नई दिल्ली: पीएम मोदी सियासत के मंजे हुए खिलाड़ी हैं, इसमें कोई शक नहीं है। जिसतरह 2014 में उन्होंने बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाकर बहुमत की सरकार बनाने में सफलता पाई थी कुछ उसीतरह का प्रयास वे इस बार भी कर रहे हैं, अहम बात ये है कि कांग्रेस के हर वार को नाकाम करते हुए मोदी उसपर करारा जवाबी हमला कर रहे हैं। समूचा चुनावी परिदृश्य खुद पर केंद्रित करवाने में पीएम मोदी सफल हो रहे हैं। माहौल को अपने पक्ष में करने की उनकी रणनीति कारगर साबित हो रही है।
सोशल मीडिया कर रहे बेहतर इस्तेमाल।
पीएम मोदी ने 2014 में सोशल मीडिया का बेहतर इस्तेमाल किया था। उसी तर्ज पर वे इस बार भी सोशल मीडिया को हथियार की तरह उपयोग कर रहे हैं। नमो एप के साथ वे इस बार नमो टीवी भी लेकर आए हैं जिनके जरिये अपनी बात को करोड़ों लोगों तक पहुंचाने में उन्हें सफलता मिल रही है। मैं भी चौकीदार अभियान को उन्होंने जनअभियान बना दिया है। रविवार को देशभर के सोशल मीडिया चौकीदारों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सीधा संवाद कर पीएम मोदी ने न केवल अपनी उपलब्धियों का बखान किया बल्कि अगले 5 साल का विजन भी लोगों के समक्ष रख दिया।
सुनियोजित रणनीति पर कर रहे काम।
पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी सुनियोजित रणनीति के तहत काम कर रही है। अपनी बात को उपलब्ध संसाधनों के जरिये सवा सौ करोड़ लोगों तक कैसे पहुंचाया जाय इसका पूरा खाका उनके पास है। उनकी टीम लगातार इस काम में लगी रहती है। कांग्रेस की पिच पर बल्लेबाजी करने के साथ अपने सवालों की फिरकी में उसे उलझाने का काम पीएम मोदी बखूबी कर रहे हैं।
चुनाव का एजेंडा कर रहें तय।
मोदी- शाह चुनाव का एजेंडा कुछ इसतरह चला रहे हैं कि कांग्रेस और विपक्ष केवल सफाई देते फिर रहे हैं। एयर स्ट्राइक, आतंकवाद और राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दों को केंद्र में लाकर पीएम मोदी ने कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया है। समझौता ब्लास्ट का फैसला आने के बाद हिन्दू आतंकवाद के मुद्दे पर भी कांग्रेस बुरीतरह घिर गई है। उसके नेताओं ने ही समझौता ब्लास्ट, मालेगाव और मक्का- मस्जिद धमाकों में हिन्दू आतंकवाद का जुमला उछाला था।
राहुल के वायनाड से लड़ने का उल्टा असर।
कांग्रेस ने राहुल गांधी को सुरक्षित सीट वायनाड से भी चुनाव लड़वाने का फैसला लेकर बीजेपी को हमलावर होने का एक और मौका दे दिया। पीएम मोदी ने इस मुद्दे को लपकते हुए लोगों तक इस बात को पहुंचाने में देरी नहीं कि की राहुल गांधी ने अमेठी से हार के भय से केरल की वायनाड सीट से भी लड़ने का फैसला किया। उन्होंने इस बात को भी लोगों के दिमाग में उतारने का प्रयास किया कि कांग्रेस हिन्दू विरोधी पार्टी है इसीलिए उसने अल्पसंख्यक बहुल वायनाड सीट को राहुल गांधी के लिए चुना। अब कांग्रेस को इसपर सफाई देना पड़ रही है।
विपक्ष का बिखराव बन रहा सहायक।
चुनाव से पहले मोदी के खिलाफ एकजुटता दिखाने वाला विपक्ष अब बिखरा हुआ नजर आ रहा है। केंद्र में सत्तासीन होकर राहुल गांधी को पीएम बनाने का सपना देख रही कांग्रेस को गठबंधन का हिस्सा बनाने के लिए कोई तैयार नहीं है। यूपी में सपा- बसपा के महागठबंधन में कांग्रेस को जगह नहीं मिली है। यहां कांग्रेस अपने दम पर लाद जरूर रही है पर वो केवल विपक्ष के वोटों में सेंध लगाने का ही काम करेगी। बिहार में उसके हिस्से में 40 में से सिर्फ 9 सीटें आयी हैं। प. बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस को कोई भाव नहीं दे रही है। यहां भी उसके लिए कोई अवसर नहीं है। बीजेपी यहां दूसरे नम्बर की पार्टी है और उसके कुछ सीटें जितने के प्रबल आसार हैं। दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक- दूसरे के वोट काटेंगे जिसका फायदा बीजेपी को मिलेगा। आंध्र प्रदेश में कांग्रेस ने चंद्रबाबू नायडू से हाथ मिलाया है जो इस बार दम नहीं भर पा रहे हैं। कांग्रेस को उम्मीद मप्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, कर्नाटक और महाराष्ट्र से है। जहाँ से सीटों की कुल संख्या करीब 150 है। ऐसे में उसका सरकार बनाने का सपना दूर की कौड़ी दिखाई दे रही है।
कुल मिलाकर मोदी विरुद्ध विपक्ष के इस चुनावी समर में फिलहाल तो पीएम मोदी भारी पड़ रहे हैं। कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष अभी तक ऐसा कोई मुद्दा उभारने में सफल नहीं हुए हैं जिससे माहौल को मोदीमय होने से रोका जा सके। पहले चरण के मतदान में अब सिर्फ 10 दिन बचे हैं ऐसे में किसी बदलाव के आसार तो नजर नहीं आ रहे हैं।