🔹अभिलाष शुक्ला🔹
मध्य प्रदेश में भाजपा ने की किला बंदी, दूसरी सूची ने भी चौंकाया।
हर हाल में जीतना है प्रदेश, सांसदों को मैदान में उतारा।
मध्यप्रदेश में भाजपा की चुनावी रणनीति।
मध्यप्रदेश में चुनावी संग्राम के लिए भाजपा ने कमर कस ली है।
तैयारियों को लेकर कांग्रेस पिछड़ती दिख रही है।भाजपा ने 5 अलग अलग स्थानों से जन आशीर्वाद यात्रा का पहला चरण पूरा किया जिसका समापन खुद प्रधानमंत्री ने भोपाल में किया वहीं प्रमुख विपक्षी दल जिससे भाजपा का मध्यप्रदेश में मुकाबला होता है, उसने जन आक्रोश रैली भले ही निकाली हो मगर इसका जनता पर उतना प्रभाव पड़ता नहीं दिख रहा है।कांग्रेस की जन आक्रोश यात्रा भी भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा के बहुत बाद में निकली। यहां भी कांग्रेस लेट हो गई, वहीं कांग्रेस ने कहा था कि प्रत्याशियों की सूची इस बार जल्दी आएगी ताकि उम्मीदवार को पर्याप्त समय प्रचार के लिए मिल सके। कांग्रेस की जगह भाजपा ने 2 सूची जारी कर दी है। दोनों सूची में 39..39 नाम। सूची की संख्या भीं चर्चा का विषय है। इस लिहाज से भाजपा के 230 में से 78 नाम घोषित कर चुकी है। कांग्रेस ने अभी एक भी उम्मीदवार मैदान में नही उतारा है।
बात करें मध्यप्रदेश के समीकरणों की तो केंद्रीय नेतृत्व ने पूर्व में कई सर्वे करवाए थे जिसमें कहीं न कहीं भाजपा की जमीन खिसकती नजर आ रही थी, जिसकी वजह थी प्रदेश नेतृत्व द्वारा कार्यकर्ताओ की अनदेखी। शायद ये ही वजह भी रही की भाजपा के जो बड़े नेता सीना ठोंक कर अबकी बार 200 पार का नारा दिया करते थे वे बाद में 150 सीट पर जीत का दावा करने लगे। इसके चलते केंद्र के शीर्ष नेतृत्व ने खुद मैदान संभाला और टिकट बंटवारे में भी अपनी मंशा साफ कर दी कि प्रदेश हर हाल में जितना है।यही वजह रही की पहली बार चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक तक को चुनाव मैदान में उतरना पड़ा । जिन 2 तिहाई सीटों पर जीत की बात भाजपा द्वारा कही जा रही है यह सूची उसी की एक छोटी बानगी है। अभी कुल 230 सीटों में से 78 नाम सामने आए हैं। कयास अब ये भी लगाए जा रहे हैं कि भाजपा की अगली सूची में भी और कई ऐसे नाम हो सकते हैं जो सभी को एक बार चौकाएंगे।
अब तक केंद्र चुनाव लड़वाता था मगर इस बार भाजपा केंद्रीय नेतृत्व खुद मैदान में है।इससे साफ है कि मध्यप्रदेश में इस बार भाजपा की चुनावी रणनीति पिछले सभी विधानसभा चुनाव से अलग है। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल के पास बतौर सांसद भले ही लंबा अनुभव रहा हो लेकिन वो पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। एक सांसद 7 से 8 विधानसभाओं का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में सांसद को मैदान में उतारा जाना ये बताता है कि भाजपा अपनी रणनीति के माध्यम से कॉंग्रेस को हराने में कोई कमी नहीं रखना चाहती।
जबलपुर संसद राकेश सिंह हो या केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व फग्गन सिंह कुलस्ते। ये वो बड़े चेहरे हैं जो स्थानीय राजनीति में अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं। विधानसभा जितवाने का ज़िम्मा भी प्रदेश के चुनाव में इन्हें ही सौंपा जाता था मगर इस बार हवा का रुख राजनीतिक गलियारों में पूरी तरह से बदलता दिख रहा है।
भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय मालवा क्षेत्र के कद्दावर और अनुभवी नेता माने जाते हैं। पूर्व में प्रदेश सरकार में बाबूलाल गौर और शिवराज सरकार में मंत्री रह चुके हैं। ऐसे में विधानसभा 1 से पार्टी ने विजयवर्गीय को विधानसभा का टिकट देकर भले ही सभी को चौका दिया हो लेकिन एक तरह से आसपास की विधानसभाओं को भी अपने पक्ष में करने का दांव खेल दिया है।
ये तो हुई दूसरीं सूची की बात, मगर आगे क्या? क्योंकि जिनको भाजपा ने मैदान में उतारा है वो निश्चित तौर पर प्रदेश भाजपा में बदली तस्वीर पेश करते दिख रहे हैं क्योंकि भाजपा ने सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया है। मध्यप्रदेश की राजनीति इन दिनों पिछड़ी जातियों के वोट बैंक को साधने में लगी है। ऐसे में दूसरी सूची में कई ऐसे कद्दावर और अनुभवी नाम हैं जो शिवराज की एकमेव राजनीति को प्रभावित करेंगे। अब कयास ये भी है कि आने वाले आम चुनाव के जरिए शिवराज को केंद्र में लाया जाए और मध्यप्रदेश में नए चेहरे के साथ नई सरकार का गठन किया जाए। हो सकता है कि इस बार मध्यप्रदेश को महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की तर्ज़ पर डिप्टी सीएम भी मिल जाए। वहीं सीएम चेहरा ऐसा न्यूट्रल नाम हो जो सभी खेमों को साध सके और केंद्र की मंशा को पूरी कर सके। क्योंकि पूर्व में कई बार शिवराज के रिप्लेसमेंट के तौर पर नरेंद्र सिंह तोमर का नाम सामने आ चुका है यह संभावना अब बनती दिखाई भी दे रही है।
केंद्र ने तो हर हाल में मध्यप्रदेश में सत्ता हासिल करने की अपनी योजना पर काम करना शुरू कर दिया है मगर एक बार फिर स्थानीय कार्यकर्ताओं को मायूसी हाथ लगी है जो लम्बे समय से विधानसभाओं से टिकट पाने की तैयारियों में जुटे थे। जिन सीटों से सांसदों को टिकट मिला है वहां से कई कद्दावर दावेदारों को चुनावी रण से पहले ही मायूसी हाथ लग गई है। क्योंकि अब तक माना जाता था कि विधानसभा के बाद लोकसभा राजनीति में बतौर जनप्रतिनिधि अगली सीढ़ी होती है लेकिन भाजपा ने सांसदों को मैदान में उतार दिया है। यह पार्टी की रणनीति का एक मजबूत हिस्सा जरूर हो सकता है जिससे पार्टी ने भितरघात से भी कहीं न कहीं बचने का प्रयास किया है लेकिन इसे सांसदों के बढ़ते कद पर विराम के रूप में भी देखा जा रहा है।सवाल ये भी है की जहां लंबे वनवास के बाद कैलाश विजयवर्गीय की प्रदेश वापसी हुई है क्या वहीं वरिष्ठ सांसदों को विधायक का टिकट देकर घर वापसी का भी प्रबंध कर दिया है। जैसा कि सभी जानते है मोदी की शैली ही चौंकाने वाली रही है। इसी शैली की तर्ज पर भाजपा की दोनों सूची आई हैं, जिसने न सिर्फ राजनीतिक पंडितों बल्कि जनता को भी चौंका दिया है और राजनीतिक ठियों को भी गरमा गरम मुद्दा दे दिया है। भाजपा की अगली सूची में और कितने चौंकाने वाले नाम होंगे ये देखना दिलचस्प होगा।।फिलहाल तो भाजपा की दूसरी सूची के नामों ने कांग्रेस को भी सोचने पर मजबूर तो कर ही दिया है।शायद इसीलिए भाजपा को पार्टी विद डिफरेंस के नाम से भी जाना जाता है।
(लेखक इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)