इंदौर: सूफी मत इस्लाम से जुड़ी उदारवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है। इस मत के लोग सबकुछ भूलकर इबादत के जरिये खुदा से, ईश्वर से प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं। भारत मे भी सूफी मत की लंबी परम्परा रही है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया, बाबा फरीद, बुल्लेशाह और अमीर खुसरो सहित कई ऐसे सूफी संत हुए हैं जिन्होंने सूफी परम्परा को पल्लवित किया। व्यापक भारतीय संदर्भों में देखा जाए तो इसे आध्यात्मिकता से जोड़ा जा सकता है। कबीर, तुलसी, मीरा, गुरु नानक, रैदास और अन्य संतों ने भी अपनी वाणी से भाईचारा, प्रेम और मानव कल्याण का संदेश दिया है।
सूफी संतों की रचनाओं को जब संगीत का साथ मिला तो वे लोगों की जुबान पर चढ़ गई। फिल्मों के साथ आध्यात्मिक जलसों में भी सूफी संगीत ने अपनी खास पहचान बना ली है।
रविवार को पंचम निषाद संगीत संस्थान ने सूफी रचनाओं की ऐसी ही सुरीली महफ़िल इंदौर प्रेस क्लब के सभागार में सजाई। मासिक श्रृंखला स्वर प्रवाह के तहत आयोजित इस महफ़िल में युवा कलाकारों ने सूफी गीतों को अपनी आवाज दी। पंचम निषाद की संचालिका शोभा चौधरी के मार्गदर्शन में दीक्षित हो रहे इन युवा कलाकारों ने वो समां बांधा की श्रोता झूम उठे। खासकर इंडिया वॉइस के फर्स्ट रनर अप रहे नियम कानूनगो ने तो अपने सूफी गीत से वो जादू जगा दिया कि तमाम सुनकारों ने खड़े होकर 2 मिनट तक तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उन्हें सराहा । इसके अलावा अदिति जोशी के गाए दमादम मस्त कलंदर ने भी खूब दाद बटोरी। कुल 11 गीत इस महफ़िल में पेश किए गए। इनमें ज्यादातर समूह के साथ गाए गए। कानों के जरिये दिल से रूह तक का सफर तय करनेवाली इस महफ़िल को परवान चढ़ाने वाले अन्य कलाकार थे पंकज पांडे, कृष्णा चतुर्वेदी, मिहिर गर्ग, अनुराग मरोला, वैभवी कुलकर्णी और अनारता भास्कर। संगत कलाकारों ने भी शिद्दत के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाई। उनमें तबले पर मुकेश राज़गाया, हारमोनियम पर मिहिर गर्ग, ढोलक पर धवल परिहार, ऑक्टोपेड पर प्रणय उपाध्याय, शिवम शुक्ला कीबोर्ड पर और वेदांग प्रजापति ने गिटार पर साथ संगत की। संजय पटेल हर गीत की पृष्ठभूमि बताने के साथ सूफी संगीत की परंपरा से भी श्रोताओं को अवगत कराया। आभार शोभा चौधरी ने माना।
रूहानी सुकून का अहसास करा गई सूफी संगीत की महफ़िल
Last Updated: April 21, 2019 " 01:04 pm"
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