इंदौर : मूल रीवा निवासी वरिष्ठ पत्रकार ओम द्विवेदी ने इंदौर में कई वर्षों तक बड़े अखबारों में पत्रकारिता की है। हाल ही में उन्होंने चारधाम की यात्रा पैदल चलते हुए पूरी की। 90 से अधिक दिन उन्हें यह यात्रा पूर्ण करने में लगे। इसके पूर्व 2020 – 2021 में वे नर्मदा की परिक्रमा भी पदयात्रा करते हुए पूरी कर चुके हैं। मंगलवार को इंदौर आए ओम द्विवेदी ने अपनी दोनों पदयात्राओं के रोमांचक अनुभव पत्रकार साथियों के साथ साझा किए।
93 दिन में पूरी की चारधाम यात्रा।
ओम द्विवेदी ने बताया कि 16 अप्रैल 2022 को ऋषिकेश से उन्होंने चारधाम यात्रा शुरू की थी , जो 17 जुलाई 2022 को समाप्त हुई। इस दौरान वे करीब 18 सौ किमी पैदल चले। श्री द्विवेदी ने बताया कि सड़क मार्ग की बजाय पदयात्रा के लिए उन्होंने पहाड़ों और पगडंडियों का मार्ग चुना। साधु संतों और स्थानीय लोगों ने उनका मार्गदर्शन किया। यात्रा के दौरान उन्हें घने जंगलों और बर्फीले पहाड़ों से गुजरना पड़ा। तेंदुआ, भालू सहित जंगली जानवरों और अत्यधिक ठंडे मौसम के बावजूद वे अपनी पदयात्रा पूरी कर पाए तो केवल भगवान शिव की कृपा से। उन्हें हमेशा ऐसा महसूस होता रहा कि कोई अदृश्य शक्ति उन्हें ताकत दे रही है।
पांच केदार व सात बद्री शिव हैं
उत्तराखंड में।
ओम द्विवेदी ने बताया कि देवभूमि उत्तराखंड में केदारनाथ के मुख्य मंदिर के साथ चार और शिवालय हैं, जिन्हें पंच केदार कहा जाता है। ऊंचे पहाड़ों पर होने और आवागमन के साधन नहीं होने से श्रद्धालु शेष चार केदार शिवालयों में नहीं जाते। उनका सौभाग्य है कि उन्हें इन स्थानों पर जाने का मौका मिला। श्री द्विवेदी ने बताया कि बद्री विशाल के सात स्थान हैं। हालांकि वे दो स्थानों पर ही जा पाए।
लोगों ने की मदद।
श्री द्विवेदी ने बताया कि पदयात्रा के दौरान कई साधु संत मिलते, कुछ दूर साथ चलते फिर अपने रास्ते चले जाते। वे अकेले ही आगे बढ़ते रहे। मार्ग में पड़ने वाले गांवों के लोगों ने मांगने पर खाना भी दिया और रात्रि विश्राम के लिए जगह भी।
राजमा – चावल है मुख्य भोजन।
द्विवेदी ने बताया कि उत्तराखंड में राजमा – चांवल ही मुख्य भोजन है। भगवान को भोग भी चांवल से बने पदार्थों का ही चढ़ाया जाता है।
ऊंचाई पर सांस लेने में होती है दिक्कत।
श्री द्विवेदी ने बताया कि पहाड़ों में ऊंचाई पर सांस लेने में दिक्कत होती है। दरअसल, लोग गर्म स्थानों से एकदम से एक – दो डिग्री या माइंस टेंपरेचर में पहुंचते हैं, उनका शरीर इसका अभ्यस्त नहीं होता। ऐसे में जैसे – जैसे वे ऊंचाई पर पहुंचते हैं, थकान हावी हो जाती है और उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। वे पदयात्रा करने के कारण मौसम के अभ्यस्त हो गए थे, इसलिए उन्हें पहाड़ों की चढ़ाई के दौरान ज्यादा परेशानी नहीं आई।
तपोभूमि है उत्तराखंड।
श्री द्विवेदी ने बताया कि प्राचीनकाल से ही उत्तराखंड तपोभूमि रहा है। ध्यान – साधना के लिए ऋषि मुनियों ने हिमालय के पहाड़ों को ही चुना। आज भी कई साधु संत गुफाओं में रहते हैं और तपस्या में लीन रहते हैं।
नर्मदा परिक्रमा चार माह में पूरी की।
ओम द्विवेदी ने बताया कि उन्होंने अमरकंटक से खंबात की खाड़ी तक नर्मदा की परिक्रमा भी की है। नवंबर 2020 से मार्च 2021 तक उन्होंने पदयात्रा करते हुए नर्मदा परिक्रमा की। इस दौरान वे करीब 3600 किमी पैदल चले। नर्मदा परिक्रमा में उन्हें गरीब आदिवासियों ने भी भरपूर सहयोग दिया। अपने घर ठहराया और खाना भी खिलाया। इसके चलते उन्हें आदिवासियों के रहन सहन और संस्कृति के बारे में भी करीब से जानने का मौका मिला।
इंदौर प्रेस क्लब की ओर से अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने ओम द्विवेदी का स्वागत किया। संचालन और आभार प्रदर्शन उपाध्यक्ष प्रदीप जोशी ने किया।