इंदौर : बोगस कंपनियां बनाकर फर्जी बिल पास करवाने और सरकारी पैसा हजम करने के मामले में ईडी टीम ने 15 जगहों पर छापे मारे हैं। इनमें अकाउंटेंट अनिल गर्ग और मामले के मास्टरमाइंड अभय राठौर के ठिकाने भी शामिल हैं। राठौर के बहनोई राकेश सिंह चौहान के घर भी ईडी के अधिकारी पहुंचे। खास बात यह रही कि ज्यादातर घरों पर ईडी टीम को महिलाएं ही मिलीं। पुरुष पहले ही गायब हो गए थे।
बोगस कंपनियां बनाकर फर्जी बिल पास करवाने और निगम का करोड़ों रुपया हजम करने का मामला अप्रैल 2024 में सामने आया था। फर्जी बिल घोटाले में एमजी रोड थाने पर तकरीबन एक दर्जन लोगों के खिलाफ छह से अधिक एफआइआर दर्ज हुई।
इसके अलावा अभय राठौर और उसके जीजा राकेश सिंह चौहान के खिलाफ पानी चोरी की एफआइआर भी लसूड़िया थाने में दर्ज है। अभय राठौर जेल में है। जीजा फरार है। ईडी ने कुछ जगह से दस्तावेज जब्त किए, वहीं आरोपियों के बैंक खाते और फर्मों से जुड़ी जानकारी भी हासिल की है ताकि ट्रांजेक्शन और मनी ट्रेल का पता किया जा सके। ईडी द्वारा इसके साथ हरीश श्रीवास्तव (55 सुखदेवनगर), प्रो. एहतेशाम पिता बिलकीस खान (128 माणिकबाग), जाहीद खान (101 सकीना अपार्टमेंट अशोका कॉलोनी), मोहम्मद साजिद (147 मदीना नगर), मोहम्मद सिद्धिकी (147 मदीना नगर), रेणु वडेरा (6 आशीष नगर), मोहम्मद जाकिर (147 मदीना नगर), राहुल वडेरा (12 आशीष नगर), अनिल पिता राजकुमार गर्ग (184 ए महालक्ष्मी नगर), राजकुमार पिता पन्नालाल साल्वी (78 अंबिकापुरी), उदयसिंह पिता रामनरेश सिंह भदोरिया (831 सी सुखलिया), मुरलीधर पिता चंद्रशेखर कर्ता (697 शिव सिटी राऊ) और मौसम व्यास पर भी कार्रवाई की गई है।
नगर निगम का फर्जी बिल कांड सबसे पहले उस वक्त सामने आया था जब तत्कालीन निगमायुक्त के सामने कुछ ठेकेदारों ने आरोप लगाया कि हमारे बिल पास नहीं हो रहे हैं जबकि कुछ ठेकेदार बगैर काम के भुगतान ले रहे हैं। इसके बाद मामले में जांच शुरू हुई। 16 अप्रैल 2024 को इस मामले में पहली एफआइआर दर्ज हुई। आरंभिक रूप से यह घोटाला सिर्फ 28 करोड़ का होने का अनुमान लगाया जा रहा था, लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी घोटाले की राशि बढ़ती गई।
फर्जीवाड़े को अंजाम देते हुए कथित ठेकेदारों ने बगैर काम के ही करोड़ों के बिल पास करवा लिए थे। ड्रेनेज विभाग के काम बताते हुए ये लोग फाइलें तैयार करते थे और फिर इन फाइलों को सीधे लेखा शाखा में प्रस्तुत कर देते थे। आडिट विभाग के अधिकारी भी आंख मूंदकर इन फाइलों को भुगतान के लिए बढ़ा देते थे। फाइलों में एक दिन में पांच किमी लंबी लाइन बिछाने और 500 चैंबर बनाने जैसी बातें होने के बावजूद इन्हें पास कर दिया गया।
जांच में यह बात भी सामने आई कि इस पूरे घोटाले का मास्टरमाइंड नगर निगम का इंजीनियर अभय राठौर है। उसी ने अन्य आरोपितों के साथ मिलकर घोटाले को अंजाम दिया है। राठौर की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने निगम के कर्मचारियों पर शिकंजा कसना शुरू किया। इसके बाद शिकंजा निगम के आडिटरों तक पहुंच गया। इस मामले में अब तक पुलिस ने सात अपराध दर्ज किए हैं। इनमें ट्रेंचिंग ग्राउंड का मामला भी शामिल है। मामलों में अब तक पांच चालान पेश हो चुके हैं। आठ आरोपी अब भी वांछित हैं। इनमें कुछ रिटायर्ड आडिटर भी हैं। फाइलों में भले ही फर्जीवाड़े का आंकड़ा कम हो, लेकिन दबी जुबान में अधिकारी भी स्वीकार रहे हैं कि 125 करोड़ से ज्यादा का घोटाला है।