राजेंद्र नगर में चल रही है श्रीमद भागवत कथा।
कलियुग में मुक्ति का सबसे सरल उपाय ईश्वर भक्ति है : वेदमूर्ति धनंजय शास्त्री
इंदौर : ईश्वर भक्ति अचंचल होनी चाहिए अर्थात हम कितने भी दु:खी हों या सुखी, सम भाव से ईश्वर का स्मरण करते रहना चाहिए। मनुष्य दु:ख के समय जितनी आर्तता से ईश्वर को पुकारता है, उतना सुख के समय नहीं। मृत्यु का अर्थ मुक्ति नहीं होता है ।मनुष्य जब तक अपने किए हुए कर्मों का संपूर्ण फल प्राप्त नहीं कर लेता तब तक उसे जीवन मरण के चक्र से मुक्ति नहीं मिलती है। कलियुग में मुक्ति का सबसे सरल उपाय ईश्वर भक्ति है।
ये विचार जगतगुरु शंकराचार्य के सुशिष्य, विद्वत धर्मसभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वेदमूर्ति धनंजय शास्त्री वैद्य ने राजेंद्र नगर में चल रही मराठी भागवत कथा के पांचवे दिन व्यक्त किए।
राजेंद्र नगर श्रीराम मंदिर स्वर्ण जयंती उत्सव तथा अधिक मास निमित्त आयोजित भागवत कथा में शुक्रवार को भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य उत्सव मनाया गया । श्रीकृष्ण जन्म कथा के वर्णन के दौरान सभागृह में उपस्थित श्रोताओं ने पुष्प वर्षा कर हर्षध्वनि की। पालना सजाया गया और पालना गीत भी महिलाओं ने गाए। इस दौरान पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा ताई महाजन भी कथा सुनने उपस्थित रहीं।
वेदमूर्ति धनंजय शास्त्री वैद्य ने कहा कि संतोष और सुख में अंतर है । विषय वस्तु की प्राप्ति से सुख मिलता है लेकिन किसी वस्तु की कामना कर उसे प्राप्त करने से संतोष मिलता है पर सुख और संतोष से बड़ा आनंद होता है । जैसे किसी परीक्षा में सफलता प्राप्त करने का आनंद । मनुष्य को स्वयं को सदैव आनंदित रखने का प्रयत्न करना चाहिए। सुख, दुख और संतोष की अनुभूति से परे मनुष्य ही आनंद प्राप्त कर सकता है। ईश्वर की भक्ति कर परमानंद प्राप्त किया जा सकता है। मनुष्य योनि दुर्लभ और सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि मनुष्य पर समस्त देवताओं की कृपा होती है। स्वर्ग में रहने वाले देवताओं से भी श्रेष्ठ मनुष्य जन्म है। मनुष्य लोक में जन्म होना और उसमे भी भारत भूमि पर जन्म अति भाग्यवान मनुष्य को ही मिलता है।
शास्त्री जी ने कहा कि गलती मनुष्य से ही नहीं देवताओं से भी होती है और असुरों से भी । देवता अपनी गलती तुरंत मान्य भी करते हैं और उसके लिए पश्चाताप भी करते हैं । असुर अपनी गलती कभी मान्य नहीं करते । जो मनुष्य गलती स्वीकार कर पश्चाताप भी करते हैं ईश्वर उससे प्रसन्न होते हैं । अपने आराध्य देवता का स्मरण, भक्ति, वंदन, पूजन,सेवा,प्रार्थना,आत्मनिवेदन आदि ही नवविधा भक्ति कहलाती है और मनुष्य मुक्ति को प्राप्त होता है ।