इंदौर : मप्र मराठी साहित्य संघ और मराठी साहित्य अकादमी भोपाल के संयुक्त बैनर तले 16 और 17 जनवरी को स्थानीय प्रीतमलाल दुआ सभागृह में आयोजित मप्र मराठी साहित्य सम्मेलन में साहित्य के लगभग हर स्वरूप के दर्शन साहित्य प्रेमियों को हुए। मराठी भाषा, साहित्य और संस्कृति कितनी समृद्ध है, इसका प्रत्यक्ष अनुभव इस सम्मेलन के दौरान साहित्य और कलारसिकों को शिद्दत के साथ हुआ। दो दिवसीय इस सम्मेलन में पहले दिन ग्रंथ प्रकाशन, मराठी भाषा की वर्तमान स्थिति और भविष्य पर चर्चा करने के साथ कवि सम्मेलन, वरिष्ठ साहित्यकारों का सम्मान और अभिनय, कविता और संगीत की त्रिवेणी से सजा अनूठा कलाविष्कार ‘प्रिय भाई.. एक कविता हवी आहे’ जैसे साहित्य प्रकारों की बानगी पेश की गई।
सम्मेलन के दूसरे और अंतिम दिन 17 जनवरी की शाम को महाराष्ट्र से आई रेखा मूंदड़ा ने लेखक रणजीत देसाई और वपु काले की कथाएं श्रोताओं के समक्ष पेश की। गैर मराठी भाषी होकर भी मराठी भाषा पर उनकी पकड़ और कथाकथन की शैली ने लोगों को दाद देने पर मजबूर कर दिया। खासकर ताजमहल को आकार देने वाले कलाकार की व्यथा को अभिव्यक्त करती कथा श्रोताओं के दिमाग को झंझोड गई। इसके अलावा इंदौर की ही लेखिका माणिक भिसे ने भी स्वलिखित कथा प्रस्तुत की।
इसके पूर्व कसरावद जिला खरगौन में नर्मदा किनारे रहकर बच्चों के जीवन को सकारात्मक दिशा देने वाली साध्वी विशुद्धनंदा ऊर्फ भारती ठाकुर ने प्रो. मिलिंद जोशी द्वारा लिए गए साक्षात्कार के दौरान अपने जीवन से जुड़े कई संस्मरण साझा किए। मूल महाराष्ट्र से आकर मालवा की होकर रह गई भारती ठाकुर ने अपना सारा जीवन बच्चों को पढ़ाने और उनके जीवन को सकारात्मक दिशा देने में लगा दिया है। उनका कहना था कि बच्चों को वही सिखाना चाहिए जो वे सीखना चाहते हैं। जो तोता रटंत पाठ्यक्रम बच्चों को पढ़ाया जाता है, उससे उनका कोई भला नहीं होता। उन्होंने कहा कि जहां इच्छाशक्ति हो वहां संसाधनों की कमी आड़े नहीं आती।
मराठी साहित्य सम्मेलन के दूसरे दिन सुबह के सत्र में एक परिसंवाद भी आयोजित किया गया जिसका विषय था ‘ढासलती मानवीय मूल्ये आणि संत साहित्याची गरज’ इस परिसंवाद में प्रशांत पोल जबलपुर, उदय परांजपे भोपाल और दीपक खरे इंदौर ने अपने विचार रखे। वक्ताओं ने इस मौके पर सोशल मीडिया के जरिए रिश्तों के आभासी होते जाने पर चिंता प्रकट करते हुए उसके दुष्प्रभावों पर प्रकाश डाला। उन्होंने मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं को सहेजने के लिए संत साहित्य की अहम भूमिका की भी चर्चा की। वक्ताओं ने प्रत्यक्ष मेल मुलाकातों पर जोर देते हुए कहा कि संवेदनाओं को महसूस करने के लिए यह आवश्यक है। परिसंवाद की अध्यक्षता पुणे से आए प्रो. मिलिंद जोशी ने की।
दो दिवसीय इस मराठी साहित्य सम्मेलन का समापन ग्वालियर से आए दैनिक स्वदेश के समूह संपादक अतुल तारे के मुख्य आतिथ्य में प्रो. मिलिंद जोशी के अध्यक्षीय उद्बोधन के साथ हुआ।
सम्मेलन में दोनों दिन दर्शक – श्रोताओं की उपस्थिति उत्साहवर्धक रही पर इनमे ज्यादातर उम्रदराज लोग ही शामिल थे। युवाओं की सहभागिता न के बराबर होना जरूर चिंता और चिंतन का विषय है, जिसपर विचार किया जाना चाहिए।