इंदौर : पत्रकारिता को शिद्दत के साथ जीनेवाले वरिष्ठ पत्रकार शशीन्द्र जलधारी अब यादों का हिस्सा बन गए हैं। रविवार सुबह रीजनल पार्क मुक्तिधाम पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनके तमाम समकालीन पत्रकार साथी, समाजसेवी, राजनेता और विशिष्टजनों ने उन्हें अंतिम विदाई दी। हालांकि इंदौर का कोई भी मंत्री और विधायक नजर नहीं आया जिन्हें सियासत की सीढियां चढ़ने में अपनी कलम के जरिये जलधारीजी ने उससमय मदद की जब उनका कोई वजूद नहीं हुआ करता था। खैर, उन सभी के पास संस्मरणों का पिटारा था जिन्हें जलधारीजी का साथ कभी न कभी नसीब हुआ था। कई लोगों ने सोशल मीडिया के जरिये जलधारीजी के साथ जुड़ी यादों को ताजा किया।
नईदुनिया से बरसों तक जुड़े रहे संस्कृतिकर्मी और कला समीक्षक संजय पटेल का शशीन्द्र जी के साथ लम्बा जुड़ाव रहा। अपनी यादों को खंगालते हुए संजयजी लिखते हैं कि
अस्सी का दशक विदा होते-होते नईदुनिया लगातार जाना शुरू हुआ था।वहीं सिटी डेस्क पर श्री शशीन्द्र जलधारी को देखा था। गोपीजी विदा हो गए थे और राकेश त्रिवेदी,दिलीप ठाकुर के बीच शशीन्द्र दादा नज़र आते थे। विजय मनोहर तिवारी,प्रवीण शर्मा और विकास मिश्र भी आ गए थे । ये सारे लोग उस सभागारनुमा बड़े से कक्ष में बैठते थे जिसमें पार्टीशन नहीं-पार्टिसिपेशन था।
नेपथ्य में टेलीप्रिंटर का संगीत गूंजता रहता। ठाकुर जयसिंहजी और सुरेश ताम्रकर साइड की टेबल्स पर फ्रंट पेज की तैयारी में मसरूफ़ । चढ़ाव के नीचे ईपीबीएक्स पर सुबोध होलकर फ़ोन की लाइन मिलाते रहते।
मालवा-उत्सव या सांघी संगीत सम्मेलन की रिपोर्टिंग के लिए जब देर रात नईदुनिया पहुंचता तो सिटी डेस्क से प्रेमल आतिथ्य मिलता। कितना अदभुत सुलेख था शशीन्द्र दादा का।
काम करने का सलीक़ा और असहमत होने पर उनका वह अटक-अटक कर शब्द को दोहरा कर बोलना; आज सब याद आया।
मेरे वतन सैलाना (ज़िला रतलाम) से शशीन्द्र दादा का आत्मीय रिश्ता था। श्री अरविंद तिवारी के आग्रह पर जब इन्दौर प्रेस क्लब के लिए शोक सूचना की डिजीटल डिज़ाइन का मज़मून टाइप कर रहा था तो हाथ और मन दोनों कांप रहे थे। एक लम्हा उन्हें याद किया तो लगा अप्सरा में आयोजित किसी प्रेस कांफ्रेंस में शशीन्द्र दादा चले आ रहे हैं-कंधे पर घुंघराली केशराशि झूल रही हैं,आंखों पर बड़ी फ्रेमवाला गॉगल और हाथ में लेदर पाउच…
पत्रकारिता में शालीनता का एक और शजर धराशायी हुआ।
ओम शांति।
दिल्ली में स्थायी हो चुके इंदौरी पत्रकार अशोक वानखेड़े से जब मैंने शशीन्द्र जी जुड़े संस्मरण साझा करने का अनुरोध किया तो वे भावुक हो गए, बोले राजेन्द्र भाई, एक अच्छे पत्रकार से इंदौर महरूम हो गया। मेरे आग्रह करने पर वानखेड़े जी ने अपनी संवेदनाएं प्रेषित की। वे लिखते हैं कि शशींद्र भैया के निधन की खबर सुनते ही मन सुन्न हो गया. आंखें बंद कर मैं 30 साल पीछे चला गया. मैं फ्री प्रेस जनरल में ट्रेनी पत्रकार था. शशींद्र भैया नई दुनिया में सिटी देखते थे, वह समय भी इंदौर के पत्रकारिता में स्वर्णिम समय था, सीनियर पत्रकार अपने जूनियर पत्रकारों के लिए आदर्श ही नहीं हुआ करते थे बल्कि वह उनके लिए शिक्षक भी थे और अभिभावक भी. जलधारी जी का और मेरा ऐसा ही संबंध था. कुछ विषयों पर हमारे मतभेद भी रहे. लेकिन उनके स्नेह में कहीं भी कमी नहीं आई दिन-ब-दिन वह बढ़ता ही गया. मैं इंदौर से दिल्ली आया . दिल्ली में ही स्धाइक हुआ. जब भी मैं इंदौर जाता था उनसे मुलाकात होती थी . बातचीत होती थी. मेरा दिल्ली में टेलीविजन पत्रकारिता में काम करना उनके लिए गर्व की बात थी. उनकी तबीयत खराब थी बीच में मेरी उनसे बात भी हुई थी. लेकिन कतई नहीं लगा की भैया इतनी जल्दी चले जाएंगे. उनका जाना यह मेरे लिए निजी हानी है. मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं की उनकी आत्मा को शांति मिले…
बहरहाल, शशीन्द्र जलधारी जी तो चले गए पर आदर्श पत्रकार, उम्दा रचनाकार और अच्छे इंसान के बतौर वे याद किये जाते रहेंगे।
सादर नमन ।