नई दिल्ली : पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली नहीं रहे। शनिवार (24 अगस्त) को एम्स में उनका निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे और कैंसर से जूझ रहे थे। उनका किडनी ट्रांसप्लांट भी हुआ था। 66 वर्षीय जेटली का बीते कई दिनों से एम्स में इलाज चल रहा था। हाल ही के दिनों में बीजेपी के लिए ये दूसरा बड़ा झटका है। इसी माह में 6 अगस्त को पार्टी की कद्दावर नेता सुषमा स्वराज का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। अरुण जेटली प्रखर वक़्ता, अच्छे राजनेता, विद्वान अधिवक्ता और कुशल रणनीतिकार थे। कानूनी और राजनीतिक मामलों की उन्हें गहरी समझ थी। छात्र राजनीति से सियासत में कदम रखने वाले जेटली ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से लेकर वित्तमंत्री तक का सफर तय किया। यूपीए सरकार के समय वे राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। पीएम मोदी के वे करीबी व्यक्ति थे। उन्हें सरकार का संकटमोचक भी कहा जाता था।
कई बड़े फैसलों के रहे शिल्पकार ।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त मंत्री रहते अरुण जेटली ने अर्थव्यवस्था में सुधार के कई बड़े फैसले लिए।
गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स याने जीएसटी लागू करने का श्रेय जेटली को ही जाता है। सभी राज्यों को इसके लिए मनाने का दुष्कर कार्य जेटली ने ही किया। दो साल पहले जब जीएसटी लागू हुआ था तब कई समस्याएं आई थी लेकिन उन्होंने सूझबूझ और धैर्य के साथ तमाम समस्याओं को न केवल दूर किया बल्कि टैक्स स्लैब को भी सरल बनाया। पीएम मोदी द्वारा काले धन पर चोट करने के लिए की गई नोटबन्दी के फैसले में भी श्री जेटली वित्त मंत्री के बतौर बराबर के भागीदार रहे। अपने तथ्यात्मक और तर्कपूर्ण कथनों से वे लोगों को ये समझाने में कामयाब रहे कि नोटबन्दी अमीरों की तिजोरी में कैद काला धन बाहर निकालने का ब्रह्मास्त्र है। इसी के साथ दिवालिया कानून भी आर्थिक सुधारों की दिशा में उनका महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। बैंकों से बड़े – बड़े कर्ज लेकर गटक जाने वाले लोगों पर शिकंजा कसने के लिए ऐसे कानून की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। इस कानून का असर भी अब दिखने लगा है।
इसके अलावा एनपीए को कम कर बैंकों को घाटे से उबारना, बैंकों का एकीकरण, महंगाई और राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण, रक्षा, बीमा और विमाननं जैसे क्षेत्रों को विदेशी निवेश के लिए खोलना, जनधन योजना के जरिये सरकारी बैंकों के दरवाजे आम आदमी के लिए खोलना आदि तमाम बड़े फैसले जेटली के वित्तमंत्री रहते ही लिए गए जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई दी।
राफेल को लेकर मजबूती से रखा सरकार का पक्ष।
राफेल सौदे को लेकर जब विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर था तब अरुण जेटली ही थे जिन्होंने सरकार की ओर से मोर्चा संभाला और विपक्ष के हर आरोप का अकाट्य तर्कों और तथ्यों के साथ जवाब दिया।
मोदी – शाह के थे करीबी।
अरुण जेटली मोदी – शाह के करीबी लोगों में गिने जाते थे। मोदी के गुजरात के सीएम रहते कानूनी और राजनीतिक मोर्चों पर जेटली उनकी ढाल बने रहे। यूपीए सरकार के समय अमित शाह को गुजरात के बाहर कर दिया गया था। तब अमित शाह की कानूनी तौर पर अरुण जेटली ने पूरी मदद की थी। यही कारण है कि पीएम मोदी और अमित शाह उनपर पूरा भरोसा करते थे। खराब स्वास्थ्य के चलते वे मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में शामिल नहीं हुए थे।