डिस्पोजल मुक्त परिसर में लिया जूठन नहीं छोड़ने का संकल्प।
बायपास स्थित सम्पत पैलेस पर लगा माता के भक्तों का मेला। 56 की जगह लगाया 156 व्यंजनों का भोग।
इंदौर : साग-सब्जी और देश को वनस्पत्ति संपदा की आपूर्ति करने वाली मां शाकंभरी देवी की जयंती सोमवार शाम बायपास स्थित सम्पत पैलेस पर तांडव, पंचरत्न आरती, कन्या पूजन एवं मंगल पाठ के दौरान नृत्य नाटिका के साथ धूमधाम से मनाई गई। सुबह सुसज्जित मंदिर की प्रतिकृति पर भजन-पूजन, अभिषेक के बाद संध्या को फूल बंगले में विराजित मां शाकंभरी की प्रतिकृति के समक्ष 156 भोग लगाने के बाद मालवांचल के 40 से अधिक वैश्य घटकों एवं अन्य समुदायों के एक हजार से अधिक परिवारों की भागीदारी में जैसे ही आरती प्रारंभ हुई, हजारों श्रद्धालु झूम उठे। तांडव एवं क्षिप्रा आरती के मनोहारी दृश्य भक्तों को भाव विभोर एवं रोमांचित कर देने वाले थे। उत्सव में समूचा परिसर डिस्पोजल मुक्त रहा और भक्तों ने जूठन नहीं छोड़ने का संकल्प भी लिया।
महोत्सव की शुरूआत स्थापना एवं मंडल पूजन के साथ 11 विद्वानों द्वारा की गई। ट्रस्ट की ओर से किशनलाल ऐरन, अनिल खंडेलवाल, अशोक ऐरन, गोपाल जिंदल, गोपाल अग्रवाल, कल्याणमल खजांची, रामप्रसाद सोनथलिया, जयेश अग्रवाल, राजेश खंडेलवाल, हरि अग्रवाल सहित अन्य पदाधिकारियों ने भी माता के पूजन में भाग लिया। महोत्सव में इस बार भी तांडव एवं पंचरत्न आरती का संयुक्त आयोजन किया गया, जो भक्तों को भाव विभोर करने वाला साबित हुआ। मां शाकम्भरी के मंगल पाठ की भावपूर्ण प्रस्तुतियों के साथ मां के गुणगान पर आधारित नृत्य नाटिका भी भक्तों को आल्हादित करने वाली रही। आयोजन समिति के चंदू गोयल, मुकेश अग्रवाल, विलेश ऐरन, योगेन्द्र खंडेलवाल एवं महिला मंडल की ओर से शिमला अग्रवाल, सरोज ऐरन, सरिता खंडेलवाल, मीना जिंदल, प्रीति जिंदल, शिवानी खंडेलवाल, विशाल खंडेलवाल, रेखा अग्रवाल, संगीता कूलवाल, इरा-इवा सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने मेहमानों की अगवानी की। समूचे परिसर की विद्युत एवं पुष्प सज्जा भी देखने लायक थी। देशी-विदेशी फल-फूलों की महक भी सबको उमंग और उल्लास से सराबोर कर रही थी।
शाम ढलते-ढलते भक्तों का हुजूम बढता गया और 5 हजार से अधिक भक्तों ने पुष्प बंगले की शक्ल में सजे माता के दरबार के दर्शन किए। पुष्प बंगला इतना आकर्षक, मनोहारी, सजीव एवं मनभावन था कि हर कोई देखता ही रह गया। समूचे परिसर को फूल एवं पत्तियों तथा विद्युत सज्जा से श्रृंगारित किया गया था। सम्पूर्ण उत्सव में कहीं भी डिस्पोजल का प्रयोग नहीं किया गया और परिसर को प्लास्टिक एवं पॉलीथीन से मुक्त रखा गया। भोजन प्रसादी के लिए स्टील के थाली-गिलास तथा पेयजल के लिए तांबे के कलश प्रयुक्त किए गए। महत्वपूर्ण बात यह भी रही कि मां शाकम्भरी की साक्षी में हजारों भक्तों ने जूठन नहीं छोड़ने का संकल्प भी लिया।
इस बार लगाए 156 भोग। मां शाकम्भरी के रजत जयंती महोत्सव के उपलक्ष्य में इस बार मातारानी को 56 के बजाय 156 भोग समर्पित किए गए। इनमें हिमाचल प्रदेश से सेवफल, नागपुर से संतरा, महाराष्ट्र के मालेगांव से अनार, गुजरात से ड्रेगन फ्रूट, साउथ कर्नाटक से आम, महाराष्ट्र के महाबलेश्वर से स्ट्राबेरी, रतलाम-मंदसौर क्षेत्र से अमरूद, महाराष्ट्र के पीपलगांव से अंगुर, औरंगाबाद से मौसंबी, पंजाब से किन्नू और गुजरात के शहरों से चीकू बुलवाए गए थे। फलों में पियर्स नाशपाती इटली, अर्जेंटीना और यूएसए से आई। देसी पियर्स एवं नाशपाती की अन्य किस्में पंजाब से बुलवाई गई। रायल गाला सेवफल न्यूजीलैंड से आया तो सेंवफल की कुछ अन्य किस्में वाशिंगटन, अमेरिका से भी बुलवाई गई थी। इसी तरह बिहार से लौकी, हरदोई, लखनऊ, कानपुर, आगरा से पत्ता गोभी, जबलपुर से शिमला मिर्च, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में उगने वाले हाईब्रीड टमाटर, निमाड़ अंचल से फूलगोभी, ब्रोकली एवं गोभी की अन्य किस्में भी पंजाब एवं हरियाणा से बुलवाई गई । इसके अलावा मशरुम, बेसिल, पासले, लेमन ग्रास, ग्रीन जुगनी एवं अन्य प्रचलित सब्जियां भी मातारानी को 56 भोग के रूप में समर्पित की गई। इस व्यवस्था के प्रभारी दिलीप गोयल ने पूरी मेहनत से यह 156 भोग का मैन्यू तैयार किया था। गोपाल अग्रवाल के मार्गदर्शन में कुशल कारीगरों द्वारा मिठाई एवं नमकीन का निर्माण कार्यक्रम स्थल पर ही किया गया था। इस समूचे कार्य में राधेश्याम अग्रवाल, अभिषेक अग्रवाल और उत्सव से जुड़े अन्य सहयोगी भी शामिल रहे।