जबलपुर : सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्य प्रदेश में बिना ओबीसी आरक्षण के पंचायत चुनाव कराए जाने का जो फैसला सुनाया गया है, उसके खिलाफ रिव्यू की गुंजाइश बहुत कम है। यह कहना है राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तनखा का। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में किसी महत्वपूर्ण प्रावधान को छोड़ा नहीं है। लिहाज़ा, उसका रिव्यू किए जाने की मांग का ठोस आधार मौजूद नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की नजीर आर ट्रिपल टेस्ट के मापदंड के अनुरूप है। समय रहते यदि मध्य प्रदेश सरकार निर्धारित कदम उठा लेती तो ये स्थिति ओबीसी आरक्षण को लेकर नही बनती पर ऐसा लगता है कि कानून को समझने में सरकार अक्षम है। उसके विधिक सलाहकार भी सही मार्गदर्शन देने में पीछे नज़र आ रहे हैं।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव जल्द कराए जाने की याचिका पर फैसला सुनाते हुए निर्देश दिए हैं कि 15 दिन के भीतर चुनाव की अधिसूचना जारी की जाए। उधर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का परीक्षण किया जाएगा। पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी को आरक्षण मिले इसके लिए रिव्यू पिटिशन दाखिल की जाएगी।
इधर याचिकाकर्ता सैयद जाफर, जया ठाकुर के अधिवक्ता वरुण ठाकुर ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने पंचायत और नगरीय निकाय जल्द कराए जाने संबंधी हमारी याचिका पर चुनाव कराने के निर्देश दिए हैं। हमारे तर्कों को सही माना गया है। सविधान के अनुसार पांच वर्ष में पंचायत और नगरीय निकायों के चुनाव होने चाहिए लेकिन मध्य प्रदेश में यह तीन साल से नहीं हुए हैं। अब सरकार को चुनाव की अधिसूचना जारी करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट में राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग द्वारा ओबीसी की आबादी को लेकर प्रस्तुत रिपोर्ट को कोर्ट ने अधूरा माना है।
आयोग ने 35 प्रतिशत स्थान पंचायत और नगरीय निकायों में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित करने की अनुशंसा की थी। आयोग ने दावा किया था कि प्रदेश में 48 प्रतिशत मतदाता पिछड़ा वर्ग के हैं। सरकार से ओबीसी के लिए 35 प्रतिशत स्थान आरक्षित करने के लिए संविधान संशोधन का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजने की सिफारिश भी की गई है।