इंदौर : हमारी संस्कृति में नारी सदैव पूजनीय रही है। हमने आजादी तो हासिल कर ली पर अपने मूल्य समय के साथ खो दिए। जरूरत इस बात की है कि हम नई पीढ़ी में नैतिक मूल्य और संस्कारों का बीजारोपण करें, उनमें देशप्रेम का भाव जगाएं। महिलाएं पहले से उद्यमी रहीं हैं, उन्हें परिवार के सहयोग के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है।
ये विचार नवरात्रि के अवसर पर संस्था दामिनी के बैनर तले ‘स्वराज और मै’ विषय पर आयोजित परिसंवाद में प्रबुद्ध महिलाओं ने व्यक्त किए। परिसंवाद का आयोजन मंगलवार को G.S.I.T.S. के गोल्डन जुबली हॉल में किया गया।
मां, मातृभाषा और मातृभूमि से प्रेम करना सिखाएं।
परिसंवाद में शिक्षाविद की भूमिका में पुनिता नेहरू ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि बच्चे की पहली गुरु, मां होती है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम किताबी शिक्षा के साथ नैतिक और व्यवहारिक शिक्षा की ओर भी ध्यान दें। समाज का चरित्र गढ़ना शिक्षक का काम है। देशप्रेम का भाव भी हम सभी में जाग्रत हो। मां, मातृभूमि और मातृभाषा के बारे में बच्चों को जागरूक करना समय की जरूरत है।
बच्चों के मनोविज्ञान को समझने की जरूरत।
मनोचिकित्सक के रूप में डॉ. रेखा आर्य ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा की वर्तमान में सामाजिक व्यवस्थाओं और मूल्यों में हो रहे परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए बच्चों के साथ परिजनों को भी काउंसलिंग की जरूरत है। हमें बच्चों के मनोविज्ञान को समझकर उन्हें सही गाइडेंस देने पर ध्यान देना चाहिए। महिलाओं को सकारात्मक जीवन की जीने के लिए प्रेरित करने में मनोचिकित्सक की अहम भूमिका है।
महिलाएं हमेशा से उद्यमी रहीं हैं।
उद्ध्योगपति डॉ. प्रियंका मोक्षमार ने परिसंवाद में अपने विचार रखते हुए कहा कि महिला उद्यमिता कोई नया शब्द नहीं है। हमारी दादी – नानी भी उद्यमी ही थी, पूरा घर चलाना उन्हीं के हाथ था, वो भी एक तरह से स्वावलंबी थीं। महिलाएं असीमित क्षमता की धनी हैं। उन्हें उद्यमशीलता को लेकर अपने दायरे को बड़ा करने की जरूरत है। स्वावलंबी होना याने परिवार से अलग होना नहीं है। परिवार के सहयोग से ही हम आगे बढ़ते हैं और सफल उद्यमी बनते हैं। कोरोना काल की विषम परिस्थितियों में भी मातृशक्ति ने संपूर्ण परिवार की देखभाल करते हुए अपने संयम व साहस का परिचय दिया।
बात देश की हो तो अभिव्यक्ति की आजादी भी मर्यादित रहे।
डॉ.अनुराधा शर्मा ने पत्रकार के रूप में अपनी बात रखते हुए कहा की पत्रकार की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका स्वराज में थी और आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। समाचार पत्रों में विज्ञापन नहीं देने का संकल्प स्वराज का है, जिसका अनुसरण आज भी किया जाता है। तिलक हो या गांधीजी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण है। ये हमारा मौलिक अधिकार है पर बात देश की हो तो इसकी मर्यादा क्या होनी चाहिए, इसको समझना जरूरी है।
संस्कारों को बचाने की अहम जिम्मेदारी गृहिणी पर है।
सुरूचि मल्होत्रा ने गृहिणी के रूप में अपने विचार रखते हुए कहा की समाज में ग्रहणी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। आजादी के साथ जिम्मेदारियों का भाव जरूरी है। आजादी का मतलब मनमानी नहीं है। बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण और उसका रक्षण करने की जिम्मेदारी गृहिणी के कंधों पर है। बच्चे वही सीखते हैं जो वो देखते हैं।
अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही पूर्व न्यायाधीश सुचित्रा दुबे ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमें जीवन में गलत के विरुद्ध आवाज उठाना आना चाहिए। जैसे जटायू ने रावण के अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और बुजुर्ग होकर भी सीता को बचाने के लिए उसके साथ युद्ध किया। जटायु ने न्याय के पक्ष में लड़ाई लड़ी तो मोक्ष पाया। भीष्म पितामह ने अन्याय का साथ दिया तो मृत्यु शैय्या पाई। हमें अपने अंदर के जटायु को जगाने और समाज में अन्याय के खिलाफ, महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है। दामिनी का गठन इसी दिशा में एक कदम है।
इसके पूर्व विषय प्रवर्तन करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता माला सिंह ठाकुर ने कहा की दामिनी विभिन्न सामाजिक, व्यवसायिक, गैर स्वशासी महिलाओं का सामूहिक मंच है। यह मंच मां अहिल्या की नगरी में विधिक सहायता, काउंसलिंग, विभिन्न सामाजिक विषयों पर अध्ययन और समय आने पर विभिन्न महिला संबंधी विषयों पर आवाज उठाने का काम करेगा। कार्यक्रम का संचालन सहोदय की अध्यक्ष कंचन तारे और अधिवक्ता अर्चना खेर ने किया। अतिथि परिचय एडवोकेट स्वाति उखाले ने दिया। अतिथियों का स्वागत हिना नीमा, लायनेस अंजना माहेश्वरी, प्रोफेसर संगीता भारूका, एडवोकेट सीमा शर्मा, पत्रकार सोनाली यादव ने किया। आभार सामाजिक कार्यकर्ता चारु गर्ग ने माना।