बात यह है कि निर्माण में लोहे का उपयोग नहीं हो रहा है। सभा मंडप में नवदुर्गा, दस महाविद्या और 64 योगिनियों की मूर्ति उकेरने का काम तेजी से चल रहा है। इसी तरह चबूतरे पर महाभारत काल की कृष्ण लीलाओं का शिल्पांकन किया जा रहा है।
शहर की गौरवशाली विरासत –
न्यासी मंडल के विनोद अग्रवाल, गोपालदास मित्तल और पवन सिंघानिया ने बताया कि अन्नपूर्णा मंदिर हमारी गौरवशाली विरासत है। वर्तमान मंदिर 3 हजार 2 सौ वर्गफुट पर बना हुआ है जबकि नया मंदिर इससे दोगुना बड़ा बन रहा है। यह 108 फीट लंबा एवं 54 फीट चौड़ा होगा। इस नवनिर्माण में अब तक 3 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। 20 करोड़ से ज्यादा की परियोजना 2023 में पूर्ण होगी। न्यासी टीकमचंद गर्ग, दिनेश मित्तल, श्याम सिंघल और भक्त मंडल के किशोर गोयल ने बताया कि अन्नपूर्णा मंदिर हमारी ऐतिहासिक धरोहर है। दो साल के भीतर हमारे शहर के प्रमुख तीर्थ की ख्याति देश के प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थलों में होगी।