श्रद्धालुओं की मन्नत होती है पूरी।
400 साल पुराना बताया जाता है मंदिर का इतिहास।
इन्दौर : नवरात्रि के पावन पर्व पर नौ दिनी गरबा उत्सव के साथ माताजी के नौ स्वरूपों को पूजा जाता है। इन्दौर के ग्राम हरसोला में स्वयंभू माँ भवानी माता मंदिर का इतिहास लगभग 400 वर्ष पुराना है। यहां पर स्वयंभू माँ भवानी प्रतिमा निकली, जिसका विधिवत पूजन वर्षों से किया जा रहा है। पं. बालकृष्ण शर्मा की चौथी पीढ़ी माँ भवानी का प्रतिदिन पूजन-पाठ करती है।
समाजसेवी मदन परमालिया एवं पं. भरत शर्मा ने बताया कि माँ भवानी माता मंदिर चमत्कारी होकर यहां पर अपने दिल से रखी गई बात, निश्चित रूप से पूरी होती है। ऐसे कई उदाहरण देखने और सुनने को मिले हैं। माँ रोजाना तीन स्वरूपों में अपने भक्तों को दर्शन देती है। सुबह बाल अवस्था, दोपहर में युवा अवस्था और शाम को वृद्धावस्था रूप में माँ के दर्शन होते हैं। बाल अवस्था में जब बच्चे का जन्म होता है और वह बोल नहीं पाता है, तो अगर मंदिर में कैची चढ़ाने की मांग आप करते हैं तो निश्चित बच्चा बोलने लगता है। कैची किसी भी प्रकार की हो सकती है।
शारदीय नवरात्रि में 9 दिनों तक बाल कन्याओं द्वारा गरबा खेला जाता है। मातृशक्ति अपने मधुर आवाज में माँ के भजनों की प्रस्तुति देती है।
बीते दो वर्षों में सर्वानुमति से मंदिर के जीर्णोद्धार का निर्णय लिया गया। लगभग 6 हजार स्के. फीट में मंदिर का निर्माण कार्य 80 प्रतिशत तक हो चुका है, जिसमें जन सहयोग से श्रद्धालु योगदान दे रहे हैं। मंदिर में इन्दौर शहर के अलावा प्रदेश, देश-विदेश से भी भक्तगण अपनी श्रद्धा के साथ जुड़े हुए हैं । सभी की मनोकामना माँ भवानी के आशीर्वाद से पूर्ण हो रही है। अमावस्या की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन प्रतिमाह 200 से 300 कन्याओं का पाद पूजन कर उन्हें भोजन प्रसादी करवाई जाती है। नवरात्रि महोत्सव के बारस के दिन विशाल भंडारे का आयोजन भी किया जाता है।
ज्यतिषाचार्य एवं भागवताचार्य पं. बालकृष्ण शर्मा द्वारा दु:ख बीमारी के लिए भी नि:शुल्क रूप से दवाईयों का वितरण एवं जन्म पत्रिका के माध्यम से समस्याओं का निदान भी किया जाता है। अमावस्या एवं मंगलवार छोडक़र प्रतिदिन पं. बालकृष्ण शर्मा 10 से 15 पत्रिकाओं को देखते हैं और उनका निराकरण का रास्ता बताते हैं। विगत 15 वर्षों से पंडित बालकृष्ण शर्मा द्वारा अपने स्वयं के व्यय से नर्मदा किनारे नवरात्रि के पूर्व करीब 100 से 150 भक्तजनों को तर्पण उनके भोजन की व्यवस्था भी की जाती है। रामचरित्र मानस एवं श्रीमद् गीता नि:शुल्क रूप से भक्तों को प्रदान की जाती है।
मंदिर जीर्णोद्धार के लिए भक्तजनों ने निर्णय लिया कि खुली हुई पास की जगह में 10 कमरों की धर्मशाला का निर्माण, साधु-संतों को ठहरने की व्यवस्था एवं जहां नर्मदा जी का ओवर फ्लो है वहां घाट निर्माण किया जाएगा। पर्यावरण संरक्षण के लिए मंदिर परिसर में पौधा रोपण किया गया है।