कोरकू, घोड़ी पठाई ,मनिहारों गरबा, पंथी, जनजातीय लोक नृत्यो ने बांधा समां।
ऊंट पर बैठकर बच्चे हुए खुश।
इंदौर : छोटे-छोटे बच्चे, युवक युवतियां ऊंट पर सवारी का आनंद ले रहे थे, कोई झूला झूलने का मजा ले रहा था तो कई लोग मालवीय व्यंजनों के लजीज स्वाद का गुणगान करते हुए चटखारे ले रहे थे, उधर होलकर बाड़े के रूप में सजे मंच पर लोकनृत्यों की बानगी पेश की जा रही थी। यह नजारा था लालबाग परिसर में लोक संस्कृति मंच द्वारा आयोजित मालवा उत्सव का। यहां आनेवाला हर व्यक्ति उल्लास के रंग में रंगा नजर आया।
शिल्प मेले में रही खासी चहल – पहल।
मंच के सचिव दीपक लंवगड़े ने बताया कि शिल्प मेले में शुक्रवार को खासी भीड़ नजर आई। शिल्प प्रेमी आगंतुक अपने पसंद के शिल्प खरीदते नजर आए जिसमें पीतल शिल्प, लौह शिल्प, ड्राई फ्लावर गलीचे ,ड्रेस मटेरियल ,साड़ी, केन फर्नीचर काफी पसंद किए जा रहे हैं। पोकरण और हरियाणा से आए टेराकोटा के आर्टिकल्स भी लोगों को लुभा रहे हैं।
लोक नृत्यों की प्रस्तुतियों ने बांधा समां।
लोक संस्कृति मंच के संयोजक, सांसद शंकर लालवानी ने बताया कि इंदौर गौरव दिवस के अंतर्गत मनाए जा रहे मालवा उत्सव में शुक्रवार को सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत कोरकू जनजाति के गदली नृत्य से हुई। दीपावली एवं होली के अवसर पर यह नृत्य किया जाता है। गोल घेरा बनाकर महिला पुरुष यह नृत्य करते नजर आए साथ ही कबीर गायन भी किया गया। कृष्ण वंदना के रूप में कृष्ण के बाल्यावस्था से युवावस्था तक के प्रसंगों का कथक के माध्यम से सुंदर प्रस्तुतिकरण अंकिता अग्रवाल एवं साथियों ने किया। इसमे कुल 20 लड़कियों ने भाग लिया। गुजरात से आए कलाकारों ने ढाल तलवार नृत्य प्रस्तुत किया जिसमें राजपूत जनजाति के लोगों ने अद्भुत शोर्य रस का प्रदर्शन किया। एक हाथ में ढाल और एक हाथ में तलवार लेकर कलाकारों द्वारा पेश किया गया यह नृत्य दर्शनीय बन पड़ा था। यह युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात किया जाने वाला नृत्य है सफेद रंग की आंगडी और चोरनी पहनकर लगभग 15 पुरुषों ने यह नृत्य किया। प्राचीन गरबा प्रस्तुत करते हुए लाल हरे रंग की चनिया चोली पहनकर हाथ में लकड़ी लेकर धरती पर ठप ठप करते हुए एवं अनाज साफ करने का सूपड़ा लेकर टिपणी नृत्य प्रस्तुत किया गया ।साथ ही मां अंबे की आराधना करते हुए सुंदर गरबा भी पेश किया गया। कोरकु जनजाति द्वारा टीमकी ,चितकोरा, झांज, लेकर थापटी नृत्य प्रस्तुत किया गया। यह चैत के महीने में गेहूं कटाई के बाद किया जाने वाला नृत्य है। इसमें पुरुष धोती कुर्ता पहन कर तो महिलाएं साड़ी पहनकर नृत्य करती नजर आई। बैगा जनजाति का नृत्य कर्मा भी मालवा उत्सव के मंच पर देखने को मिला। स्थानीय संस्था कलार्थी की एकता मेहता एवं मोनिका जैन के साथियों ने मोहिनीअट्टम में लक्ष्मी अष्टम एवं नर्मदा अष्टकम के साथ शिव स्तुति प्रस्तुत की। सतनामी समाज का प्रसिद्ध नृत्य पंथी छत्तीसगढ़ से आए कलाकारों ने प्रस्तुत किया इसमें ऊर्जा के साथ में नृत्य करते हुए पिरामिड भी बनाए गए।
लोक संस्कृति के जुगल जोशी राजेश बिहानी एवं दिलीप पांडे ने बताया कि शिल्प मेले में सीरिया लेबनान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के शिल्पकारॉ द्वारा खूबसूरत ज्वेलरी, कालीन, साड़ियां, ड्रेस मटेरियल के साथ बांस एवं लकड़ी के सुंदर फर्नीचर भी पर कला प्रेमी लोगों के लिए उपलब्ध हैं। शिल्प मेला प्रतिदिन शाम 4:00 बजे से एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रतिदिन सायंकाल 7:30 बजे से प्रारंभ होंगे।
मंच के पवन शर्मा ने बताया कि 28 मई के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ढोलू कुनिथा, प्राचीन अर्वाचीन गरबा, ढाल तलवार ,कोरकू थापटी, कोरकू गदली ,पंथी एवं स्थानीय कलाकारों के नृत्य होंगे।