इंदौर : सोवियत यूनियन से अलग हुए यूरोप के बाल्टिक क्षेत्र स्थित देश लिथुआनिया यूं तो भारत से लगभग 5 हजार किमी दूर है लेकिन सांस्कृतिक रूप से दोनों देश एक – दूसरे के बेहद करीब हैं।तीस लाख की जनसंख्या वाले इस देश में ज्यादातर आबादी ईसाई धर्म माननेवालों की है लेकिन करीब एक लाख लोग हिंदू भी हैं। लिथुआनिया के संगीत, परंपरा और मान्यताओं में हिंदू देवी – देवताओं के दर्शन होते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए आरएसएस के विश्व विभाग ने सांस्कृतिक आदान – प्रदान के तहत लिथुआनिया के किलग्रिडा नामक कलाकारों के दल को भारत आमंत्रित किया। चेन्नई से लेकर दिल्ली तक इस छह सदस्यीय दल के कुल छह कार्यक्रम रखे गए हैं।
इसी कड़ी में लिथुआनियाई दल का तीसरा कार्यक्रम संस्कार भारती के बैनर तले इंदौर में रखा गया। स्थानीय जीएसआईटीएस के गोल्डन जुबली सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में लिथुआनिया के कलाकारों की अगवानी गाजे – बाजे के साथ की गई। अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ प्रारंभ हुए इस कार्यक्रम में मेहमान कलाकारों का स्वागत और सम्मान पुष्पहार पहनाकर व स्मृति चिन्ह भेंटकर किया गया।
पारंपरिक वाद्यों के साथ पेश किए लोकगीत।
इस अवसर पर मेहमान कलाकारों ने अपने आराध्य देवता की प्रार्थना पेश कर अपनी प्रस्तुतियों का आगाज किया। बाद में उन्होंने अपनी मातृभाषा याने लिथुआनी भाषा में लोकगीतों की बानगी प्रस्तुत की। उनके वाद्य भी कुछ अलग तरह की बनावट के थे। उनके शब्द भले ही समझ में नहीं आ रहे थे पर गाने का अंदाज, हावभाव, अंग संचालन और वाद्यों की मधुर ध्वनि उपस्थित प्रबुद्ध श्रोताओं को दाद देने पर मजबूर कर रही थी। तमाम श्रोता उस समय चकित रह गए जब इस दल ने दो हिंदी गीत भी अपने अंदाज में पेश किए।
लिथुआनिया और भारत में कई समानताएं।
इस मौके पर लिथुआनिया और भारत के बीच सांस्कृतिक समानता के कई उदाहरण भी पेश किए गए। बताया गया कि भारतीय देवी – देवताओं का उल्लेख लिथुआनिया की आध्यात्मिक परंपराओं में मिलता है। यहां तक कि वहां के लोग खुद को राजपूत होना बताते हैं और उसपर गर्व करते हैं। इससे पता चलता है कि वैदिक संस्कृति का प्रभाव पूरी दुनिया में फैला हुआ था।
कार्यक्रम में अतिथि और कलाकारों का स्वागत संस्कार भारती की मालवा प्रांत की अध्यक्ष कल्पना झोकरकर और इंदौर जिले के अध्यक्ष संजय तरानेकर, शोभा चौधरी, सारंग लासुरकर, अविनाश मोतीवाले आदि ने किया। कार्यक्रम का संचालन भावना और मानसी सालकाढे ने किया। आभार सुधीर सुभेदार ने माना।