लाठी वीरता का भाव जगाती है, आत्मरक्षा के भी काम आती है।
रण संगीत की विलुप्त परंपरा को संघ ने पुनर्जीवित किया।
मालवा प्रांत के स्वर शतकम् कार्यक्रम में बोले संघ प्रमुख मोहन भागवत।
सैकड़ों स्वयंसेवकों ने सामूहिक रुप से पेश किया घोष वादन।
इंदौर : संघ के कार्यक्रमों से संस्कार विकसित होते हैं। लाठी इसलिए सिखाई जाती है कि उससे वीरता का भाव जाग्रत होता है। वक्त पड़ने पर यह आत्मरक्षा के भी काम आती है। रण संगीत हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है। महाभारत के युध्द की शुरूआत शंख ध्वनि कर की गई थी। देशभक्ति का भाव जगाने वाली रण संगीत की यह विधा विलुप्त हो रही थी, जिसे संघ ने घोष वादन के माध्यम से पुनर्जीवित किया है। संघ का लक्ष्य ऐसा भारत बनाना है, जो परम वैभव को प्राप्त हो। ये विचार आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने व्यक्त किए। वे स्थानीय दशहरा मैदान पर संघ के 100 वे वर्ष के उपलक्ष्य में मालवा प्रांत द्वारा आयोजित स्वर शतकम् कार्यक्रम में बोल रहे थे। कार्यक्रम में संघ के स्वयंसेवक व परिजन, संतगण, प्रबुद्धजन, जनप्रतिनिधि, सामाजिक, धार्मिक और व्यापारिक संगठनों के प्रतिनिधि व बड़ी संख्या में आम लोगों की सहभागिता रही।
868 सदस्यों ने किया घोष वादन।
कार्यक्रम की शुरुआत संघ प्रमुख की उपस्थिति में ध्वजारोहण के साथ हुई। इसके बाद करीब 868 सदस्यीय दल ने पारंपरिक वाद्यों के साथ घोष वादन प्रस्तुत किया। घोष वादकों के दो दल बनाए गए थे। पहले सामूहिक प्रस्तुति के बाद दोनों दलों ने अलग – अलग प्रस्तुतियां भी दी। लगभग एक घंटे के इस कार्यक्रम में रागदारी पर आधारित धुनों के साथ वीररस की धुनें भी बजाई
गई। इसके अलावा राम आएंगे, रामजी की सेना चली, जयोस्तुते जैसे गीत भी वादन के जरिये पेश किए गए, जिन्हें दर्शक – श्रोताओं की खासी सराहना मिली। घोष वादकों ने शिवलिंग, स्वस्तिक और संघ का शताब्दी वर्ष होने के चलते 100 की आकृति की रचना कर अपनी प्रस्तुति में चार चांद लगा दिए।
ऐसे कार्यक्रमों से संस्कार मिलते हैं।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में घोष वादन की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रमों से कुशल जीवन देने वाले संस्कार मिलते हैं। विदेशी संगीत उत्तेजना पैदा करता है जबकि भारतीय संगीत से आनंद की प्राप्ति होती है।संगीत समन्वय और सबके प्रति सद्भाव सिखाता है। कला का कौशल अहंकार लाता है पर ये संघ का काम होने से इसकी संभावना भी नहीं होती।
देश परम वैभव को प्राप्त हो यही लक्ष्य।
संघ प्रमुख ने कहा कि ऐसा भारत खड़ा करना है जो परम वैभव को प्राप्त हो। संघ का यह मूल भाव है। देश व देशवासियों को बड़ा करना संघ का लक्ष्य है। देश के नवनिर्माण में आम आदमीं की सहभागिता बढ़े, इसी में संघ के कार्यक्रमों की सफलता है। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे देश के लिये सोचे।देश बढ़ेगा तो दुनिया में हमारा मान बढ़ेगा। हम पीछे रहने वाले लोग नहीं हैं।
कार्यक्रम का समापन ध्वजावतरण के साथ हुआ। हजारों लोगों की मौजूदगी के बावजूद कार्यक्रम बेहद अनुशासित ढंग से संपन्न हुआ। सारी व्यवस्था संघ के स्वयंसेवकों ने ही सम्हाल रखी थी। वाहनों की पार्किंग और ट्रैफिक व्यवस्था में भी स्वयंसेवकों की अहम् भूमिका रही।